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सड़क पर गुजर-बसर कर रहे बच्चों को तत्काल बसेरा दें, सुप्रीम कोर्ट ने निराश्रित बच्चों की पहचान करने के दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि सड़कों पर गुजर बसर करने वाले निराश्रित बच्चों की पहचान कर उन्हें तत्‍काल बसेरा दें। शीर्ष अदालत ने स्वयंसेवी संगठनों की मदद लेने को भी कहा...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 07:36 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 07:47 PM (IST)
सड़क पर गुजर-बसर कर रहे बच्चों को तत्काल बसेरा दें, सुप्रीम कोर्ट ने निराश्रित बच्चों की पहचान करने के दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारियों से निराश्रित बच्चों की पहचान कर उन्हें सिर छुपाने की व्यवस्था करने को कहा है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे कोरोना काल में बिना देरी किए सड़कों पर गुजर बसर करने वाले निराश्रित बच्चों की पहचान कर उन्हें सिर छुपाने की व्यवस्था करें। कोर्ट ने कहा कि इन बच्चों की पहचान के लिए विशेष किशोर पुलिस इकाइयों (एसजेपीयू), जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) और स्वयंसेवी संगठनों की मदद ली जाए।

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जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि इन निराश्रित बच्चों के लिए सर्दियों में समस्याएं काफी विकराल हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इन बच्चों को आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए।

चूंकि इस अदालत द्वारा पहले के अवसरों पर पहचान और पुनर्वास से संबंधित निर्देशों के कार्यान्वयन में देरी नहीं हुई है ऐसे में हम सभी डीएम को बिना किसी और देरी के सड़कों पर बच्चों की पहचान में डीएलएसए और स्वैच्छिक संगठनों को शामिल करने का निर्देश देते हैं। कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (बाल स्वराज) के वेब पोर्टल पर सभी चरणों की सूचनाएं अपलोड करने का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने महामारी से प्रभावित और माता-पिता में एक या दोनों को खोने वाले बच्चों के बारे में स्वत: संज्ञान लेने के मामले की सुनवाई करते हुए, एनसीपीसीआर के मार्गदर्शन में राज्यों को उनकी पहचान के बाद पुनर्वास के लिए एक नीति तैयार करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने इस संबंध में तीन सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

एनसीपीसीआर की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने शुरू में कहा कि कई राज्यों ने बाल स्वराज पोर्टल पर सड़क की स्थिति में बच्चों का विवरण अपलोड नहीं किया है। दिल्ली के संबंध में, शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां पहले 70,000 बच्चों की पहचान की गई थी, वहीं आप सरकार ने अब कहा है कि उसने केवल 428 बच्चों की पहचान की है।

यह एक सामान्य मामला नहीं है। इन बच्चों के लिए सड़क पर गुजर बसर करना एक गंभीर समस्या है। ऐसे बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। देश के उत्तरी इलाकों में कड़ाके की ठंड में इन बच्चों की स्थिति बदतर हो जाएगी। पीठ ने कहा कि जरा सोचिए कि निराश्रित बच्चे सड़कों पर कैसे गुजर बसर कर रहे होंगे। आपको उन्हें तुरंत रैन बसेरों, आश्रय गृहों में स्थानांतरित करना होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह आपका कर्तव्य है। हमें आपको यह और वह करते रहने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं है। तुरंत कार्रवाई करें। यह एक महीना इन बच्चों के लिए बहुत मुश्किलभरा है। उन्हें तुरंत आश्रय गृह में ले जाने दिया जाए। शीर्ष अदालत ने राज्यों की इस दलील पर नाराजगी जताई कि सड़क पर गुटर-बसर करने वाले बच्चों की पहचान कोरोना के कारण धीमी गति से हो रही है। 


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