जजों को निशाना बनाने के चलन पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
कोर्ट ने उस संगठन पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी संकेत दिया है, जिसने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर हितों के टकराव का आरोप लगाया गया था।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों पर आरोप लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। सोमवार को उसने कहा कि जजों को बेवजह निशाना बनाने का सिलसिला बंद होना चाहिए। इस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। इससे न्यायिक संस्था प्रभावित होती हैं। इसी के साथ ही कोर्ट ने उस संगठन पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी संकेत दिया है, जिसने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर 'हितों के टकराव' का आरोप लगाया गया था। बता दें कि एक धर्मार्थ संस्था 'भारतीय मतदाता संगठन' ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि मुख्य न्यायाधीश के रिश्तेदार जो ओडिशा से सांसद हैं, वह कोर्ट और न्यायाधिकरण में बतौर वरिष्ठ वकील प्रैक्टिस करते हैं।
दरअसल, जनप्रतिनिधियों के बतौर वकील काम करने पर रोक लगाने संबंधी एक जनहित याचिका पर पीठ ने नौ जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी के बाद सोमवार को जब उसी तरह की याचिका सामने आई तो पीठ ने गहरी नाराजगी जताई। पीठ ने कहा, न्यायाधीशों को निशाना बनाने का क्रम बंद होना चाहिए। इससे संस्था प्रभावित होती है।
पीठ ने इस संबंध में संगठन के महासचिव द्वारा बिना शर्त माफी की मांग को नकारते हुए कहा कि क्या आप इस याचिका की जिम्मेदारी लेते हैं। उनके वकील से यह भी पूछा कि संगठन के पदाधिकारी कौन हैं? क्या उन्होंने याचिका दाखिल करने से पहले कोई कानूनी मशविरा किया था। पीठ ने वकीलों के उस प्रतिवेदन को भी खारिज कर दिया, जिसमें पचास हजार से लेकर पांच लाख तक जुर्माना लगाने का अनुरोध किया गया था।
पीठ ने कहा कि ऐसे कई निर्णय हैं जो यह कहते हैं कि इस प्रकार की याचिका दायर करने के लिए एडवोकेट ऑन रिकॉर्डस (एओआर) जिम्मेदार हैं। उधर, अटार्नी जनरल ने भी कहा कि इसके लिए एओआर जिम्मेदार हैं। पीठ ने संगठन से 27 अगस्त तक पदाधिकारियों के नाम जमा करने को कहा है। पीठ ने वेणुगोपाल के उस प्रतिवेदन को भी स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया है कि इस तरह के आरोप असाधारण हैं और इनसे सख्ती से निपटना चाहिए।