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सबरीमाला मंदिर : महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 08:50 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 08:54 AM (IST)
सबरीमाला मंदिर : महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सबरीमाला मंदिर : महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नई दिल्ली (जेएनएन)। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक से जुड़े मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में पुरुषों की तरह महिलाओं को भी प्रवेश करने और प्रार्थना करने का संवैधानिक अधिकार है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अगर पुरुष सबरीमाला मंदिर के अंदर जा सकते हैं तो महिलाएं भी वहां जा सकती हैं।

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महिलाओं पर लगी पाबंदी तर्कहीन : SC

बता दें कि संविधान पीठ 10 से 50 साल उम्र की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने इस पाबंदी को अतार्किक और भेदभाव पूर्ण कहा है। साथ ही मंदिर में पूजा के लिए महिलाओं के 41 दिन का व्रत रखे जाने को असंभव बताने की दलीलों से असहमति जताते हुए कोर्ट ने कहा था कि कानून असंभव को मान्यता नहीं देता। जो चीज सीधे नहीं की जा सकती उसे परोक्ष रूप से किया गया है।

त्रवणकोर देवासम बोर्ड का क्या तर्क

दूसरी ओर मंदिर प्रबंधन देखने वाले त्रवणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने निश्चित आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी को जायज ठहराते हुए कहा था कि सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पा बाल ब्रह्मचारी हैं और भगवान की शुद्धता बनाए रखने के लिए 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई है क्योंकि धारणा है कि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है। उन्होंने कहा कि इसे लिंग आधारित भेदभाव नहीं कहा जा सकता क्योंकि 10 से कम और 50 से अधिक आयु की महिलाओं पर रोक नहीं है। यहां तक कि इस मंदिर में किसी भी जाति या धर्म के व्यक्ति पर रोक नहीं है।

अब-तक की सुनवाई में क्या हुआ

त्रवणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी कहा कि हर जगह के अपने अपने नियम होते हैं। जैसे मंदिर में प्रवेश से पहले जूते उतारने पड़ते हैं लेकिन चर्च में जूतों के साथ प्रवेश मिलता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मंदिर में प्रवेश के लिए जूते उतारने की शर्त एक तार्किक शर्त है रोक नहीं है लेकिन यहां रोक है। ये रोक अतार्किक है। ये एक अलग तरह का भेदभाव है। सिंघवी ने कहा कि भगवान अयैप्पा के हजारों मंदिर हैं कहीं भी पाबंदी नहीं है सिर्फ एकमात्र इस मंदिर में विशेष कारण से पाबंदी है। उन्होंने कहा कि इतने और मंदिर हैं वहां क्यों नहीं जाते सबरीमाला ही क्यों आना चाहते हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये व्यक्ति का विश्वास है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भगवान जगन्नाथ के पूरे देश में हजारों मंदिर हैं फिर भी लोग पुरी जाते हैं। ऐसा इसलिए कि लोगों का विश्वास वहां है। किसी का विश्वास किसी विशेष जगह में हो सकता है।

मंदिर में प्रवेश कानून पर निर्भर नहीं

शीर्ष अदालत ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के बारे में कोई कानून नहीं होने के बावजूद इस मामले में उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। मंदिर में प्रवेश के अधिकार के लिए किसी कानून की जरूरत नहीं है। यह कानून पर निर्भर नहीं है। यह संवैधानिक अधिकार है।

पिछले साल बनाई गई थी संविधान पीठ

पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दी थी।

800 साल से महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को चुनौती 

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता 'द इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन' ने सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा के इस मंदिर में पिछले 800 साल से महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को चुनौती दी थी। याचिका में केरल सरकार, द त्रावनकोर देवस्वम बोर्ड और मंदिर के मुख्य पुजारी सहित डीएम को 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने की मांग की थी। इस मामले में सात नंवबर 2016 को केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है।

क्‍या है मामला

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है. हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।


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