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कोरोना काल के बाद स्पेशल फंडिंग से ही सुधरेंगे हालात, इकोनॉमी की गति के लिए जरूरी

जानकार मानते हैं कि जब तक एनबीएफसी के लिए फंड जुटाने की ठोस व्यवस्था नहीं होंगी समस्याएं बनी रहेंगी। आरबीआइ और सरकार की तरफ से स्थिति सुधारने की कोशिश चल रही है लेकिन इनसे सिर्फ बड़ी एनबीएफसी के लिए ही राह बन पाएगी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 02 Apr 2021 07:56 PM (IST)Updated: Fri, 02 Apr 2021 07:56 PM (IST)
कोरोना काल के बाद स्पेशल फंडिंग से ही सुधरेंगे हालात, इकोनॉमी की गति के लिए जरूरी
कोरोना काल के बाद स्पेशल फंडिंग से ही सुधरेंगे हालात, इकोनॉमी की गति के लिए जरूरी। फाइल फोटो।

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। देश में जब भी किसी तरह का वित्तीय संकट पैदा होता है, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) खुद को मुश्किल में पाती हैं। 2008-09 और 2016-17 में ऐसे हालात बन चुके हैं। परेशानी आते ही बढ़ते एनपीए की आशंका से बैंकिंग संस्थान एनबीएफसी को फंड उपलब्ध कराने से हाथ खींचना शुरू कर देते हैं। पहले आइएलएंडएफएस और उसके बाद हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की डीएचएफएल जैसी ट्रिपल ए (निवेश के लिहाज से बेहद सुरक्षित) रेटिंग वाली एनबीएफसी का किला ध्वस्त हो गया। इसके बाद कई दूसरी प्रतिष्ठित एनबीएफसी की रेटिंग घटाने से समस्या और विकराल हो गई।

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जानकार मानते हैं कि जब तक एनबीएफसी के लिए फंड जुटाने की ठोस व्यवस्था नहीं होंगी, समस्याएं बनी रहेंगी। आरबीआइ और सरकार की तरफ से स्थिति सुधारने की कोशिश चल रही है, लेकिन इनसे सिर्फ बड़ी एनबीएफसी के लिए ही राह बन पाएगी। छोटे-छोटे लोन देने वाली एनबीएफसी पर अस्तित्व का संकट और गहरा होगा। नियमन की नई व्यवस्था पर रिजर्व बैंक ने हाल ही में एक रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इसमें एनबीएफसी को बहुत विशाल, बड़ी, मझोली और छोटी की श्रेणी में बांटकर अलग-अलग नियमन की सिफारिश है।

इसमें देश की शीर्ष 30 एनबीएफसी पर बैंकों जैसे सख्त नियम लागू करने की सिफारिश की गई है। इसमें एनबीएफसी रजिस्ट्रेशन के लिए न्यूनतम पूंजी की जरूरत मौजूदा दो करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये करने की बात है। यह एक तरह से बड़ी एनबीएफसी के लिए बेहतर दवा साबित हो सकती है लेकिन इससे छोटी कंपनियों के बाहर होने का खतरा बढ़ जाएगा। पिछले तीन वर्षो में आरबीआइ 2178 एनबीएफसी को बंद कर चुका है। नए नियमन से यह संख्या बढ़ सकती है।

हाल ही में दो बड़ी वित्तीय एजेंसियों क्रिसिल और एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट बताती है कि देश की छोटी-बड़ी एनबीएफसी की समस्या दूर होती नहीं दिख रही। देश की छोटी व मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए फंड जुटाने का काम करने वाली एनबीएफसी यू ग्रो कैपिटल के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन व एमडी शचीन्‍द्र नाथ ने कहा, 'हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमें वित्त के लिए दूसरे संस्थानों के भरोसे रहना पड़ता है। हाल ही में सरकार ने इन्फ्रा सेक्टर को वित्तीय सुविधा देने के लिए विशेष वित्तीय संस्थान बनाने का एलान किया है। इस तरह का एक संस्थान एनबीएफसी के लिए भी बनना चाहिए।'

आरबीआइ के नए नियमनों को उन्होंने सही दिशा में किए गए प्रस्ताव माना है। हालांकि, उन्होंने नए नियमनों में छोटी एनबीएफसी के लिए कोई ठोस प्रविधान न होने पर चिंता जताई। पूंजी आधार की सीमा दो करोड़ से 20 करोड़ करने से कई छोटी एनबीएफसी के बंद होने की नौबत आ सकती है। ऐसा सही नहीं होगा। पीएचडी चैंबर में कैपिटल मार्केट समिति के चेयरमैन विजय भूषण भी छोटी व मझोली एनबीएफसी की चिंताओं को प्राथमिकता में रखने की बात करते हैं। उनका कहना है कि आइएलएंडएफएस और डीएचएफएल के बाद इस सेक्टर में बड़े औद्योगिक घरानों वाली एनबीएफसी जैसे टाटा फाइनेंस, महिंद्रा फाइनेंस, एचडीएफसी हाउसिंग फाइनेंस, एलएंडटी फाइनेंस की स्थिति पहले से बेहतर हुई है।

वहीं छोटी व मझोली कंपनियों के लिए फंड जुटाना अब भी चुनौती है। आम जनता से पैसे जुटाने से लेकर कर्ज बांटने तक, हर जगह छोटी एनबीएफसी पर संकट है। देश में पिछले कुछ वर्षो में क्रेडिट ग्रोथ रेट नहीं बढ़ने के पीछे वजह एनबीएफसी की ओर से कर्ज वितरण में की गई कटौती ही है। कोरोना काल के बाद इकोनॉमी की गति के लिए लोन की गति निर्बाध रहना जरूरी है और इसमें एनबीएफसी की बड़ी भूमिका हो सकती है।


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