विदेश में MBBS से पहले नीट हो सकता है जरूरी, केंद्र का नया प्रस्ताव अंतिम चरण में
नीट पास करके ही विदेश जाने को एमसीआइ का एनओसी मिलेगा।
नई दिल्ली (पीटीआई)। केंद्र सरकार विदेश जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए भी राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा (नीट) को अनिवार्य करने की योजना बना रही है। इसलिए विदेशी विश्वविद्यालयों में एमबीबीएस करने के इच्छुक छात्रों को पहले नीट को पास करना होगा। ताकि प्रतिभाशाली छात्रों का ही चयन हो।
केंद्र सरकार का नया प्रस्ताव अंतिम चरण में
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यह प्रस्ताव अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है। अधिकारी का कहना है कि विदेश जाकर चिकित्सा की पढ़ाई करके लौटने के बाद करीब 12 से 15 फीसद स्नातक ही फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) को पास कर पाते हैं। अगर वह यह परीक्षा पास नहीं कर पाते तो उन्हें भारत में प्रैक्टिस करने के लिए रजिस्टर नहीं किया जाता है। यह परीक्षा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) आयोजित कराती है।
अधिकारी ने बताया कि विदेश से पढ़कर डॉक्टरों का पंजीकरण ना हो पाने की सूरत में वह अवैध रूप से या फिर कोई जालसाजी करके बतौर डॉक्टर प्रैक्टिस करने लगते थे। यह घातक हो सकता है। इसलिए सरकार अब यह सुनिश्चित करना चाहती है कि केवल प्रतिभाशाली छात्रों को ही विदेशी विश्वविद्यालय में मेडिसिन की पढ़ाई करने का मौका मिले। मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि अगर सरकार के नए प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई तो भारत के बाहर मेडिसिन की शिक्षा ग्रहण करने के इच्छुक लोगों को अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) तभी मिलेगा जब वह राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा (नीट) पास कर लेंगे।
गौरतलब है कि मौजूदा समय में जिन छात्रों को देश के किसी सरकारी या निजी मेडिकल कालेज में पढ़ना है, उन्हें वर्ष 2016 से अस्तित्व में आई राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा (नीट) को पास करना अनिवार्य है। लेकिन विदेश में एमबीबीएस करने के इच्छुक छात्रों को यह परीक्षा नहीं देनी पड़ती थी।
वर्तमान में विदेश में पढ़ने के लिए अनिवार्य है एमसीआइ का एक सर्टीफिकेट
मौजूदा समय में विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्र को भारत के बाहर किसी मेडिकल कालेज में एडमिशन लेने के लिए अनिवार्य रूप से एमसीआइ से एक सर्टीफिकेट लेना पड़ता था। हर साल करीब 7000 छात्र भारत के बाहर जाकर मेडिसिन की पढ़ाई करते थे। ज्यादातर भारतीय छात्र चीन और रूस में चिकित्सा की पढ़ाई करने जाते थे। अधिकारी ने स्पष्ट किया कि मौजूद आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों में विदेश में पढ़ने वाले स्नातकों के एफएमजीई परीक्षा पास करने का प्रतिशत 13 से लेकर 26.9 ही रहा है। यह वाकई चिंता की बात है। वह बाहर जाते हैं और अपनी चिकित्सा की पढ़ाई पर अपने मां-बाप के ढेर सारा पैसा खर्च कराते हैं। लेकिन भारत लौटकर आने के बाद वह स्वास्थ्य क्षेत्र में अपना योगदान देने के लायक नहीं रहते हैं।
कुछ शिकायतें ऐसी भी थीं कि एफएमजीई का पेपर बहुत ही कठिन होता है इसलिए विदेश से मेडिसिन पढ़ कर लौटने वालों के लिए इसे पास कर पाना मुश्किल होता है। लेकिन एफएमजीई सिलेबस की समीक्षा करने वाली कमेटी ने इसे पूरी तरह से उपयुक्त और सार्थक बताया।