सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, दूरस्थ इलाकों और गांवों में वैक्सीन पहुंचाने की क्या है व्यवस्था
शीर्ष अदालत ने कहा प्रयास होना चाहिए कि पहचान के साक्ष्य का अभाव टीकाकरण प्रक्रिया में न बने बाधा। अंत्येष्टि कराने वाले कर्मियों के टीकाकरण के बारे में क्या सोचा जिन्हें फ्रंट लाइन या हेल्थकेयर वर्कर नहीं माना गया है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी से स्थायी तौर पर निपटने के लिए टीकाकरण को जरूरी मानते हुए सरकार से हर व्यक्ति का टीकाकरण सुनिश्चित करने को लेकर कई सवाल किए हैं। अदालत ने कई मामलों से सरकार से स्पष्टीकरण भी मांगा है। कोर्ट ने एक मई से शुरू हुए 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण को बराबरी और जीवन के मौलिक अधिकारों का मुद्दा बताते हुए सरकार से पूछा है कि ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में रहने वाले वंचित वर्ग तथा सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के टीकाकरण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। क्या दूरस्थ इलाकों में रह रहे लोगों के दरवाजे तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए मोबाइल वैन, वाहन, रेलवे आदि की संभावनाओं पर विचार किया गया है। इससे ऐसे लोगों में यात्रा के कारण संक्रमण फैलने की आशंकाओं को कम किया जा सकेगा। कोर्ट ने कहा है कि यह भी प्रयास होना चाहिए कि पहचान के साक्ष्य के अभाव में कोई भी व्यक्ति, विशेष कर वंचित वर्ग टीकाकरण से वंचित न हो।
कोर्ट ने कहा है कि चूंकि अब टीकाकरण केंद्र और राज्यों की साझा जिम्मेदारी है, इसलिए केंद्र और राज्य वैक्सीन का मौजूदा स्टाक व आगे छह महीने तक के लिए जरूरी स्टाक की जानकारी दें। अदालत ने कहा कि तीसरे चरण के 18 से लेकर 44 वर्ष के लोगों की संख्या करीब 59 करोड़ है। सरकारें इनका टीकाकरण पूरा करने की टाइम लाइन पेश करें। कोर्ट ने पूछा है कि जो लोग कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में जमीनी स्तर पर मदद पहुंचा रहे हैं, उनके टीकाकरण के लिए कोई टारगेटेड वैक्सीनेशन अभियान प्रस्तावित किया गया है या नहीं। इनमें अंत्येष्टि स्थलों पर काम करने वाले कर्मचारी शामिल हैं, जिन्हें पहले चरण के टीकाकरण अभियान में फ्रंट लाइन और हेल्थ केयर वर्कर नहीं माना गया था।
सरकार ने केंद्र और राज्यों के अलग अलग खरीद को ठहराया सही
कोर्ट में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में 45 से नीचे के लोगों के टीकाकरण की जिम्मेदारी राज्यों को दिए जाने को न्यायोचित बताया है। केंद्र ने कहा कि राज्य सरकारों के साथ चल रहे विचार विमर्श के दौरान कई राज्यों ने प्राथमिकता क्षेत्र के अलावा अन्य आयु वर्ग के लोगों के लिए भी टीकाकरण शुरू करने की मांग की थी। ऐसे में सहयोगात्मक संघवाद को ध्यान में रखते हुए संयुक्त रूप से काम करने और वैक्सीन खरीद का विकेंद्रीकरण करते हुए राज्यों को टीकाकरण अभियान बढ़ाने की सुविधा दी गई। चूंकि केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए प्राथमिकता समूहों के टीकाकरण का काम पूरा नहीं हुआ था इसलिए विकेंद्रीकरण के जरिये ज्यादा से ज्यादा लोगों तक टीकाकरण पहुंचाने के लिए अलग-अलग दो अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। इसलिए 18 से 44 वर्ष के आयु वर्ग में प्राथमिकता तय करने के लिए राज्यों को टीकाकरण खरीद में सहभागिता की भूमिका दी गई।
केंद्र ने कहा कि इससे केंद्र द्वारा तय की गई 45 वर्ष तक की प्राथमिकता श्रेणी के टीकाकरण का काम बाधित नहीं हुआ और उस वर्ग को केंद्र द्वारा खरीदी गई 50 फीसद वैक्सीन से मुफ्त टीकाकरण चालू रहा। बाकी 50 फीसद वैक्सीन राज्य और निजी अस्पताल 18 से 44 वर्ष वालों के लिए खरीदने और बराबरी से बांटने के लिए स्वतंत्र हैं। कुछ राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति आदि के कारण बेहतर बार्गे¨नग पावर रख सकते हैं। हालांकि कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन की अलग-अलग कीमत से सहमति नहीं जताई है और सरकार को नीति की समीक्षा पर विचार करने को कहा है। साथ ही स्पष्ट किया है कि कोर्ट इस बात से अवगत है कि जनहित को देखते हुए उचित नीति बनाना और उन्हें लागू करना कार्यपालिका का काम है। कोर्ट ने आदेश में और भी बहुत से सुझाव और निर्देश दिए हैं। मामले में कोर्ट 10 मई को फिर सुनवाई करेगा।