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रेशम के कीड़ों ने लॉकडाउन में भी 700 परिवारों को दिया रोजगार, कई राज्यों को जाता है रेशम का धागा

होशंगाबाद जिले के बनखेड़ी मटकुली पचमढ़ी सहित 20 गांवों के 700 किसान परिवारों ने रेशम के कीड़े पालने का काम लॉकडाउन के दौरान किया।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 27 Jun 2020 09:19 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jun 2020 09:21 PM (IST)
रेशम के कीड़ों ने लॉकडाउन में भी 700 परिवारों को दिया रोजगार, कई राज्यों को जाता है रेशम का धागा
रेशम के कीड़ों ने लॉकडाउन में भी 700 परिवारों को दिया रोजगार, कई राज्यों को जाता है रेशम का धागा

अच्छेलाल वर्मा, होशंगाबाद। लॉकडाउन में जब घर की दहलीज को लक्ष्मण रेखा बना दिया तब ऐसे संकटकाल में घर में पाले गए रेशम के कीड़े मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के 700 किसान परिवारों के पालनहार बन गए। मप्र के अलावा बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उप्र, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में सिल्क की साडि़यां व अन्य परिधान बनाने वाले कारीगर और संस्थान होशंगाबाद से रेशम का धागा खरीद कर ले जाते हैं। 1800 से 3300 रुपये प्रति किलो के भाव से यहां सभी किस्मों के रेशम का धागा मिलता है। खास बात यह है कि सिल्क की मात्र चार किस्में हैं, मलबन, टसर, इरी और मूंगा इन चारों किस्मों का रेशम उत्पादन होशंगाबाद में भी होता है।

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20 गांवों में 700 परिवार पाल रहे हैं कीड़े

होशंगाबाद जिले के बनखेड़ी, मटकुली, पचमढ़ी सहित 20 गांवों के 700 किसान परिवारों ने रेशम के कीड़े पालने का काम लॉकडाउन के दौरान किया। इनमें ज्यादातर आदिवासी परिवार शामिल हैं। जानकारी के अनुसार रेशम के कीड़े शहतूत के पत्ते खाते हैं। किसान अपनी जमीन पर शहतूत की खेती करते हैं। एक एकड़ में 5500 पौधे लगते हैं। एक बार लगाने के बाद 15 साल तक ये पौधे जीवित रहते हैं। रेशम का कीड़ा एक माह में ककून बना देता है। इससे सिल्क का धागा मशीन से तैयार किया जाता है। जिले में रेशम के कीड़े पालने से लेकर धागा बनाने तक की प्रक्रिया में करीब एक हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लॉकडाउन में किसानों ने करीब 25 हजार किलो ककून एकत्रित कर 75 लाख रपये कमाए। इस तरह प्रत्येक परिवार के खाते में 10 हजार रुपये से अधिक की राशि पहुंच गई है।  बता दें कि मप्र में सालभर में रेशम विभाग पांच करोड़ रपये का ककून किसानों से खरीदकर धागा तैयार करता है।

होशंगाबाद के जिला रेशम अधिकारी शरद श्रीवास्तव ने बताया कि रेशम मुनाफे की खेती है। किसी किसान के पास एक एकड़ जमीन है तो वह अन्य फसल के साथ शहतूत के पौधे लगाकर रेशम के कीड़े पालने से साल भर में 3 से 4 लाख रपये अतिरिक्त मुनाफा कमा सकता है। देश में 65 फीसद सिल्क विदेशों से आयात होती है। आत्मनिर्भर भारत की योजना पर काम हुआ तो हम अपने ही देश में सिल्क का शत-प्रतिशत उत्पादन कर सकते हैं। इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा।  


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