सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से पूछा अभी तक कितने आवेदन आए
जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि इस कानून के तहत अभी तक कितने आवेदन प्राप्त हुए हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि इस कानून के तहत अभी तक कितने आवेदन प्राप्त हुए हैं। कितने आवेदन विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए राज्य के स्थाई निवासियों की ओर से आए हैं और कितने आवेदन उनके वंशजों की ओर से मिले हैं।
ये निर्देश मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने सुनवाई के दौरान दिये। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह तक के लिए टाल दी।
सुनवाई की शुरूआत में जम्मू कश्मीर राज्य की ओर से पेश वकील शोएब आलम ने कोर्ट से मामले की सुनवाई टालने का अनुरोध करते हुए कहा कि अनुच्छेद 35ए और 370 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होने तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए।
हालांकि कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस याचिका में अधिनियम के प्रावधान 4 (सी) को चुनौती दी गई है। जो कि वंशज शब्द के बारे में है। याचिका में वंशज शब्द को परिभाषित और स्पष्ट करने की मांग की गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि अभी तक इस कानून के तहत उन्हें कितने आवेदन मिले हैं। कितने आवेदन विभाजन के वक्त पाकिस्तान चले गए जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासियों की ओर से और कितने उनके वंशजों की ओर से प्राप्त हुए हैं।
राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस कानून पर रोक लगी है इसलिए यह अभी तक लागू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि उनके विचार में जो लोग 1947 में जम्मू कश्मीर छोड़ चुके थे वे वंशज हो सकते हैं। हालांकि यह उनका विचार है वे इस बारे में राज्य सरकार से निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगे।
केन्द्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार याचिका का समर्थन करती है। इस मामले में केन्द्र सरकार पहले ही अपना जवाबी हलफनामा दाखिल कर साफ कर चुकी है कि वह विभाजन के दौरान देश छोड़कर चले गए लोगों की वापसी के पक्ष में नहीं है।
जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पाटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून 1982 को चुनौती दी है। यह कानून विभाजन के दौरान 1947 से 1954 के बीच पाकिस्तान जा चुके लोगो और उनके वंशजों को हिन्दुस्तान में पुनर्वास की इजाजत देता है।
याचिका में कहा गया है कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाना है इसके चलते राज्य की सुरक्षा को खतरा हो गया है। यह याचिका 2001 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसमें केन्द्र सरकार का काफी पहले ही जवाबी हलफनामा दाखिल हो चुका है। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाई थी तबसे उस पर रोक लगी है।