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...तो दिखने लगा है सिनौली के नीचे दबा महाभारत का नगर, खुदाई में मिली तांबे की तलवार

सिनौली में खोदाई लगातार चल रही है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान की टीम को एक प्राचीन दीवार यहां मिलने के संकेत मिल रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 12:49 PM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 12:50 PM (IST)
...तो दिखने लगा है सिनौली के नीचे दबा महाभारत का नगर, खुदाई में मिली तांबे की तलवार
...तो दिखने लगा है सिनौली के नीचे दबा महाभारत का नगर, खुदाई में मिली तांबे की तलवार

बागपत, राजीव पंडित। महाभारत की धरा सिनौली ने खुदाई प्रारंभ होते ही फिर नए रहस्य उगलने शुरू कर दिए हैं। खुदाई में निकले सभी प्राचीन अवशेष इस धरती के नीचे किसी रॉयल फैमिली के दफन होने का सबूत दे रहे हैं। शवाधान केंद्र और प्राचीन रथ निकलने के बाद तीसरे चरण की खोदाई में यहां से नरकंकाल, तांबे की तलवार, मृदभांड निकले हैं। सिनौली में खोदाई लगातार चल रही है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान की टीम को एक प्राचीन दीवार यहां मिलने के संकेत मिल रहे हैं।

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हालिया खोदाई में यहां पर कुछ ईंट दिखाई पड़ रही है। इसे लेकर टीम उत्साहित है और मिशन की ओर बढ़ रही है। गांव के लोगों की भी खुशी का ठिकाना नहीं है। इतिहासकारों का दावा है कि जल्द ही सिनौली की जमीन किसी प्राचीन नगरीय बस्ती का इतिहास उगलेगी। यह बस्ती महाभारत काल की होगी, या किसी अन्य काल की यह शोध का विषय है।

15 दिसंबर को शुरू हुआ था खोदाई का तीसरा चरण
सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्खनन शाखा द्वितीय एवं भारतीय पुरातत्व संस्थान लाल किला दिल्ली संयुक्त रूप से डा. संजय मंजुल और डा. अरविन मंजुल के निर्देशन में 15 दिसंबर से तीसरे चरण की खोदाई कर रही है। यहां अभी तक एक कंकाल, ताम्र निर्मित तलवार, 16 मृद भांड मिले चुके हैं। अब यहीं पर कुछ ईंट भी दिखाई दी हैं, जो दीवारनुमा है।

शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन ने दावा किया है कि यह कुछ ओर नहीं बल्कि शवाधान केंद्र की चाहरदीवारी हो सकती है। यहां पहले चरण की खोदाई में बड़ा शवाधान केंद्र मिल चुका है। इन ईंटों की लंबाई-चौड़ाई काफी ज्यादा है, जिनकी बनावट से यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह करीब 4000-4500 साल पुरानी हो सकती हैं। पिछली खोदाई में निकली इसी तरह की ईंटों की कार्बन डेङ्क्षटग से इनके काल की पुष्टि हो चुकी है।

लाक्षागृह भी है नजदीक
महाभारत की धरा होने से यहां की खोदाई पर देश-दुनिया की निगाह जमी हुई हैं। यह महाभारतयुग का शाही परिवार भी हो सकता है। क्योंकि सिनौली से कुछ ही दूरी पर हिंडन और कृष्णा नदी के बीच बरनावा गांव में बड़े टीले पर लाक्षागृह में वह गुफा भी मौजूद है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि लाख के घर में आग लगने के बाद इसी गुफा से पांडव जान बचाकर निकले थे। बागपत के सिनौली और बरनावा आदि स्थानों पर प्राचीन काल की वस्तुएं मिलने का सिलसिला जारी है।

इतिहास के जानकारों की राय
मोदीनगर स्थित एमएम कॉलेज में इतिहास विषय के एसोसिएट प्रो. डॉ. केके शर्मा और अमित राय जैन दावा कर बताते हैं यह क्षेत्र पुरातनकाल के लिहाज से बहुत धनी है और यह इलाका महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। बागपत और आसपास के क्षेत्रों को महाभारतकालीन युग से जोड़ कर देखा जाता रहा है। बागपत को उन पांच गांवों में एक माना जाता है, जिसे पांडवों ने युद्ध से पहले कौरवों से मांगा था।

पिछले दो चरणों की खोदाई
सिनौली में वर्ष 2004-05 में डा. धर्मवीर ङ्क्षसह के निर्देशन में प्रथम चरण की खोदाई हुई थी। उस समय 117 नर कंकाल, दो ताम्र निर्मित एंटीना सोल्ड तलवार, दो ढाल, शवों को जलाने की भट्टी, सोने के चार कंगन, गले का हार, सैकड़ों की संख्या में बहुमूल्य मनके मिले थे। उस समय इस बात पर मुहर लग गई थी कि एक न एक दिन सिनौली की धरती प्राचीन भारत का बड़ा इतिहास अवश्य उगलेगी।

पिछले साल 2018 में डा. संजय मंजुल और डा. अरविन मंजुल के निर्देशन में सिनौली में दूसरे चरण की खोदाई हुई तो यहां से कब्रों में दफनाए गए आठ शवों के अवशेष मिले थे, जिसमें से तीन ताबूत में थे। कब्रों के साथ जो सामान मिला था उससे इनके 'शाही कब्रगाह' होने का अंदाजा लगाया गया था। साथ ही इनमें से कुछ के 'योद्धा' होने के संकेत मिलते हैं। दो ऐसे सामान मिले थें जो पहले के किसी उत्खनन में भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं मिले। पहला, तीन रथ जो लकड़ी के थे लेकिन उनके ऊपर तांबे और कांस्य का काम था। दूसरी चीज लकड़ी की टांगों वाले तीन चारपाईनुमा ताबूत थे, तीन में से दो ताबूतों के ऊपर तांबे के पीपल के पत्ते के आकार की सजावट थी। यहां मिली सभी कब्रों से कुल मिलाकर तांबे के चार एंटिना (स्पर्श सूत्र), तलवारें, दो खंजर, सात सुरंगनुमा चीजें, तीन तांबे के कटोरे और एक हेलमेट मिला था। कई भारतीय पौराणिक कथाओं में सुनने को मिलता है कि राजा विशाल रथों पर बैठा करते थे, उसके कुछ प्रमाण सादिकपुर सनौली गांव में मिले थे।

एएसआइ को लिखी थी चिट्ठी
खोदाई शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन ने 2005 में तत्कालीन उप जिलाधिकारी बड़ौत के माध्यम से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने उम्मीद जताई थी कि यदि बागपत में खोदाई हो तो यहां की धरती प्राचीन काल का इतिहास उगल सकती है, उसके बाद ही सिनौली गांव में डा. धर्मवीर शर्मा के निर्देशन में खोदाई हुई थी।

ताजा होंगी महाभारत से जुड़ी यादें
सिनौली की प्रधान उषा देवी ने बताया कि लोगों की निगाह खोदाई पर जमी हुई है और लोग बेहद ही उत्सुक नजर आ रहे हैं। प्रधान का दावा है कि उनके गांव की धरती प्राचीन भारत से पर्दा उठाएगी, जिसके बाद एक बार फिर लोगों की महाभारत से जुड़ी यादें ताजा हो सकेंगी।


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