डिजिटल पेमेंट से पारदर्शिता बढ़ेगी, भ्रष्टाचार रुकेगा : प्रणब मुखर्जी
राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने के लिए पहल करने को कहा।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संसद व विधानसभाओं में हंगामे की बढ़ती परिपाटी पर चिंता जताते हुए कहा है कि हमारा लोकतंत्र 'कोलाहलपूर्ण' हो गया है। इसलिए अब समय है कि हमारे कानून निर्माता कानून बनाने से लेकर विधायिका में बहस और परिचर्चा का सामूहिक प्रयास करें। लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने की वकालत करते हुए राष्ट्रपति ने चुनाव सुधारों पर राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को कदम उठाने की भी सलाह दी है।
68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान राष्ट्रपति मुखर्जी ने देश की अनेकता में एकता और बहुलवादी संस्कृति को लोकतंत्र की ताकत बताते हुए विचारों को थोपने की सोच को लेकर सचेत भी किया। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा ने हमेशा 'असहिष्णु' भारतीय नहीं बल्कि 'तर्कवादी' भारतीय की सराहना भी की है। मुखर्जी ने कहा कि लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए एक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण मानसिकता की जरूरत है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति ने सदियों से देश में विविध विचारों और दर्शन के एक दूसरे से शांतिपूर्वक स्पर्धा का उल्लेख करते हुए अनेकता में एकता को हमारी सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने इस पर खास सतर्कता की सलाह देते हुए कहा कि इस समय निहित स्वार्थो द्वारा हमारी बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की परीक्षा ली जा रही है।
राष्ट्रपति ने पिछले लोकसभा चुनाव में 66 फीसद से ज्यादा वोटरों ने मतदान किया और लोकतंत्र में यह सहभागिता पंचायती चुनावों में भी झलकती है। इसलिए कानून निर्माताओं को यह समझना होगा कि हंगामे व व्यवधान से सत्र का नुकसान होता है। जबकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस, परिचर्चा कर कानून बनाने चाहिए और इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। चुनाव सुधारों को लेकर राष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को विचार-विमर्श कर लोकसभा व विधानसभा चुनाव के एक साथ कराने की संभावनाओं पर गौर करने की नसीहत दी। उनका कहना था कि अब समय आ गया है कि आत्मसंतोष करने की बजाय हम अपनी व्यवस्था में खामियों की पहचान कर इससे दूर करने का रास्ता निकालें। मुखर्जी ने साफ कहा कि स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों की उन परंपराओं की ओर लौटने का समय आ गया है जब लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे।
राष्ट्रपति ने आजादी के बाद की पीढि़यों को स्वतंत्रता को हल्के में लेने से आगाह करते हुए कहा कि आजादी के समय चुकाए मूल्यों को हमें नहीं भूलना चाहिए। उनका साफ कहना था कि अनियंत्रित स्वच्छंदता असभ्यता की निशानी है। यह अपने और दूसरे दोनों के लिए समान रुप से हानिकारक है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में स्वतंत्रता के अधिकार के साथ दायित्व भी निभाना पड़ता है।
नोटबंदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इससे फौरी तौर पर कुछ समय के लिए मंदी आ सकती है। मगर इससे कैशलेस लेन-देन बढ़ेगा और इससे पारदर्शिता आएगी। राष्ट्रपति ने इस दौरान सरकार की स्वच्छ भारत, मनरेगा, आधार, डिजिटल इंडिया, स्कील इंडिया आदि से हो रहे बदलावों का जिक्र करते हुए कहा कि इससे देश में व्यापक परिवर्तन हो रहा। मगर यह भी हकीकत है कि अभी भी हमारी आबादी का पांचवा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे है जिसे खत्म करना बड़ी चुनौती है। राष्ट्रपति ने इस दौरान आर्थिक, सैन्य, उद्योग, परमाणु कल्ब से लेकर तमाम क्षेत्रों में दुनिया में भारत के अहम राष्ट्रों की पंक्ति में आने को लोकतंत्र की देन बताया। उन्होंने इस मौके पर सेनाओं के योगदान की भरपूर सराहना भी की।
यह भी पढ़ेंः 2000 से लंबित सभी दया याचिकाओं पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सुनाया फैसला
यह भी पढ़ेंः राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर बोले PM, मताधिकार का फायदा उठाएं युवा