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चुनावी नवाचार को मिले रफ्तार, इंटरनेट मीडिया और डाटा विश्लेषण पर खासा जोर

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तकनीकी मोर्चे पर जो दल अभी पिछड़े हैं उन्हें सीखने में समय लगेगा पर कोविड महामारी को देखते हुए वचरुअल रैली एक बेहतर विकल्प है। कोविड आपदा चुनावी नवाचार के लिए भी एक अवसर लेकर आई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 15 Jan 2022 04:46 PM (IST)Updated: Sat, 15 Jan 2022 04:46 PM (IST)
चुनावी नवाचार को मिले रफ्तार, इंटरनेट मीडिया और डाटा विश्लेषण पर खासा जोर
वचरुअल रैलियों में एक बार हुआ निवेश लंबे समय तक लाभ देता रहेगा। फाइल फोटो

रिजवान अंसारी। जबसे कोविड महामारी ने दस्तक दी है तबसे हमें जीवन के कई क्षेत्रों में नए प्रयोग करने पड़े हैं। इन प्रयोगों की छाप अब देश में होने वाले चुनावों पर भी पड़ रही है। कोरोना की तीसरी लहर के बीच हो रहे राज्यों के विधानसभा चुनाव में संक्रमण के खतरे को देखते हुए चुनाव आयोग ने वचरुअल संवाद को प्रोत्साहन देने की नीति अपनाई है। इसने एक नई बहस भी छेड़ दी है।

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कुछ पार्टियां वचरुअल रैली को खर्चीला बता रही हैं तो कुछ इसे सस्ता और सुलभ मान रही हैं। रैलियों में भीड़ जुटाने और उसके प्रबंधन के लिए तमाम तरह के इंतजाम करने पड़ते हैं। इससे अक्सर आम लोगों को भी कुछ परेशानियां उठानी पड़ती हैं। इसके विपरीत वचरुअल रैली में तकनीकी विशेषज्ञों की टीम तैयार करने से लेकर उपकरणों की खरीद पर ही मुख्य रूप से खर्च होता है। ऐसे में कुछ पार्टियां खासकर क्षेत्रीय और छोटे दल वचरुअल रैली को लेकर असुविधा जाहिर कर रहे हैं। उनका मानना है कि बड़े दल तो इस खर्चे का भार उठा सकते हैं, लेकिन वे फिलहाल ऐसी तैयारियों में सक्षम नहीं हैं।

वचरुअल रैली को लेकर एक चिंता इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक माध्यमों की पहुंच से जुड़ी है। सवाल है कि राजनीति के डिजिटलीकरण से कौन सी आबादी चुनाव अभियान से जुड़ पाएगी और कौन सी नहीं? राजनीति में डिजिटल क्रांति एक अच्छी पहल है, पर उसकी सीमाओं का भी संज्ञान लिया जाए। यह प्रक्रिया अभी मुख्यत: एकतरफा है। इसमें सामान्य रैलियों की तरह संवाद नहीं हो पाता और न ही अपेक्षित प्रतिक्रिया मिल पाती है। जहां तक खर्चो का सवाल है तो वचरुअल रैलियों की तैयारियों में एकबारगी खर्च लंबे समय के लिए पर्याप्त होगा। उपकरणों और तकनीक की खरीद एक बार करने से से दीर्घकालिक खर्च में राहत मिल सकती है। यही वजह है कि राजनीति में डिजिटलीकरण की ओर रुख तेजी से जारी है। राजनीतिक पार्टियों की डिजिटल विंग्स लगातार नई तकनीकों और विचारों के हिसाब से रणनीतियां बना रही हैं।

इंटरनेट मीडिया और डाटा विश्लेषण पर खासा जोर दिया जा रहा है। पार्टियां भी अपने ग्रामीण कार्यकर्ताओं को तकनीक में माहिर बनाने में जुटी हैं। यह सच है कि शुरुआत में वचरुअल रैली पर बहुत ज्यादा खर्च आने वाला है। इसलिए, जो दल इसका भार उठाने में सक्षम नहीं हैं, वे संचार माध्यमों के चतुराई भरे इस्तेमाल से बाजी जीत सकते हैं। स्मार्टफोन के जरिये पार्टियां करोड़ों लोगों तक पहुंचने की रणनीति बना सकती हैं। वाट्सएप सहित मैसेंजर, वीडियो काल और मीटिंग एप्स का प्रयोग किया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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