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लोक सभा चुनाव से पहले सुस्त पड़ी ढांचागत परियोजनाओं की रफ्तार

2018 के अंत में देशभर में ऐसी 1443 परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं जिसमें से 360 परियोजनाएं (लगभग 25 प्रतिशत) निर्धारित समय से कई महीने पीछे चल रही हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 10:01 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 10:01 PM (IST)
लोक सभा चुनाव से पहले सुस्त पड़ी ढांचागत परियोजनाओं की रफ्तार
लोक सभा चुनाव से पहले सुस्त पड़ी ढांचागत परियोजनाओं की रफ्तार

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। चुनाव से पहले बड़ी परियोजनाओं की रफ्तार फिर सुस्त पड़ गयी है। निर्धारित समय के मुकाबले विलंब से चल रही परियोजनाओं का अनुपात भी बढ़ने लगा है। इसके चलते न सिर्फ इन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में देर हो रही है बल्कि उनकी लागत भी बढ़ रही है।

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सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की 'इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड प्रोजेक्ट मॉॅनिटरिंग डिवीजन' 150 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली केंद्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी करती है। ये परियोजनाएं पेट्रोलियम, बिजली, सड़क परिवहन, संचार, शहरी विकास, रेल, कोयला और नागर विमानन सहित विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों से संबंधित हैं।

मंत्रालय के अनुसार नवंबर 2018 के अंत में देशभर में ऐसी 1443 परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं जिसमें से 360 परियोजनाएं (लगभग 25 प्रतिशत) निर्धारित समय से कई महीने पीछे चल रही हैं। इसका मतलब यह है कि इन परियोजनाओं को जितने समय में पूरा होना चाहिए था, अब उससे कहीं अधिक समय लगेगा।

मंत्रालय के अनुसार ये 360 परियोजनाएं औसतन 44.43 माह विलंब से चल रही हैं। इनमें 100 से अधिक परियोजनाएं तो ऐसी हैं जो अपने निर्धारित समय के मुकाबले पांच साल बाद बनकर तैयार होंगी।

खास बात यह है कि विलंब से चल रही परियोजनाओं का अनुपात हाल में तेजी से बढ़ा है। उदाहरण के लिए मोदी सरकार के सत्ता में आने से ठीक पहले मार्च 2014 में 34.04 प्रतिशत योजनाएं विलंब से चल रहीं थीं। सरकार इस आंकड़े को जून 2018 तक 21.31 प्रतिशत के स्तर पर लाने में कामयाब भी रही, लेकिन इसके बाद फिर विलंब से चलने वाली परियोजनाओं का अनुपात बढ़ते हुए सितंबर 2018 में 27.29 प्रतिशत पर पहुंच गया।

सूत्रों के मुताबिक परियोजनाएं विलंब से चलने की वजहों में भूमि अधिग्रहण में विलंब और पर्यावरण मंजूरी न मिलना शामिल हैं।

परियोजनाओं के विलंब से चलने का सीधा प्रभाव उनकी लागत पर पड़ता है। मंत्रालय के अनुसार मंत्रालय के अनुसार मार्च 2014 में सेंट्रल सेक्टर की 150 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं की वास्तविक लागत उनकी मूल लागत से 19.94 प्रतिशत थी। सरकार इसे घटाकर मार्च 2017 तक 10.85 प्रतिशत के स्तर पर लाने में कामयाब भी रही लेकिन उसके बाद फिर से यह आंकड़ा सितंबर 2018 में बढ़कर 19.73 प्रतिशत हो गया।

नवंबर 2018 के अंत में विलंब से चल रहीं 360 परियोजनाएं

विलंब संख्या

1 से 12 माह 106

13 से 24 माह 60

25 से 60 माह 93

61 माह से अधिक 101

150 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं की लागत वृद्धि व विलंब का अनुपात (प्रतिशत में)

लागत वृद्धि विलंब परियोजनाओं का अनुपात

मार्च 2014 19.29 34.04

मार्च 2015 19.94 45.74

मार्च 2016 12.59 35.2

मार्च 2017 10.85 27.92

जून 2017 10.94 25.77

सितंबर2017 12.7 25.27

दिसंबर2017 13.87 24.47

मार्च2018 14.1 21.6

जून2018 19.9 21.31

सितंबर2018 19.73 27.29।


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