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Soumitra Chatterjee Dies: सौमित्र चटर्जी न होते तो सत्यजित राय नहीं जीत पाते ऑस्कर!

Soumitra Chatterjee Dies दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजे अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने सत्यजित राय की 14 फिल्मों में काम किया। इनमेंं अभिजान अरण्ये दिन रात्रि चारुलता सोनार केल्ला व अशनि संकेत आदि शामिल हैं। ये फिल्में बांग्ला सिनेमा की मील का पत्थर हैं।

By TaniskEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 01:53 PM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 08:23 PM (IST)
Soumitra Chatterjee Dies: सौमित्र चटर्जी न होते तो सत्यजित राय नहीं जीत पाते ऑस्कर!
सौमित्र चटर्जी और सत्यजित राय। (फाइल फोटो)

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। कहते हैं  एक फिल्म निर्देशक उतना ही अच्छा होता है, जितना उनके निर्देशन में काम करने वाले कलाकार। दोनों की सफलता एक-दूसरे से जुड़ी होती है।फिल्मी दुनिया में ऐसी कई सफल जोड़ियां हैं, लेकिन सत्यजित राय और सौमित्र चटर्जी इसकी बड़ी मिसाल हैं। यह कहना वाकई गलत नहीं होगा कि सत्यजित राय के पास अगर सौमित्र चटर्जी जैसा उम्दा कलाकार नहीं होता तो वे ऑस्कर नहीं जीत पाते।

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उसी तरह सौमित्र चटर्जी ने भारतीय फिल्म जगत में जो भारी नाम कमाया, उसमें सत्यजित राय का सबसे बड़ा योगदान रहा है। दोनों एक-दूसरे की पहचान थे। अन्य शब्दों में कहें तो एक-दूसरे के पूरक। एक जितना मंजा हुआ फिल्मकार, दूसरा उतना ही दक्ष कलाकार। एक-दूसरे की सफलता की गारंटी बन गए थे दोनों। इस जोड़ी ने 14 फिल्मों में  साथ काम किया, जिनमें अभिजान, चारुलता, अरण्येर दिन रात्रि, अशनि संकेत, सोनार केल्ला, जय बाबा फेलूनाथ, हीरक राजार देशे, घोरे बाइरे, शाखा प्रशाखा और गणशत्रु उल्लेखनीय हैं। ये तमाम फिल्में बांग्ला सिनेमा में मील का पत्थर कही जाती हैं।

सत्यजित राय की फिल्म से ही रुपहले परदे पर किया था पदार्पण

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार जयी सौमित्र चटर्जी ने सत्यजित राय की फिल्म से ही रुपहले परदे पर पदार्पण किया था। सत्यजित राय ने उन्हें 1959 में 'अपूर संसार' में अपू का मुख्य किरदार देकर बड़ा दांव खेला था। दरअसल सत्यजित राय की पारखी आंखों ने सौमित्र चटर्जी की विलक्षण प्रतिभा को पहली नजर में ही भांप लिया था। सौमित्र चटर्जी ने भी सत्यजित राय को निराश नहीं किया और दोनों साथ मिलकर सफलता की नई- नई गाथा लिखते चले गए। दोनों ने 1959 से 1990 तक यानी चार दशकों से भी अधिक समय के दौरान साथ में काम किया।

सौमित्र चटर्जी सत्यजित राय के सबसे पसंदीदा कलाकार थे

सौमित्र चटर्जी सत्यजित राय के सबसे पसंदीदा कलाकार थे। उन्होंने कई फिल्मों की कहानी और पटकथा सौमित्र चटर्जी को ध्यान में रखकर ही लिखी थी। फेलूदा/ प्रदोष चंद्र मिट्टर नामक जिस बांग्ला जासूसी किरदार ने सौमित्र चटर्जी के फिल्मी करियर को सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया था, उन दो  फिल्मों सोनार केल्ला और जय बाबा फेलूनाथ का निर्देशन सत्यजित राय ने ही किया था। सत्यजित राय-सौमित्र चटर्जी की जुगलबंदी ऐसी थी कि एक समय बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार के लिए भी वे कड़ी चुनौती बन गए थे। 

यूं शुरू हुई थी जुगलबंदी

सौमित्र चटर्जी सत्यजित राय की चौथी फिल्म 'जलसाघर' की शूटिंग देखने गए थे। उस समय तक उन्हें मालूम नहीं था कि सत्यजित राय की अगली फिल्म 'अपूर संसार' के लिए उनका चयन कर लिया गया है। शूटिंग देखकर जब वे घर लौट रहे थे, उसी समय सत्यजित राय ने उन्हें बुलाया और अपनी फिल्म में लिए जाने की जानकारी दी। यह सुनकर सौमित्र अवाक रह गए थे क्योंकि वे उस समय फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे जबकि सत्यजित राय स्थापित फिल्मकार थे। 

मृणाल सेन और तपन सिन्हा जैसे दिग्गज फिल्मकारों के साथ भी किया काम 

सौमित्र चटर्जी उन गिने-चुने अभिनेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने मृणाल सेन और तपन सिन्हा जैसे दिग्गज फिल्मकारों के साथ भी काम किया। इतना ही नहीं, 80 व 90 के दशक में सौमित्र चटर्जी ने गौतम घोष, अपर्णा सेन और रितुपर्णा घोष जैसी नामचीन फिल्म निर्देशकों के साथ भी काम किया। भारतीय फिल्म जगत में अमूल्य योगदान के लिए 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया था। 

सात फिल्मफेयर अवार्ड ( ईस्ट) जीते हैं

सौमित्र चटर्जी ने सात फिल्मफेयर अवार्ड ( ईस्ट) जीते हैं। बांग्ला फिल्म' पदक्षेप' में सशक्त अदाकारी के लिए उन्हें सर्वोत्तम अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। सौमित्र चटर्जी ऐसे पहले भारतीय फिल्म कलाकार है, जिन्हें 2017 में फ्रांस सरकार की तरफ से अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था। उससे तीन दशक पहले सत्यजित राय को भी फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था।

हिंदी फिल्मों में काम न करने का कभी नहीं रहा मलाल 

एक मुलाकात के दौरान सौमित्र चटर्जी ने कहा था उन्हें हिंदी फिल्मों में काम न करने का कभी मलाल नहीं रहा क्योंकि वे मानते थे कि हिंदी फिल्में उनके लिए नहीं हैं। वे बांग्ला फिल्मों में काम करके खुश और संतुष्ट हैं।


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