सर्दियों में गर्मी का अल्टीमेटम: भारतीयों पर भारी पड़ सकता है बढ़ता तापमान, यह राज्य तपेंगे सबसे ज्यादा
ग्रीन हाउस गैसों का ज्यादा उत्सजर्न होने से साल-दर-साल गर्मी बढ़ रही है। वर्ष 2100 तक औसत वार्षिक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की हो सकती है वृद्धि
नई दिल्ली, प्रेट्र। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हानि का आकलन करने वाले एक अध्ययन में कहा गया है कि इस सदी के अंत तक भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग काल का ग्रास बन सकते हैं। यह अध्ययन अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट (टीसीडी) ने किया है, जिसे बीते गुरुवार को ‘यूशिकागो सेंटर’ में जारी किया गया। इसमें बताया गया है कि लगातार ग्रीन हाउस गैसों के ज्यादा उत्सर्जन के कारण भारत में वर्ष 2100 तक औसत वार्षिक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। बता दें कि अभी भारत में सर्दी दस्तक दे रही हैं, जहां इस अध्ययन ने गर्मी को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है।
अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मृत्युदर भी बढ़ सकती है, जो देश की मौजूदा मृत्युदर के लगभग 10 फीसद के बराबर होगी। यदि गैसों का उत्सर्जन इसी गति से जारी रहा तो इस सदी के अंत तक एक लाख लोगों में से 60 की केवल गर्मी के कारण ही मौत हो सकती है। इसमें बताया गया है कि देश भर में 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म दिनों की औसत संख्या प्रति वर्ष आठ गुना बढ़ सकती है और गर्मी 42.8 डिग्री सेल्सियस होने की संभावना है।
टीसीडी के अध्ययन में कहा गया है ‘तापमान बढ़ने के कारण उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा (64 फीसद) जनहानि होने की संभावना है।’ संस्थान ने एक बयान में कहा, ‘इन अध्ययन के निष्कर्ष भारत में जलवायु परिवर्तन और मौसमी आपदाओं के आकलन के बाद निकाले गए हैं।
दिल्ली और हरियाणा में सबसे ज्यादा गर्मी
अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2100 तक दिल्ली में गर्मी 22 गुना और हरियाणा में 20 गुना ज्यादा बढ़ने का अनुमान है। साथ ही पंजाब और राजस्थान में क्रमश: 17 और सात गुना ज्यादा गर्मी बढ़ सकती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 राज्यों में ज्यादा गर्मी पड़ेगी और पंजाब सबसे ज्यादा तपेगा। टीसीडी के निदेशक और क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब के सह-संस्थापक माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि इन निष्कषों से स्पष्ट होता है कि ये आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। हमें समय रहते इस पर काम करने की जरूरत है।