Move to Jagran APP

स्टीविया के आगे चीनी की मिठास को भूल जाएंगे आप, इसके एक नहीं कई हैं फायदे

स्‍टीविया को चखने के बाद आप चीनी की मिठास भूल जाएंगे। अब इसकी खेती छत्‍तीसगढ़ में की जा रही है। इसकी खासियत जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 01:06 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 01:06 PM (IST)
स्टीविया के आगे चीनी की मिठास को भूल जाएंगे आप, इसके एक नहीं कई हैं फायदे
स्टीविया के आगे चीनी की मिठास को भूल जाएंगे आप, इसके एक नहीं कई हैं फायदे

रायपुर [जागरण स्‍पेशल]। शक्कर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य में गन्‍ने की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कई शक्‍कर कारखाने भी स्थापित हुए, लेकिन पानी की कमी और अधिक रकबा उपयोग होने की वजह से योजना सफल नहीं हो पा रही है। ऐसे में स्टीविया की खेती छत्तीसगढ़ में मिठास का नया विकल्प बन सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार यदि गन्‍ने की जगह वैकल्पिक तौर पर स्टीविया की खेती की जाए तो करीब 4.17 मिलियन हेक्टेयर भूमि अन्य फसलों के काम आ सकती है। साथ ही सिंचाई जल की भी बड़ी बचत होगी, क्योंकि स्टीविया के उत्पादन में गन्‍ने के मुकाबले सिर्फ 1 फीसद पानी की जरूरत होती है। राज्य सरकार ने खाद्य व पेय पदार्थ में स्टीविया के प्रयोग की अनुमती दे दी है और इसी के साथ राज्य के कोंडागांव में देश का पहला स्टीविया शुगर प्लांट भी स्थापित हो रहा है।

loksabha election banner

प्रायोगिक खेती में मिली बड़ी सफलता
प्रायोगिक तौर पर शुरू की गई स्टीविया (मीठी तुलसी) की खेती ने यहां के किसानों को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिला रही है। दरअसल, कोंडागांव के 400 किसानों ने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह बनाकर स्टीविया की खेती शुरू की। किसानों के इस अनोखे प्रयोग को अब भारत सरकार के उपक्रम सीएसआइआर (काउंसिल ऑफ सांइटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) ने भी मान्यता दे दी है। बहुत जल्द पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के सहयोग से कोंडागांव में मीठी तुलसी की पत्ती से शक्कर बनाने का निजी कारखाना भी शुरू होने जा रहा है। यह देश का ऐसा पहला कारखाना होगा जहां मीठी तुलसी से शुगर फ्री शक्कर बनेगी। मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से जुड़े राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि अब छत्तीसगढ़ के साथ-साथ आंध्र प्रदेश और ओडिशा के भी किसान इस समूह से जुड़ने लगे हैं।

बस्तर में एक हजार एकड़ में हो रही खेती
बस्तर में एक हजार एकड़ में इसकी औषधीय खेती की जा रही है। इसकी मार्केटिंग के लिए किसानों ने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह का गठन किया है। यह समूह किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का भी काम कर रहा है। बस्तर के स्टीविया की मांग दूसरे कई देशों में भी बढ़ रही है। कई विदेशी कंपनियां स्टीविया का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए कर रही हैं।

कड़वाहट से मुक्त है छत्तीसगढ़ में विकसित नई प्रजाति
शक्कर से तीन सौ गुना ज्यादा कुदरती मिठास देने वाली पराग्वे (अमेरिका) मूल की फसल स्टीविया की खेती से अब यहां के किसान भी अच्छी कमाई करने लगे हैं। स्टीविया के पौध एक बार लगाने पर पांच साल तक फसल देते हैं। हर दो महीने पर इसकी पत्तियां तोड़कर सुखाने के बाद 80 से 100 रुपये प्रति किलो के भाव से किसान इसे बाजार में बेच देते हैं। यह मिठास एक प्राकृतिक विकल्प है। इसमें अनेक औषधीय गुण और जीवाणुरोधी तत्व हैं। स्टीविया शरीर में चीनी की तरह दुष्प्रभाव भी नहीं डालता। शुरुआती दौर में स्टीविया के पौधों में थोड़ी कड़वाहट थी, लेकिन सीएसआइआर और दंतेश्वरी समूह ने मिलकर नई प्रजाति तैयार की। इससे इसकी कड़वाहट अब बेहद कम हो गई है।

