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Success Story: नेत्रहीन सतेंद्र सिंह तीसरे प्रयास में 714वीं रैंक प्राप्त कर बने आइएएस

अमरोहा के नेत्रहीन सतेंद्र सिंह ने ज्ञान की रोशनी से जो मुकाम हासिल किया वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। तीसरे प्रयास में UPSC परीक्षा पास कर लिया है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 11:06 PM (IST)Updated: Sat, 06 Apr 2019 11:10 PM (IST)
Success Story: नेत्रहीन सतेंद्र सिंह तीसरे प्रयास में 714वीं रैंक प्राप्त कर बने आइएएस

अमरोहा (आसिफ अली)। उप्र के अमरोहा के नेत्रहीन सतेंद्र सिंह ने ज्ञान की रोशनी से जो मुकाम हासिल किया, वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। उन्होंने तीसरे प्रयास में यूपीएससी की ओर से आयोजित सिविल सेवा परीक्षा पास कर साबित कर दिया कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है। शुक्रवार को घोषितपरिणाम में उन्हें 714 वीं  रैंक मिली है। दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर सतेंद्र अब बड़े अफसर बन गए हैं।

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पिता हैं किसान
बेटे की कामयाबी की जानकारी बुजुर्ग माता-पिता को मिली तो वह फफक पड़े। उनके लाडले बेटे ने बंद आंखों से कामयाबी का आसमान छू लिया। जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर गांव रजबपुर के पास मजरा हुमायूं नगर में किसान विक्रम सिंह का परिवार रहता है। परिवार में पत्नी राजेंद्री देवी और दो बेटे मोहित कुमार व सतेंद्र सिंह हैं।

26 साल पहले गई थी आंखों की रोशनी
26 साल पहले सतेंद्र की आंखों की रोशनी चली गई। इससे माता-पिता की भी दुनिया अंधेरी हो गई थी। विक्रम सिंह ने एक संस्था के जरिये बेटे को पढ़ने के लिए दिल्ली भेज दिया। वहां नेत्रहीन बच्चों के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में 12वीं तक की पढ़ाई हुई। उसके बाद सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर ली। वहीं पर पीएचडी करने के बाद सतेंद्र तीन साल पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए।

'टॉक बैक' एप्लीकेशन से की तैयारी
मोबाइल, कंप्यूटर समेत सभी उपकरण बखूबी चलाने वाले सतेंद्र सिंह ने पढ़ाई के लिए स्क्रीन रीडिंग सिस्टम का प्रयोग किया। मोबाइल व कंप्यूटर से 'टॉक बैक' एप्लीकेशन के जरिये सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी की। जब सिविल सर्विस का परिणाम घोषित हुआ तो दोस्तों ने सतेंद्र को बताया कि वह अफसर बन गए हैं। यह सुनने के बाद पहले घर फोन कर पिता विक्रम सिंह को बताया।
सतेंद्र सिंह का कहना है कि उन्हें कभी नहीं लगा कि आंखों की रोशनी मेरे लिए परेशानी बनेगी। युवाओं के लिए संदेश दिया कि वह खुद पर भरोसा रखें, दिव्यांगता हिम्मत व मेहनत के सामने खुद दिव्यांग हो जाती है। हर परिस्थिति में शांत रहें तथा ध्येय बनाकर आगे बढ़ें। आइएएस अफसर बने सतेंद्र सिंह के गांव का माहौल बदला हुआ है। उनके परिजन ही नहीं बल्कि गांव के लोगों को भी गर्व है। लोग उनके घर पहुंच कर परिजनों को बधाई दे रहे हैं।


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