विश्व का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र सियाचिन में हिमस्खलन से दो जवान शहीद, बचाव दल ने 6 को बचा लिया
माइनस 50 डिर्ग्री सेल्सियस वाले तापमान और 18-20 हजार फुट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी सैनिकों के लिए बहुत कष्टकारी साबित होती है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। समुद्रतल से करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में शनिवार को हुए हिमस्खलन में दो सैन्यकर्मी शहीद हो गए। जबकि छह अन्य जवानों को समय रहते बचा लिया गया।
सैन्यकर्मियों का गश्तीदल हिमस्खलन की चपेट में आ गया
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि शनिवार सुबह आठ सैन्यकर्मियों का एक दल माइनस 30 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान में पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा के पास गश्त कर रहा था। इसी दौरान अचानक हिमस्खलन हो गया और गश्तीदल बर्फ के बड़े तोदों की चपेट में आ गया।
बचाव दल ने छह जवानों को बचा लिया, दो जवानों को बचा न सके
सियाचिन के दक्षिणी हिस्से में हिमस्खलन में गश्ती दल के फंसने की खबर मिलते ही सेना के एवलांच पैंथर्स और माउंटेन रेस्क्यू टीम हेलीकॉप्टर के जरिए प्रभावित इलाके में पहुंची। राहत कर्मियों ने अत्याधुनिक सेंसरों की मदद से बचाव कार्य शुरू किया और कुछ ही देर में बचाव दल ने छह जवानों को बचा लिया। दो जवानों को गंभीर हालत में बर्फ के नीचे से निकाला गया। ये दोनों करीब 16 फुट बर्फ की मोटी परत के नीचे दबे थे। इन दोनों को मौके पर प्राथमिक उपचार भी दिया गया, लेकिन इन्हें बचाया नहीं जा सका।
12 दिन पहले चार सैन्यकर्मी और दो सैन्य कुली हुए थे शहीद
बीते 12 दिनों में सियाचिन में सैन्यकर्मियों के हिमस्खलन की चपेट में आने की यह दूसरी घटना है। इससे पूर्व 18 नवंबर को सियाचिन में हिमस्खलन में चार सैन्यकर्मी व दो सैन्यकुली शहीद हो गए थे।
1984 से सियाचिन में पाक के नापाक मंसूबे नाकाम बना रही सेना
सियाचिन ग्लेशियर केंद्र शासित लद्दाख के उत्तरी हिस्से में है। भारतीय सेना वर्ष 1984 से सियाचिन में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को नाकाम बनाने के साथ मौसम से भी जंग लड़ रही है। अब तक सियाचिन में मातृभूमि की रक्षा करते हुए भारतीय सेना के करीब एक हजार सैनिक शहीद हो चुके हैं।
दुनिया का सबसे ऊंचा जंगी मैदान है सियाचिन ग्लेशियर
काराकोरम का यह सबसे लंबा ग्लेशियर है। इसकी लंबाई 72 किमी है। 18,875 फीट की ऊंचाई से यह ग्लेशियर इंदिरा कोल के पास 11,875 फीट की ऊंचाई पर गिरता है।
तैनात जवान
ग्लेशियर की 110 किमी लंबी एजीपीएल पर दोनों देशों के करीब दस हजार जवान तैनात हैं।
मौसम के चलते घातक है पूरा इलाका
दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का मैदान अपनी कठिन मौसमीय दशाओं के चलते सैनिकों के लिए जानलेवा बना हुआ है। यहां गोली से अधिक कठिन मौसमीय परिस्थितियों के चलते जवान शहीद होते हैं। 1984 से अब तक यहां करीब 860 से ज्यादा भारतीय जवान शहीद हो चुके हैं। वहीं, 1984 से 1999 के बीच 1300 से अधिक पाकिस्तानी जवानों की मौत हुई है।
माइनस 50 डिर्ग्री सेल्सियस वाले तापमान और 18-20 हजार फुट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी सैनिकों के लिए बहुत कष्टकारी साबित होती है।
कितनी आती है लागत
इस क्षेत्र में सैन्य चौकी के रखरखाव पर रोजाना का खर्च करीब 3.0 से 3.5 करोड़ रुपये आता है।