खाद्य प्रसंसकरण उद्योगों की स्थापना के लिए भी खुलेंगे रास्ते
मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान माने जाने वाले पौधे स्टीविया का तत्व स्टीवियोसाइड केलोरी रहित, विष रहित मीठा यौगिक है। यह शरीर में चीनी की तरह के दुष्प्रभाव नहीं डालता। यह मधुमेह, हृदय रोग और मोटापे में लाभदायक है। यह स्वाद बढ़ाने वालाए हर्बल चाय और फार्मास्युटिकल, खाद्य एवं पेय में इसका उपयोग बढ़ रहा है। राज्य में इसकी खेती कस रकबा बढ़ने से नए खाद्य प्रसंसकरण उद्योगों की स्थापना के लिए भी रास्ते खुलेंगे।

किसानों को मिल रही खेती के लिए सब्सिडी
2022 तक स्टीविया के बाजार में लगभग 1000 करोड़ रुपए की और बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसे देखते हुए नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (एनएमपीबी) ने किसानों को स्टीविया की खेती पर 20 फीसदी सब्सिडी देने की घोषणा की है। भारतीय कृषि विश्वविद्यालय के शोध में ये बात सामने आयी है कि स्टीविया की पत्तियों में प्रोटीन व फाइबर अधिक मात्रा में होता है। कैल्शियम व फास्फोरस से भरपूर होने के साथ इन पत्तियों में कई तरह के खनिज भी होते हैं। इसलिए इनका उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए किया जाता है। इसके अलावा मछलियों के भोजन और सौंदर्य प्रसाधन व दवा कंपनियों में बड़े पैमाने पर इन पत्तियों की मांग होती है।

भारत की जलवायु के उपयुक्त
स्टीविया की अच्छी गुणवत्ता वाली तथा एक समान मिठास की मात्रा वाली पत्तियों के अधिकतम उत्पादन के लिए, स्टीविया की एमडीएच 13 एवं एमडीएच 14 प्रजाति के पौधों को सर्वोत्तम माना गया है। यह पौधे टिश्यू कल्चर की विशिष्ट तकनीक से तैयार किये जाते हैं। टीस्यू कल्चर के पौधे सामान्यत: 5-8 रुपए प्रति पौधे मिलते हैं।

स्टीविया की खेती से जुड़े प्रमुख तथ्य-
- इसकी चीनी गन्‍ने की चीनी से 300 गुनी मीठी, फिर भी जीरो कैलोरी
- अमेरिका, यूरोप, जापान सहित 40 से अधिक देश कर रहे हैं इसका प्रयोग
- वर्तमान में चीन से आयात कर रहा है भारत स्टीविया की चीनी, चीन है इसका प्रमुख उत्पादक
- स्टीविया एक एकड़ की खेती गन्न्े की 30 एकड़ के बराबर ( शक्कर के उत्पादन की तुलना में)
- गन्‍ने की तुलना में इसे सिंचाई हेतु केवल 1 फीसद एक प्रतिशत पानी की जरूरत
- इसकी खेती से देश में गन्‍ने की खेती में लगी हुई 97 प्रतिशत यानी कि 4.17 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि, अन्य फसलों की खेती के लिए मिल जाएगी।
- स्टिविया की खेती से प्रति एकड़, 3-4 लाख तक की वार्षिक आमदनी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.