Silent Hypoxia COVID-19: छह मिनट की चाल, बताएगी फेफड़ों का हाल
Silent Hypoxia COVID-19 यह टेस्ट उन रोगियों पर मुख्यत केंद्रित होता है जिन्हें हाइपोक्सिया होता है या वे उच्च जोखिम वाले होते हैं या फिर दिल के बीमारी के मरीज।
नई दिल्ली, जेएनएन। Silent Hypoxia COVID-19 कोरोना वायरस बहुत से मरीजों में श्वसन तंत्र के निचले हिस्से में हल्के संक्रमण के रूप में सामने आता है। वहीं बड़ी उम्र के लोगों में यह गंभीर श्वसन तंत्र सिंड्रोम का कारण बन जाता है। कोविड-19 के चलते मरीज को साइलेंट हाइपोक्सिया भी हो सकता है, जिसमें मरीज को यह पता ही नहीं लगता है कि उसके फेफड़ों में बढ़ते संक्रमण के कारण ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है।
इसके परिणामस्वरूप मरीज की हालत बिगड़ती ही चली जाती है और उसे आइसीयू में भर्ती कराना पड़ता है। एक साधारण टेस्ट जिसे 6 मिनट वॉक टेस्ट (6 एमडब्ल्यूटी) के नाम से जाना जाता है, इसकी पहचान करने में मददगार साबित हो सकता है और आपके फेफड़ों का हाल बता सकता है।
घर या अस्पताल में करने की सुविधा : 6 एमडब्ल्यूटी टेस्ट एक साधारण और साइलेंट हाइपोक्सिया का पता लगाने में काफी कारगर है। यह मरीज की शुरुआती दौर में पहचान करने में सक्षम है, जिसकी हालत खराब होने की आशंका है। इस टेस्ट को घर या अस्पताल में किया जा सकता है। हालांकि यह अच्छा माना जाता है कि इसे किसी की देखरेख में किया जाए।
दशकों पूर्व हुआ था विकसित : अमेरिकन थोरेसिक सोसायटी ने इस टेस्ट को कुछ दशकों पूर्व विकसित किया था। शुरुआत में इसे बच्चों पर इस्तेमाल किया गया। हालांकि आज के दौर में इसे विभिन्न बीमारियों जैसे आर्थराइटिस, पर्किंसन, रीढ़रज्जु दुर्घटनाग्रस्त होने, मांसपेशियों में अनियमितता जैसी बीमारियों में अतिरिक्त उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। कोविड-19 के मरीजों के स्क्र्रींनग टूल के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है।
ऐसे होता है 6 एमडब्ल्यूटी टेस्ट
- इसके लिए मरीज को साधारण कपड़े का मास्क पहनना होता है
- इसके बाद फिंगर पल्स ऑक्सीमीटर के जरिये ऑक्सीजन के स्तर को मापा जाता है
- इसके बाद मरीज जितनी तेजी से चल सकता है, उतनी तेजी से एक निश्चित स्थान पर चलता है
- छह मिनट चलने के बाद संबधित व्यक्ति की एक बार फिर ऑक्सीजन के स्तर की जांच की जाती है
मुख्यत: इन पर होता है केंद्रित : यह टेस्ट उन रोगियों पर मुख्यत: केंद्रित होता है, जिन्हें हाइपोक्सिया होता है या वे उच्च जोखिम वाले होते हैं या फिर दिल के बीमारी के मरीज। भारत में इस टेस्ट का इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति को परीक्षण की आवश्यकता है या नहीं।
3 मिनट का भी है टेस्ट : इसके पीछे यह सिद्धांत है कि बैठे रहने के दौरान मरीज को आराम की स्थिति में देखा जा सकता है, लेकिन जब वे काम करते हैं तो उनकी सांस फूलती है और वे थक सकते हैं। यह इस बात का सूचक है कि ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा है। जो लोग 60 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के हैं, उनके लिए 3 मिनट का एक छोटा टेस्ट किया जाता है।
यदि किसी मरीज में ऑक्सीजन का आवश्यक स्तर 94 फीसद से कम है या किसी 6 एमडब्ल्यूटी शुरुआत से पूर्व ली गई आधार रेखा से 3 फीसद अधिक गिरावट दिखाता है तो यह चेतावनी देने वाले लक्षण होते हैं। यदि मरीज घर पर क्वारंटाइन है तो उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है।