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Video: चौंकाती है कछुओं की तस्करी की ये कहानी, धन से लेकर यौनवर्धक दवा में होता है प्रयोग

वन्य जीव तस्करी में इंटरनेट विलेन बन चुका है। इंटरनेट पर इन संरक्षित वन्य जीवों की कोड वर्ड में खरीद-फरोख्त होती है। इसके लिए हजारों-लाखों रुपये की कीमत लगती है।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 01:51 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 07:17 PM (IST)
Video: चौंकाती है कछुओं की तस्करी की ये कहानी, धन से लेकर यौनवर्धक दवा में होता है प्रयोग
Video: चौंकाती है कछुओं की तस्करी की ये कहानी, धन से लेकर यौनवर्धक दवा में होता है प्रयोग

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। घर में सुख-शांति और धन की कामना किसे नहीं होती, लेकिन इसकी कीमत किसी बेजुबान की जान हो तो बात समझ से परे है। वो भी तब, जबकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार न होकर केवल अंधविश्वास हो। धन, सुख-शांति, वास्तु से लेकर यौनवर्धक के तौर पर संरक्षित वन्य जीवों की तस्करी, भारत के संरक्षित वन्य जीवों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं और यूपी इन तस्करों का मुख्य अड्डा। इन जीवों की तस्करी में सोशल मीडिया और इंटरनेट विलेन की भूमिका निभा रहे हैं।

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पिछले कुछ सालों से यूपी में एक खास किस्म के कछुओं की तस्करी जोरों पर है। यूपी से इन कछुओं की दुनिया भर में ऊंची कीमत पर तस्करी हो रही है। शुक्रवार को यूपी एसटीएफ ने ऐसे ही एक गिरोह के चार तस्करों को गिरफ्तार किया है। एसटीएफ के एसपी सत्यसेन यादव के अनुसार गिरफ्तार तस्करों के पास से से विशेष प्रजाति के 327 कछुए बरामद हुए हैं। बरामद कछुओं को स्पोडिड पोंड टर्टल या रेड सेंड टर्टल के नाम से जाना जाता है। ये कछुए जियोटलिनिस जीनस प्रजाति के हैं।

यहां पाए जाते हैं ये संरक्षित कछुए
ये कछुए सामान्यतः दक्षिण भारत की नदियों में पाए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के इटावा के आसपास चंबल के करीब खेतों में भी ये कछुए बहुतायत मात्रा में मिलते हैं। इस इलाके में चंबल, यमुना, सिंधु, क्वारी और पहुज जैसी अहम नदियों के अलावा छोटी नदियों और तालाबों में कछुओं की भरमार है। यहीं से इनकी तस्करी दुनिया भर में हो रही है। एसटीएफ द्वारा बरामद किए गए कछुए भी इटावा की बसेहर रेंज से तस्करी कर लाए गए थे, जिन्हें पश्चिम बंगाल भेजा जाना था। वहां से इन कछुओं को मेलिशाय, चीन, थाईलैंड, बैंकॉक समेत कई देशों में ऊंची कीमत पर तस्करी कर बेचा जाता है। आइये जानते हैं इन बेहद खूबसूरत और संरक्षित कछुओं की तस्करी का क्या उद्देश्य है।

वास्तु दोष दूर करने के लिए
आपने बहुत से घरों, दुकान या अन्य प्रतिष्ठानों में छोटे से पानी के पात्र में चांदी या मार्बल का बना कछुआ रखा देखा होगा। इन्हें वास्तुशास्त्रियों की सलाह पर वास्तु दोष दूर करने और सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है। इसकी जगह अब भारत समेत दुनिया के कई देशों में लोग घरों की खूबसूरती बढ़ाने और वास्तु दोष दूर करने के लिए कांच के बर्तन में असली कछुओं को पालने लगे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि घर में कछुआ रखने से धन यानि लक्ष्मी आती है। इस तरह की भ्रांतियां इन संरक्षितों जीवों की जान पर खतरा साबित हो रही हैं।

