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Rising India: किसी ने मिट्टी, तो किसी ने धागे से संवारी किस्मत

कोरोनाकाल में सफलता की अनेक प्रेरक कहानियां गढ़ी गईं। किसी ने इसे मिट्टी से गढ़ा तो किसी ने धागे से बुना। खुद भी सफल रहे और दूसरों को रोजगार की नई राह दिखाई। राइजिंग इंडिया में आज ऐसे ही दो कहानियां।

By Manish MishraEdited By: Published: Wed, 09 Dec 2020 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 09 Dec 2020 07:38 AM (IST)
Rising India: किसी ने मिट्टी, तो किसी ने धागे से संवारी किस्मत
छवि और शिवांगी। सौजन्‍य स्वत: छवि एवं शिवांगी

टीम जागरण, लखनऊ। कोरोनाकाल में सफलता की अनेक प्रेरक कहानियां गढ़ी गईं। किसी ने इसे मिट्टी से गढ़ा, तो किसी ने धागे से बुना। खुद भी सफल रहे और दूसरों को रोजगार की नई राह दिखाई। राइजिंग इंडिया में आज ऐसे ही दो कहानियां। उत्‍तर प्रदेश के औरैया से हिमांशु गुप्ता और शाहजहांपुर से नरेंद्र यादव की रिपोर्ट। औरैया निवासी नीलेंद्र प्रजापति भी लॉकडाउन में नौकरी गंवाने के बाद घर लौटे। लेकिन हालात से हार नहीं मानी और अपने हुनर-अनुभव को कारोबार की शक्ल दे दी। कामयाबी ने कदम चूमे और आज मिट्टी के डिजाइनर कुल्हड़-प्लेट आदि की भारत ही नहीं, नेपाल तक आपूर्ति कर रहे हैं। काम इतना है कि दर्जनभर लोगों को साथ जोडऩे के बाद भी पूरी तरह आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। वह कहते हैं कि अब तो गांव के दर्जनों युवाओं को साथ जोडऩे की योजना है। 

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कस्बा बेला के गांव नौसारा के रहने वाले सूबेदार प्रजापति के 35 वर्षीय पुत्र नीलेंद्र बुलंदशहर के खुर्जा में एक पॉटरी कंपनी में मिट्टी के बर्तन बनाते थे। 10 घंटे रोजाना काम करने के बाद उन्हेंं 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह मजदूरी मिलती थी। अप्रैल में गांव लौट आए। यहां अपना काम करने का फैसला किया। 

बैंक में मुद्रा लोन, एमएसएमई लोन के लिए आवेदन किया। कई चक्कर लगाने के बाद भी लोन नहीं मिला। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। गांव के ही कुछ लोगों से उधार लिया और सड़क किनारे खाली प्लॉट में टीनशेड डलवाकर मिट्टी के कुल्हड़ व प्लेट आदि बर्तन बनाने वाली मशीन लगाई।  

(देश और नेपाल में सप्लाई कर रहे मिट्टी से बने डिजाइनर बर्तन। जागरण)

गांव के युवाओं को काम पर रखा। शुरुआत में तो मार्केटिंग में दिक्कत आई लेकिन बेहतर डिजाइन और ठीक दाम के कारण डिमांड बढ़ी। आज उनके साथ काम कर रहे दर्जनभर साथियों को प्रतिमाह 10 हजार रुपये की कमाई हो रही है। पहले तो ऑर्डर कम मिले, लेकिन अब प्रतिदिन चार हजार तक कुल्हड़ सप्लाई करते हैं। 

(नीलेंद्र के कारखाने में काम करते सहयोगी। जागरण)

फूल-पत्ती की डिजाइन वाले चाय, दूध और लस्सी के लिए इस्तेमाल होने वाले कुल्हड़ बनाते हैं। इसके अलावा रसगुल्ला, रसमलाई व दही-बड़ा के लिए भी डिजाइनर प्लेट बनाते हैं।

दो धागे से बुनी सफलता... 

उप्र के शाहजहांपुर और राजस्थान के बीकानेर की दो युवा बेटियों ने लॉकडाउन में 'दो धागे' से जो सपना बुना, उसे साकार कर दिखाया है। दो धागे नाम का उनका यह स्टार्टअप सफलता की नई इबारत लिख रहा है। ये सहेलियांं हैं शाहजहंपुर स्थित गन्ना शोध परिषद के वैज्ञानिक अधिकारी डा. एसपी सिंह की बेटी छवि सिंह और बीकानेर सादुनलगंज के कपड़ा कारोबारी राजकुमार मुलचंदानी की बेटी शिवांगी मूलचंदानी।  

फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर चुकी हैं। गांधीनगर में पढ़ाई के दौरान ही दोनों की मित्रता हुई थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद करियर की योजना बना रही थीं और बेहतर जॉब की खोज में थीं। लेकिन मार्च आते-आते तक कोरोना का प्रकोप छाने लगा। फिर लॉकडाउन लग गया। लोगों की नौकरियां जा रही थीं, तब तय किया कि नौकरी नहीं व्यवसाय स्थापित करेंगी। लॉकडाउन के दौरान ही दोनों ने स्टार्टअप शुरू करने की ठान ली और अपना क्लोथिंग ब्रांड लांच करने में जुट गईं। दोनों ने अलग-अलग शहरों में रहते हुए भी इसकी तैयारी की और आज सफलता पा रही हैं।

छवि बताती है कि लॉकडाउन में छूट मिली तो जयपुर पहुंचीं। वहां एक माह तक शोध किया। बबरू गांव और सांगानेर में कपड़ा व धागा बनने की बारीकियां परखीं। सितंबर माह तक तैयारी की। इसी वर्ष अक्टूबर में ब्रांड लांच कर दिया। दोनों ने इंडियन और वेस्टर्न कल्चर को मिक्स कर आकर्षक डिजाइन की कुर्ती-जींस के थ्री पीस लांच किए हैं। सलवार शूट में पर्याप्त पॉकेट तथा मास्क को भी डिजाइन किया है। अमेजन तथा फ्लिप कार्ड पर उनके उत्पाद बेचे जा रहे हैं। दो धागे ब्रांड को कई महानगरों से ऑर्डर मिल रहे हैं। कारीगरों को रोजगार दे रही हैं।


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