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संकट के दौर में राहत का अहसास है केंद्र-राज्‍यों द्वारा स्‍कूली छात्रों को डिजिटल उपकरण मुहैया कराने की योजना

कोरोना काल में शिक्षा पर सबसे बुरा असर पड़ा है। ऑनलाइन क्‍लासेस के लिए जरूरी चीजों के न होने से बड़ी संख्‍या में छात्रों का नुकसान हुआ है। अब केंद्र और राज्‍य सरकारों ने इसकी राह आसान बनाने की पहल की है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 17 Dec 2020 02:52 PM (IST)Updated: Thu, 17 Dec 2020 02:52 PM (IST)
संकट के दौर में राहत का अहसास है केंद्र-राज्‍यों द्वारा स्‍कूली छात्रों को डिजिटल उपकरण मुहैया कराने की योजना
सरकारें मुहैया करवाएंगी छात्रों को डिजीटल उपकरण

डॉ. दर्शनी प्रिय। हाल ही में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा स्कूली छात्रों को लैपटॉप और अन्य डिजिटल उपकरण मुहैया कराने का एलान संकट के दौर में राहत का अहसास कराने वाला है। इस खबर ने लाखों मासूम चेहरों पर आशा की नई चमक बिखेर दी है। आधुनिक शिक्षा की दिशा में यह एक व्यावहारिक कदम साबित होगा। निश्चित तौर पर कोरोना से शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा है। दूरदराज के ग्रामीण इलाके तो शिक्षा से वंचित हो गए हैं। कक्षा से कटे छात्रों में सीखने-समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। आíथक रूप से कमजोर स्कूली बच्चे लैपटॉप, टैबलेट जैसे उपकरणों के अभाव में ऑनलाइन पढ़ाई में कहीं पीछे छूटते दिख रहे हैं।

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ऑनलाइन शिक्षा के जरिये बेशक बच्चों की पढ़ाई पटरी पर लाने की बात जोर-शोर से की जा रही हो, लेकिन इसकी राह की अड़चनें बताती हैं कि समग्र डिजिटलीकरण की राह आसान नहीं। एक गैर सरकारी संस्था चाइल्ड रिलीफ एंड यू (क्राइ) के सर्वे लर्निंग ब्लॉक्स के मुताबिक, भारत के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल एक शिक्षण संस्थान की बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते। देश के 44 प्रतिशत और पूर्वी भारत के करीब 74 प्रतिशत स्कूलों में बिना बिजली के पढ़ाई हो रही है। ऐसे में बच्चों को कंप्यूटर के जरिये शिक्षा देने की संभावना कम हो जाती है। आंकड़े बताते हैं कि देशभर में करीब डेढ़ लाख सरकारी एवं निजी स्कूल हैं।

करीब 60 साल पहले चलाए गए ब्लैकबोर्ड अभियान को अब तक मुकाम पर नहीं पहुंचाया जा सका है। एक तरफ स्कूलों में स्मार्ट क्लास लगाने और बच्चों को टैबलेट देने की बात कही जा रही है, तो दूसरी ओर देश के एक चौथाई स्कूलों में ब्लॉकबोर्ड ही नहीं हैं। लिहाजा निजी स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों के बच्चे स्मार्ट क्लास में पढ़ पाएंगे, इसकी उम्मीद कम है।

हाल में ऐसी खबरें भी आई हैं, जहां माता-पिता ने बहुत कुछ दांव पर लगा कर बच्चों के लिए लैपटॉप और स्मार्टफोन खरीदा, फिर भी करीब 28 प्रतिशत विद्यार्थी शिक्षा से वंचित रह गए। जिनके पास स्मार्टफोन है भी, उन्हें इंटरनेट की पहुंच और स्पीड से लेकर बिजली की कटौती जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि देश में अनेक राज्यों के सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं पहुंची है। देश में लगभग 81 प्रतिशत स्कूलों तक ही बिजली की सुविधा पहुंची है। इसलिए बच्चों की पढ़ाई के लिए कंप्यूटर, लैपटॉप, राउटर, प्रिंटर जैसी चीजों को भी जरूरी चीजों के सरकारी वितरण की सूची में डाला जाए तो इस दिशा में बेहतर प्रयास होगा।

यूनिसेफ के मुताबिक, ऑनलाइन एक पावरफुल माध्यम जरूर है, लेकिन समुचित सुविधा के अभाव में सभी तक पहुंच कायम करना आसान नहीं है। स्कूलों में बुनियादी स्तर पर तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए संरचनागत ढांचों को तो सुधारना ही होगा। स्कूलों में बुनियादी व जरूरी सुविधाएं भी मुहैया करानी होगी। सतत संकल्प और निष्ठा से ही इस ओर अग्रसर हुआ जा सकेगा। दुर्गम इलाकों के स्कूलों में बिजली पहुंचाने के काम को प्राथमिकता देनी होगी, तभी ही समग्र डिजिटलाइजेशन की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा।

शिक्षा सुलभ हो और सब तक पहुंचे, इसके लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली की भी दरकार होगी। साथ ही कुशल और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति से ई-लíनंग प्रोग्राम को सुगमता से आगे बढ़ाया जा सकेगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर एक व्यापक, दूरदर्शी और प्रभावी प्रारूप तैयार करना होगा ताकि डिजिटलाइजेशन की राह को सुदूर इलाकों में आसान बनाया जा सके। इसकी राह के अवरोधों को दूर किए बगैर स्कूलों को स्मार्ट स्कूल की दिशा में आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा और न ही बच्चों को स्मार्ट शिक्षा से जोड़ा जा सकेगा।

(शिक्षा मामलों की जानकार)


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