यौनवर्धक के तौर पर
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था के डॉ. राजीव चौहान बताते हैं कि विदेशों में इन कछुओं की कीमत काफी ज्यादा होती है। भारत के कुछ राज्यों और कई देशों में इन कछुओं का इस्तेमाल यौनवर्धक के तौर पर भी होता है। इस वजह से इनकी मांग और बढ़ जाती है।

मांस खाने के लिए
पूर्वोत्तर भारत समेत कुछ राज्यों में कछुए का मांस खाने का भी चलन है, जो कि प्रतिबंधित है। लिहाजा गैरकानूनी तरीके से मांस के लिए भी इनकी बिक्री होती है। भारत समेत एशिया के लगभग सभी देशों में कछुए का मांस खाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कछुए का मांस बहुत गुणकारी होता है। हालांकि, इसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

1979 में इन कछुओं को बचाने की शुरू हुई थी पहल
सरकार ने वर्ष 1979 में लुप्त प्राय इन कछुओं को संरक्षित घोषित कर इन्हें बचाने की मुहिम शुरू की ती। इसके लिए चंबल नदी के तकरीबन 425 किलोमीटर में फैले तट से सटे हुए इलाके को राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य घोषित किया गया था। इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में पाए जाने वाले घड़ियाल, कछुओं और गंगा में पाई जाने वाली राष्ट्रीय जल जीव डॉल्फिन का संरक्षण करना था। इस संरक्षित अभ्यारण्य का क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश व राजस्थान तक फैला हुआ है। इसमें से करीब 635 किलोमीटर का हिस्सा उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा जिले में आता है। इसी वजह से इटावा इन कछुओं की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का गढ़ बन चुका है।

38 साल में एक लाख से ज्यादा कछुए बरामद
चंबल किनारे के क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित करने के बाद वर्ष 1980 से अब तक 38 वर्षों में इटावा क्षेत्र से ही यूपी पुलिस, एसटीएफ व वन्य विभाग समेत अन्य एजेंसियां ने 100 से ज्यादा वन्य जीव तस्कर गिरफ्तार किए हैं। इनके पास से कुल लगभग एक लाख संरक्षित कछुए बरामद किए जा चुके हैं। शुरूआत में एजेंसियां को न तो इन जीवों की तस्करी की जानकारी थी और न ही उनके पास इन तस्करों से निपटने के लिए पर्याप्त संशाधन और सूचनाएं थीं। पिछले 10 वर्षों में एजेंसियों ने तस्करों पर काफी हद तक शिकंजा कसा है। बावजूद यहां वन्य जीवों की तस्करी बदस्तूर जारी है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले दो वर्षों में ही इटावा के लगभग 20 तस्करों को गिरफ्तार कर 12,000 से ज्यादा कछुए बरामद किए गए हैं। अकेले यूपी एसटीएफ ने वर्ष 2018 में इस क्षेत्र से 2489 संरक्षित कछुए और 171 किलो कछुओं की केनोपी (ऊपर का कवच) बरामद किया है।

सैकड़ों से लेकर लाखों तक में है कीमत
एसटीएफ के एसएसपी अभिषेक सिंह के अनुसार इटावा में ये कछुए आसानी से खेतों में मिल जाते हैं। लिहाजा तस्कर इन्हें जमा करते रहते हैं। काफी मात्रा में जमा करने के बाद तस्कर इन्हें बोरों में भरकर पश्चिम बंगाल भेजते हैं। पहले इसके लिए तस्कर ट्रक का इस्तेमाल करते थे। अब पुलिस से बचने के लिए ये लोग लग्जरी कारों का इस्तेमाल करते हैं। तस्करों को प्रत्येक कछुए के लिए 50-250 रुपये तक मिलते हैं। पश्चिम बंगाल में ये कछुए 500 से 1000 रुपये तक में बिकते हैं। विदेश में इनकी कीमत हजारों या कई बार लाखों रुपये हो जाती है। ये कछुए की प्रजाति और आयु आदि पर निर्भर करता है। जिंदा कछुओं की कीमत सबसे ज्यादा होती है, क्योंकि उनका खोल (कवच) और मांस ताजा मिलता है।

