वकीलों के हड़ताल पर जाने के बहानों पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, जानें वो कौन-कौन सी हैं बेतुकी वजहें
उत्तराखंड के तीन जिलों में पिछले 35 से भी अधिक साल से वकीलों के हर शनिवार को हड़ताल पर जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। पाकिस्तान के स्कूल में बम धमाका, नेपाल में भूकंप जैसी बेतुकी वजहों से उत्तराखंड के तीन जिलों में पिछले 35 से भी अधिक साल से वकीलों के हर शनिवार को हड़ताल पर जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है।
हड़ताल की वजह से हुए कार्यदिवसों के नुकसान का किया गया विश्लेषण
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में तब आया जब वह उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था। हाईकोर्ट ने हरिद्वार व ऊधम सिंह नगर के कई हिस्सों और देहरादून में प्रत्येक शनिवार को वकीलों की हड़ताल या अदालती कार्य के बहिष्कार को गैरकानूनी ठहराया था। 25 सितंबर, 2019 के इस फैसले में हाई कोर्ट ने विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का हवाला दिया था। इसमें वकीलों की हड़ताल की वजह से हुए कार्यदिवसों के नुकसान के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था।
वकीलों की हड़ताल का अदालती कार्यों से कोई लेना-देना नहीं
आयोग की राय थी कि इससे अदालतों के कार्यों पर असर पड़ता है और लंबित मामलों की संख्या में इजाफा होता है। हाई कोर्ट की ओर से विधि आयोग को भेजे गए उत्तराखंड के 2012-2016 के आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान देहरादून जिले में वकील 455 दिन और हरिद्वार जिले में 515 दिन हड़ताल पर थे। विधि आयोग की रिपोर्ट के हवाले से हाई कोर्ट का कहना था कि वकीलों की हड़ताल या कार्य बहिष्कार की वजह स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे तक थे, जिनका अदालती कार्यों से कोई लेना-देना नहीं था। शायद ही कभी उनके कारण न्यायोचित रहे।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, 'कुछ का उल्लेख करें तो उनमें पाकिस्तानी स्कूल में बम विस्फोट, श्रीलंका के संविधान में संशोधन, अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद, वकील पर हमला या हत्या, नेपाल में भूकंप, वकीलों के नजदीकी संबंधियों की मृत्यु पर शोक, किसी अन्य राज्य की बार एसोसिएशन के वकीलों के प्रति एकजुटता दर्शाना, सामाजिक कार्यकर्ताओं के आंदोलन को नैतिक समर्थन, भारी बारिश और यहां तक कि कवि सम्मेलन भी शामिल हैं।'
अवमानना की स्वत: कार्यवाही शुरू करने का सही मामला
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, 'यह देश में हर जगह हो रहा है। अवमानना की स्वत: कार्यवाही शुरू करने के लिए यह सही मामला है। बार एसोसिएशन कैसे कह सकती है कि वे हड़ताल जारी रखेंगे। चीजें धराशायी हो गई हैं। आदेश (हाई कोर्ट का) पूरी तरह न्यायोचित है। हम ऐसी चीजों की इजाजत नहीं दे सकते। हर कोई हड़ताल पर जा रहा है। अब हमें बहुत सख्त होना चाहिए।' इसके बाद शीर्ष अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया।