रॉकेट में खराबी आने पर अंतरिक्ष यात्रियों की कैसे जान बचाएगा स्पेस एक्स का कैपसूल, जानें
Space X ने लॉन्च के बाद होने वाले हादसों को काफी हद तक कम कर दिया है। उम्मीद की जाती है कि इस तकनीक से इन यात्रियों बचाई जा सकेगी।
नई दिल्ली (जेएनएन)। 28 जनवरी 1986 और 1 फरवरी 2003 का दिन अंतरिक्ष के इतिहास का बेहद दुखी करने वाला दिन है। 28 जनवरी को स्पेस शटल कोलंबिया अपनी उड़ान के चंद मिनट बाद ही आसमान में आग का गोला बन गया था और इसमें मौजूद सभी सात अंतरिक्ष यात्री मारे गए थे। इसी तरह से 1 फरवरी को हुए हादसे में भारत ने अपनी प्यारी बेटी कल्पना चावला को उस वक्त खो दिया था जब उनका स्पेस शटल कोलंबिया टेक्सास के आसमान पर था। उसी वक्त हुए एक धमाके ने कल्पना के साथ सात अंतरिक्ष यात्रियों की जान ले ली थी। ये हादसे केवल अकेले नहीं हैं जिन्होंने अंतरिक्ष यात्रियों को उनके अंतिम सफर पर निकाला था बल्कि इसी तरह के कुछ और भी उदाहरण इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
खतरों से भरा है अंतरिक्ष का सफर
दरअसल, अंतरिक्ष का सफर जितना रोमांचक है उतना ही चुनौतियों और खतरों से भरा है। कोलंबिया हादसे के समय ऐसी तकनीक नहीं थी कि क्रू मैंबर्स को बचाया जा सके। न ही ऐसा कुछ था जिससे मिशन को अबॉर्ट या रद करने का संकेत मिल सके। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद वैज्ञानिक इस तकनीक को खोजने और अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचाने के अपने लक्ष्य में कामयाब हो सके हैं। इसका यदि एक वाक्य में जवाब दिया जाए तो वो है स्पेस एक्स। जीहां, हम उसी स्पेस एक्स की बात कर रहे हैं जिसने कुछ ही दिन पहले नासा के अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में सफलतापूर्वक पहुंचाया है। पीपीपी मॉडल पर आधारित ये प्रोजेक्ट पहला ऐसा प्रोजेक्ट बन गया है जिसमें निजी हाथों के माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस पहुंचाया गा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका श्रेय स्पेस एक्स के चीफ एलन मस्क को ही जाता है।
अंतरिक्ष यात्रियों को बचाना संभव
उन्होंने ही वो तकनीक खोजी जिसके माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों को रॉकेट में लॉन्च के बाद आई खराबी के बावजूद बचाना संभव हो सका। दरअसल, स्पेस एक्स के ही बनाए कैपूसल में ये तमाम सुविधा दी गई है। ये कैपसूल रॉकेट में सबसे ऊपर लगता है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री बैठते हैं। इसमें ही इसका कंट्रोलर होता है। इस कैपसूल की सबसे बड़ी खासियत यही है कि रॉकेट में लॉन्च के बाद आई किसी भी खराबी की जानकारी तुरंत लग जाती है और रॉकेट के नष्ट होने से पहले ही कमांडर अपने कैपसूल को रॉकेट से अलग कर लेता है। इस कैपसूल में लगे इंजन इतना थ्रस्ट पैदा करते हैं कि ये कैपसूल खुद को कुछ ही सेकेंड में रॉकेट से कई किमी दूर ले जाता है। नीचे आने के दौरान इसमें लगा पैराशूट खूल जाता है और ये सुरक्षित जमीन या पानी में उतर जाता है। इस तरह से अंतरिक्ष यात्री उस बड़े हादसे से सुरक्षित बचे रह जाते हैं।
हवा में नष्ट फॉलकॉन रॉकेट
अंतरिक्ष में एतिहासिक सफलता को दर्ज करने से पहले स्पेस एक्स ने अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रखने की तकनीक का परीक्षण करने के लिए करोड़ों डॉलर की लागत से बने अपने फॉलकॉन रॉकेट को लॉन्च के कुछ सेकेंड के बाद हवा में नष्ट किया था। लेकिन इस प्रक्रिया से पहले ही कैपसूल अलग हो चुका था और सुरक्षित जमीन पर उतरने के लिए तैयार था। स्पेस एक्स की इस नई तकनीक ने दांव पर लगी अंतरिक्ष यात्रियों की जिंदगी के खतरे को काफी कम किया है। लेकिन खुद एलन मस्क मानते हैं कि अंतरिक्ष का सफर इसके बाद भी कम खतरे से भरा नहीं है। लेकिन हां, इस बात की उम्मीद जरूर की जाती है कि ये तकनीक भविष्य में भी अंतरिक्ष यात्रियों की जिंदगी बचाने में पूरी तरह से सफल हो सकेगी।
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