इस तरह से होती है तस्करी
इन कछुओं को पश्चिम बंगाल ले जाकर वहां से अवैध तरीके से बांग्लादेश पहुंचाया जाता है। इसके बाद ये कछुए चीन, हांगकांग, मलेशिया, थाईलैंड आदि देशों में सप्लाई किए जाते हैं। इन देशों में कछुए का मांस, सूप और चिप्स काफी पसंद किया जाता है। साथ ही इसके कवच से यौनवर्धक दवाएं और ड्रग्स बनाई जाती है। कछुओं के खोल से तरह-तरह का सजावटी सामान, आभूषण, चश्मों के फ्रेम आदि भी बनाए जा रहे हैं। इंडियन स्टार टॉर्ट्स को तस्करी कर भारत से अमेरिका के फ्लोरिडा या नेवादा या यूके के हैंपशायर तक भेजा जाता है। सी-कुकुंबर को म्यांमार भेजा जाता है और भारतीय तोते को ऑस्ट्रेलिया तक तस्करी कर भेजा जाता है। बैंकॉक पालतू जीव-जंतूओं के लिए सबसे बड़ा बाजार है।

चीन में सालाना 73 हजार कछुए मारे जाते हैं
टॉरट्वाइज इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले चीन में कछुओं की खोल (कवच) से जेली बनाने के लिए प्रति वर्ष 73 हजार कछुए मारे जाते हैं। इस मांग को पूरा करने के लिए चीन कई देशों से कानूनी या गैरकानूनी तरीके से कछुए मंगाता है। इसके अलावा चीन के लोग कई तरह के पूचा-पाठ और भविष्यवाणी के लिए लंबे अरसे से कछुओं की खाल का इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन में कछुए की खाल से भविष्य बताने की कला को किबोकू कहा जाता है।

225 किश्म के हैं कछुए
पूरी दुनिया में 225 किश्म के कछुए पाए जाते हैं। सबसे बड़ा समुद्री कछुआ सामान्य चर्मकश्यप होता है। समुद्री कछुआ लगभग आठ फुट लंबा और 30 मन तक भारी हो सकता है। इसकी पीठ पर कड़े शल्कों की धारियां सी रहती हैं, जिन पर खाल चढ़ी होती है। भारत में भी कछुओं की लगभग 55 प्रजातियां पायी जाती हैं। इनमें साल, चिकना, चितना, छतनहिया, रामानंदी, बाजठोंठी और सेवार प्रमुख हैं।

जानवरों का ऑनलाइन कारोबार
वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) की साइबर विंग के अनुसार इंटरनेट और सोशल मीडिया वन्य जीवों की तस्करी में विलेन की भूमिका निभा रहे हैं। इनकी मदद से तस्कर दुनिया भर के खरीदारों से आसानी से संपर्क कर पा रहे हैं। वन्य जीवों के इस गैरकानूनी ऑनलाइन कारोबार मे उल्लू, मकड़ी, कछुए और खूबसूरत पक्षियों से लेकर कई तरह के संरक्षित और लुप्त प्राय वन्य जीव व पक्षी शामिल हैं। बीते करीब एक वर्ष में उत्तर भारत में कीड़े-चींटी आदि खाने वाले पैंगोलिन की तस्करी भी काफी तेजी से बढ़ी है।

इसके अलावा पूर्वोत्तर में पायी जाने वाली रंग-बिरंगी और खूबसूरत छिपकली तोकाय गेको भी ऑनलाइन बिक्री में शामिल है। आश्चर्यजनक ये है कि इस छिपकली के लिए खरीदार 20 लाख रुपये या इससे भी ऊंची कीमत देने को तैयार रहते हैं। इसी तरह दीपावली के दौरान उल्लुओं की ऑनलाइन तस्करी भी बढ़ जाती है। अनुमान है कि 200 से ज्यादा वेबसाइट इस ऑनलाइन तस्करी में सक्रिय हैं, जिन पर एजेंसियां नजर रख रही हैं।


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