यहां मृतक की आत्मा को बाजार घुमाकर लाने से मिलता है मोक्ष, सदियों से चली आ रही परंपरा
आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि बाजार घूमकर आने पर ही मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
कोंडागांव, पूनमदास मानिकपुरी। बस्तर की आदिवासी परंपरा और संस्कृति में हाट-बाजार का विशेष महत्व है। वहां दूसरे गांवों के लोगों से मेल-मुलाकात और आपस में सुख-दुख की बातें भी होती हैं। आदिवासी अंचल में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने पर तीज नहानी और दस नहानी में अंतिम संस्कार के एक अंग के तौर पर आदिवासियों की मान्यता के अनुसार, मृतक की आत्मा को भी बाजार घुमाने ले जाने की परंपरा है। घर से कुछ दूर प्रतीकात्मक बाजार लगाया जाता है, जहां खरीदी-बिक्री भी होती है। आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि बाजार घूमकर आने पर ही मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है। जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत बफना के आश्रित गांव परसगांव में ऐसे ही सदियों पुरानी परंपरा दिखाई दी।
परसगांव निवासी भिखारी सोरी की मां दसाय बाई की 26 अगस्त को मौत हो गई थी। इसके तीन दिन बाद पारंपरिक रिवाज के साथ बाजार लगाने की परंपरा निभाई गई। शोकाकुल परिवार के सदस्य टोकरी में दीया रखकर पहुंचे और घर से कुछ दूर बाजार सजाया। अन्य लोग भी इस बाजार से खरीदारी करते नजर आए। यहां वास्तविक बाजार की तरह ही मोलभाव भी किया जा रहा था। इस रिवाज में शामिल होने पहुंचे सेवानृवित्त शिक्षक देवधर नेताम ने बताया कि उक्त परंपरा को बाजार निकालना कहते हैं जिसमें परिवारिक लोग ही शामिल होकर खरीदारी करते हैं।
बस्तर के आदिवासी समाज व उससे जुड़े बाजार के महत्व के बारे में गुंडाधुर महाविद्यालय कोंडागांव की प्राचार्य व समाजशास्त्री डॉ. किरण नुरेटी ने बताया कि गोड़ समाज में बाजार का बड़ा महत्व होता हैं। इसका महत्व बच्चे के जन्म के साथ ही जुड़ जाता है। जब किसी बच्चे का जन्म होता है तब सारे रिवाजों की तरह ही बाजार दिखाने की भी एक रस्म होती है। इसके साथ ही उसके सांसारिक जीवन की शुआत होती है। इसी तरह जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके आत्मा को जीवन का अंतिम बाजार दर्शन कराया जाता है। माना जाता है कि ऐसा न करने पर मृत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए परिवार के सदस्य मृत्यु संस्कार के साथ बाजार निकालने की रिवाज निभाते हैं।
बाजार में होता है एक चोर
डॉ. किरण नुरेटी ने बताया कि जिस तरह वास्तविक बाजार मे छोटी-मोटी चोरी होती है। ठीक उसी तरह इस रिवाज के दौरान एक व्यक्ति चोर का किरदार निभाता है जो मौका पाते ही बाजार के किसी भी दुकान से हाथ साफ करता है।