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त्रिपुरा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्‍य सरकार को दो हफ्ते के भीतर जवाब देने के दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) त्रिपुरा में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में राज्य पुलिस की कथित मिली-भगत और निष्क्रियता के आरोपों की स्वतंत्र जांच के लिए दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 05:29 PM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 05:56 PM (IST)
त्रिपुरा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्‍य सरकार को दो हफ्ते के भीतर जवाब देने के दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने त्रिपुरा हिंसा के मामले में राज्‍य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) त्रिपुरा में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में राज्य पुलिस की कथित मिली-भगत और निष्क्रियता के आरोपों की स्वतंत्र जांच के लिए दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सोमवार को केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने सरकारों को दो हफ्ते के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।  

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अधिवक्ता ई. हाशमी की ओर से दाखिल याचिका पर अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पैरवी की। उन्‍होंने सर्वोच्‍च अदालत से कहा कि वे हालिया साम्प्रदायिक दंगों की स्वतंत्र जांच चाहते हैं। इस मामले में अब दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी। भूषण ने कहा कि सर्वोच्‍च अदालत के समक्ष त्रिपुरा के कई मामले लंबित हैं। पत्रकारों पर यूएपीए के आरोप लगाए गए हैं। यही नहीं कुछ वकीलों को नोटिस भेजा गया है। पुलिस ने हिंसा के मामले में कोई एफआइआर दर्ज नहीं की है। ऐसे में अदालत की निगरानी में इसकी जांच एक स्वतंत्र समिति से कराई जानी चाहिए।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और त्रिपुरा के स्थाई वकील को भी दिए जाने का निर्देश दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्‍य की पुलिस दंगाईयों के साथ मिली हुई थी। लूटपाट और आगजनी की घटनाओं के सिलसिले में एक भी दंगाई को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। मालूम हो कि राज्‍य प्रशासन और पुलिस इन घटनाओं में किसी भी धार्मिक ढांचे में तोड़फोड़ से इनकार करते रहे हैं। पुलिस का दावा है कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को दो वकीलों और एक पत्रकार की याचिका पर सुनवाई की थी। इन याचिकाओं में हिंसा के बारे में तथ्यों को सोशल मीडिया पर डालने को लेकर उनके खिलाफ यूएपीए के तहत दर्ज मामलों को रद किए जाने की गुहार लगाई गई है। सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्‍टों में राज्‍य के अल्‍पसंख्‍यक समुदाय को निशाना बनाए जाने के आरोप लगाए गए हैं। मालूम हो कि बीते दिनों राज्‍य सरकार ने लोगों से अफवाहों पर ध्‍यान नहीं देने की अपील की थी।


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