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तंगी व तकलीफों के बीच कड़ी मेहनत और लगन के बूते हासिल किया ये मुकाम

एशियन हैंडबॉल फेडरेशन ने नीना शील को हाल में दुनिया की नंबर एक महिला गोलकीपर के खिताब से भी नवाजा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 10:05 AM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 10:12 AM (IST)
तंगी व तकलीफों के बीच कड़ी मेहनत और लगन के बूते हासिल किया ये मुकाम
तंगी व तकलीफों के बीच कड़ी मेहनत और लगन के बूते हासिल किया ये मुकाम

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। नीना मुफलिसी में चमका हुआ नगीना है। 19 साल की यह बंगाली बाला आज भारतीय महिला हैंडबॉल टीम की स्टार गोलकीपर है। एशियन हैंडबॉल फेडरेशन ने उसे हाल में दुनिया की नंबर एक महिला गोलकीपर के खिताब से भी नवाजा है। नीना शील ने यह असाधारण उपलब्धि तंगी और तकलीफों के बीच कड़ी मेहनत और लगन के बूते हासिल की है।

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आर्थिक अभाव के कारण उसे न तो घर से समर्थन मिल पाया और न ही इलाके में इस खेल के लिए पर्याप्त आधारभूत संरचना। नीना अभ्यास करने रोजाना ट्रेन पकड़कर कोलकाता आती थी और वहां आठ घंटे कड़ा अभ्यास करती थी। प. बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के घुटियारी शरीफ की रहने वाली नीना 10 साल की छोटी सी उम्र से हैंडबॉल खेल रही है। बताती हैं, मैं जब बहुत छोटी थी, उस समय कुछ लड़कियों को हैंडबॉल खेलते देखा करती थी। उन्हें देखकर ही इस खेल के प्रति दिलचस्पी जगी। 10 साल की हुई तो मैंने भी हैंडबॉल खेलना शुरू किया। सजल लाल विश्वास मेरे पहले कोच थे। उन्होंने मेरे खेल को काफी निखारा। इसके बाद अतनु मजुमदार ने मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तैयार किया...।

नीना जकार्ता, इंडोनेशिया में हुए 18वें एशियन गेम्स, हांगकांग में आयोजित एशियन जूनियर हैंडबॉल मीट, स्वीडन में हुए पार्टिली कप जैसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं। नीना के खेल को देखते हुए उन्हें रेलवे की तरफ से गोरखपुर, उप्र में टिकट निरीक्षक की नौकरी मिली है। नीना की निगाहें अब अगले साल जनवरी में महाराष्ट्र में होने वाले सीनियर नेशनल हैंडबॉल टूर्नामेंट पर है। पिता समर कुमार शील की कपड़े की छोटी सी दुकान है। उसी से किसी तरह परिवार का गुजर-बसर होता है। मां बीना गृहिणी है।

नीना ने जब हैंडबॉल में करियर बनाने के बारे में ठानी तो शुरू में घरवालों का समर्थन नहीं मिला। बताती हैं, पिता चाहते थे कि उनकी बेटी मुक्केबाज बने। उन्होंने कहा कि खेलना ही है तो उस खेल को खेलो जिसमें भविष्य हो। बाहरवालों ने भी कहा कि हैंडबॉल खेलकर कोई फायदा नहीं होने वाला, लेकिन मैंने ठान लिया था कि हैंडबॉल में ही कुछ कर दिखाना है। नीना भारत को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जिताना चाहती हैं। कहती हैं, हमारा देश ओलंपिक में इस खेल के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाता। मैं न सिर्फ अपने देश को क्वालीफाई कराना बल्कि स्वर्ण पदक जिताना चाहती हूं। मैं जानती हूं कि ये इतना आसान नहीं है, लेकिन ठान लिया जाए तो नामुमकिन कुछ नहीं।

विडंबना है कि यूरोपीय देशों में हैंडबॉल बेहद मशहूर खेल है जबकि भारत में बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं। हैंडबॉल आइस हॉकी के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेजी से खेला जाने वाला इंडोर गेम है। इसलिए यह कतई आसान नहीं है। इसके लिए काफी स्टैमिना और स्फूर्ति की जरूरत पड़ती है।

पूर्व हैंडबॉल खिलाड़ी एवं कोच अतनु मजुमदार कहते हैं, नीना 2012 में मेरे पास आई थी। तब वह बहुत दुबली-पतली थी और उसे कुछ शारीरिक समस्याएं भी थीं। लेकिन मैंने उसमें गजब की लगन देखी। उसमें खेल के प्रति ऐसा समर्पण भाव था कि 10 घंटे अभ्यास कराने पर भी वह अपना 100 प्रतिशत देती थी। आज यह मुकाम उसने अपनी मेहनत और लगन के बूते ही पाया है। 


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