राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर पुनर्विचार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शनिवार को समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसे दायर करने में 470 दिनों की देरी हुई है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) एक्ट पर 2015 में अपने दिए फैसले पर पुनर्विचार करने से इन्कार कर दिया है। सर्वोच्च अदालत उस कानून पर भी दोबारा गौर नहीं करना चाहती जिसके चलते उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम प्रणाली बहाल हुई है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शनिवार को समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसे दायर करने में 470 दिनों की देरी हुई है। साथ ही इसमें कोई मेरिट भी नहीं है। खंडपीठ में शामिल एम.खानविल्कर और अशोक भूषण ने 27 नवंबर को दिए अपने आदेश में यह कहा जिसे शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। खंडपीठ ने कहा कि इसके अलावा भी उन्होंने पुनर्विचार याचिका का गहन अध्ययन किया है और उससे संबद्ध दस्तावेजों को भी देखा है। हमें उसमें कोई भी ठोस आधार नजर नहीं आया। इसलिए समीक्षा याचिका को देरी और मेरिट न होने के आधार पर खारिज किया जाता है।
नेशनल ज्यूडीशियल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन (एनजेएसी) एक्ट 2014 से उच्च न्यायापालिका में जजों की नियुक्ति के लिए अधिशासी अफसरों की अहम भूमिका होती है। समीक्षा याचिका दायर करने वाले संगठन नेशनल लायर्स कैंपेन फार ज्यूडीशियल ट्रांसपिरेंसी एंड रिफार्म ने पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की। इस याचिका में दावा किया गया कि सर्वोच्च अदालत का 2015 का फैसला असंवैधानिक और अवैध था।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2015 को एनजेएसी एक्ट, 2014 को खारिज करके उसके स्थान पर 22 साल पुरानी जजों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया था। तब संविधान पीठ के पांच में से चार जजों ने एनजेएसी एक्ट और संविधान (99वां संशोधन) एक्ट, 2014 को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया था।