कैदियों को मताधिकार देने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज
तीन विधि छात्रों ने संविधान के अनुच्छेद 62 (5) को दी थी चुनौती।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। देशभर में कैदियों को मत देने का अधिकार देने की मांग संबंधी याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मत देने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही समान कानून का अधिकार है।
यह सिर्फ कानून द्वारा उपलब्ध कराया गया अधिकार है। कानून के तहत कैदियों को जेल के अंदर से मत देने का अधिकार नहीं दिया गया है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार एवं कानून को देखते हुए याचिका पर विचार करने की जरूरत नहीं है।
विधि छात्र प्रवीन कुमार चौधरी, अतुल कुमार दुबे और प्रेरणा ¨सह ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 62 (5) को चुनौती दी थी। इसके तहत कैदियों को उनके मत के अधिकार से वंचित रखने का प्रावधान किया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि कैदियों को मत देने के अधिकार से वंचित करना एकता के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने दलील दी थी कि किसी भी तरह से जेल, थाने या फिर कहीं भी हो उसे मत देने का अधिकार दिया जाना चाहिए। अधिवक्ता कमलेश मिश्रा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि मत के अधिकार से वंचित रखकर हमने कैदियों को लोकतंत्र की मुख्य धारा से अलग रखा है।