सुप्रीम कोर्ट ने काटजू से पूछा, बताओ सौम्या मर्डर केस में हम कहां है गलत
सुप्रीम कोर्ट ने आग्रह करते हुए कहा है कि वह व्यक्तिगत तौर पर 11 नवंबर को पेश होकर यह बात बताएं कि गोविंदाचामी को फांसी की सजा ना देकर क्या गलत किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपने ही सेवानिवृत न्यायाधीश को नोटिस जारी कर पूछा है कि बताइये क्या खामी है फैसले में। कोर्ट ने सोमवार को सौम्या हत्याकांड में जस्टिस मार्कडेय काटजू के फेसबुक पोस्ट पर संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस जारी किया। कोर्ट ने जस्टिस काटजू से 11 नवंबर को स्वयं पेश होकर सुनवाई में भाग लेने का आग्रह किया है।
कोर्ट ने जस्टिस काटजू से कहा है कि वे स्वयं आकर कोर्ट को बताएं कि फैसले मे ऐसी क्या मूलभूत खामी है कि कोर्ट उस पर पुनर्विचार करे। यह घटनाक्रम ऐतिहासिक है। शायद ये पहला मौका है जबकि सुप्रीमकोर्ट ने अपने ही सेवानिवृत न्यायाधीश को नोटिस जारी कर अदालत में पेश होने का आग्रह किया हो। नियमों के मुताबिक सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश सुप्रीमकोर्ट सहित किसी भी अदालत में वकालत नहीं कर सकते। इसलिए कभी भी कोई भी सुप्रीमकोर्ट का सेवानिवृत न्यायाधीश अदालत में सुनवाई के दौरान पेश नहीं हुआ न ही अभी तक की जानकारी में कभी कोर्ट ने इस तरह अपने सेवानिवृत न्यायाधीश को बुलाया है।
जस्टिस काटजू अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। ज्यादातर महत्वपूर्ण घटनाओं पर वे अपने ब्लाग में विचार लिखते रहते हैं। गत 15 सितंबर को सुप्रीमकोर्ट ने केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड में हत्या और दुष्कर्म के दोषी गोविन्दास्वामी को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था। जबकि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने उसे हत्या के जुर्म में फांसी दी थी। हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने गोविन्दास्वामी को दुष्कर्म के जुर्म में दी गई उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी। इस फैसले पर काफी प्रतिक्रिया हुई।
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जस्टिस काटजू ने इस पर अगले ही दिन अपने ब्लाग में लिखा कि मलयालम टीवी चैनल एशियानेट ने अभी ही सौम्या हत्याकांड पर हमारा साक्षात्कार लिया है। उस साक्षात्कार में मैने कहा है कि 'सुप्रीमकोर्ट ने गोविन्दास्वामी को हत्या में दोषी न ठहराकर भारी भूल की है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि चूंकि ये साबित नहीं हुआ कि अभियुक्त की मंशा हत्या करने की थी, इसलिए उसे हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उसमें कोर्ट ने आइपीसी की धारा 300 पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें हत्या को चार भागों में परिभाषित किया गया है सिर्फ पहले भाग में हत्या की मंशा की जरूरत होती है।
इसके अलावा अगर किसी भी बाकी तीन भागों में केस साबित हो जाए तो उसे हत्या माना जाएगा चाहें उसमें हत्या की मंशा न रही हो। ये अफसोसनाक है कि कोर्ट ने धारा 300 को सावधानी पूर्ण नहीं पढ़ा। इस फैसले की खुली अदालत में पुनर्समीक्षा होनी चाहिए'। सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस काटजू के फेसबुक पर प्रकाशित ब्लाग के इस उपरोक्त अंश पर सोमवार को संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति पीसी पंत और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने ब्लाग के उपरोक्त अंश को आदेश में उद्धत करते हुए स्वयं संज्ञान लेकर पुनर्विचार याचिका में तब्दील कर दिया।
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कोर्ट ने कहा कि ये इस कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश का नजरिया है। इस पर पूरे सम्मान और गंभीरता से विचार की जरूरत है। कोर्ट ने जस्टिस काटजू को नोटिस जारी करते हुए उनसे आग्रह किया कि वे 11 नवंबर को 2 बजे अदालत में स्वयं पेश होकर सुनवाई में भाग लें और कोर्ट को बताएं कि फैसले में ऐसी कौन सी मूलभूत खामी है कि कोर्ट अपने पुनर्समीक्षा के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करे। पीठ ने मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वे 11 नवंबर को 2 बजे इस पीठ को बनाए।
इससे पहले कोर्ट ने सौम्या हत्याकांड के फैसले पर पुनर्विचार मांगने वाली केरल सरकार की याचिका पर सुनवाई की। सरकार की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी को सुना। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा की भी बहस सुनी, जिन्होंने कोर्ट से गोविन्दास्वामी को हत्या के जुर्म में बरी करने के फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया। हालांकि कोर्ट ने सरकार की पुनर्विचार याचिका आज कोई आदेश नहीं दिया। पीठ ने कहा कि उनका मत है कि इस मामले में संबंधित याचिका पर भी सुनवाई करके एक साथ फैसला दिया जाए।