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'जय जापान-जय भारत' का सपना सच करेंगे: आबे

जापानी पीएम आबे ने इन शब्दों में बखूबी पेश किया, ''मोदी और मैंने यह तय किया है कि हम 'जय जापान-जय भारत' को सच साबित करने के लिए काम करेंगे।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 14 Sep 2017 09:27 PM (IST)Updated: Thu, 14 Sep 2017 09:27 PM (IST)
'जय जापान-जय भारत' का सपना सच करेंगे: आबे
'जय जापान-जय भारत' का सपना सच करेंगे: आबे

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जापान के पीएम शिंजो आबे की यात्रा वैसे तो बुलेट ट्रेन की वजह से ज्यादा सुर्खियों में है लेकिन आबे और पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई द्विपक्षीय बैठक में यह भी तय हो गया है कि दोनो देशो की रणनीतिक व सुरक्षा संबंधी दोस्ती की रफ्तार भी बुलेट ट्रेन से कम नहीं होगी।

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भारत व जापान ने एक तरह से यह ऐलान कर दिया है कि वे संयुक्त तौर पर एशिया और एशिया के बाहर भी अपनी रणनीतिक सहयोग का दायरा बढ़ाने को तैयार है। दोनों देशों की तरफ से जारी संयुक्त घोषणा पत्र का सीधा सा मतलब यह है कि प्रशांत महासागर से लेकर हिंद महासागर तक के इलाके में किसी भी दूसरे देश को मनमानी करने की छूट नहीं होगी। थल सेना से लेकर नौ सैनिक क्षेत्र तक में जिस तरह से भारत व जापान ने सहयोग करने का खाका पेश किया है उससे यह भी स्पष्ट है कि जापान अमेरिका के बाद भारत का सबसे करीबी रणनीतिक साझेदार देश होगा।

भारत व जापान की भावी रिश्ते को पीएम आबे ने इन शब्दों में बखूबी पेश किया, ''मोदी और मैंने यह तय किया है कि हम 'जय जापान-जय भारत' को सच साबित करने के लिए काम करेंगे। हम एशिया के साथ ही वैश्विक स्तर पर स्थायी शांति को बढ़ावा देंगे।'' मोदी ने इसे और व्यापक बनाते हुए कहा कि, ''हमारे बीच विशेष रणनीतिक व वैश्विक साझेदारी से जुड़े मुद्दे सिर्फ क्षेत्रीय या द्विपक्षीय हितों तक ही सीमित नहीं है बल्कि हम तमाम वैश्विक मुद्दों पर भी करीबी संबंध कायम करने को तैयार हैं।'' दोनो नेताओं ने बैठक के बाद जारी साझा बयान को भारत व जापान के रिश्तों में नये युग की शुरुआत बताया। एशिया के इन दो सबसे अहम लोकतांत्रिक देशों ने 15 बड़े समझौतों पर हस्ताक्षर किया है जो सरकार के स्तर पर रिश्तों को प्रगाढ़ करने की गंभीरता को बताता है।

पांच स्तरीय होगी सुरक्षा वार्ता

वैसे तो यह भारत व जापान के बीच होने वाली सामान्य द्विपक्षीय सालाना बैठक थी। लेकिन मालाबार सैन्य अभ्यास और उसके बाद डोकलाम विवाद में भारत का खुला समर्थन कर जापान ने यह संकेत दे दिया था कि इस बार का एजेंडा खास है। दोनो देशों में तय हुआ है कि सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर दोनो देशों के बीच पांच स्तरीय बातचीत होगी। इसमें दोनो देशों के रक्षा मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों, रक्षा व विदेश मंत्रियों की अगुवाई में एक अलग बैठक (टू पल्स टू), डिफेंस पॉलिसी डायलाग और तीनों सेनाओं के स्तर पर होने वाली बातचीत शामिल होगी। मालाबार सैन्य अभ्यास का दायरा बढ़ाने की सहमति बनी है तो दोनो देशों की नौ सेनाओं के बीच विशेष अभियान व सामंजस्य स्थापित करने पर रजामंदी हुई है।

चीन व पाकिस्तान को संकेत

कहने की जरुरत नहीं है कि यह बैठक तब हुई है जब चीन की आक्रामकता पूरे प्रशांत महासागर में बढती जा रही है और उससे भारत के साथ ही जापान बहुत असहज है। ऐसे में भारत व जापान ने हिंद-प्रशांत सागर क्षेत्र में एक दूसरे को सूचना देने की नई व्यवस्था करने को तैयार हुए हैं। भारत व जापान ने प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में हर देश के जहाजों को कारोबारी या अन्य उद्देश्य से आने जाने की छूट मिलने के साथ ही उत्तर कोरिया को परमाणु विस्फोट को जम कर लताड़ लगाई है। चीन को इस बात पर भी दिलचस्पी होगी कि जापान ने भारत के साथ मिलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र के साथ ही अफ्रीकी क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी से जोड़ने का ऐलान किया है। साझा घोषणा पत्र में कहा गया है कि इस बारे में प्रगति अब ठोस नतीजे देने के करीब है। यानी जल्द ही उन देशों की घोषणा की जाएगी जहां भारत व जापान मिल चीन की तर्ज पर ढांचागत परियोजनाओं को लगाएंगे। लेकिन इसमें यह भी कहा है कि इनकी परियोजना पूरी तरह से पारदर्शी वित्त सुविधा व शर्तो के साथ लगाई जाएगी और इसमें तीसरे देशों के कायदे कानून का पूरा ख्याल रखा जाएगा।

पाकिस्तान को संकेत

साझा घोषणा पत्र में पाकिस्तान को भी इशारा है कि वैश्विक स्तर पर उसके आतंकियों को पोषित करने की नीति पर कोई सहयोग नहीं करने वाला है। इसमें पाकिस्तान परस्त सभी आतंकी संगठनों जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा के अलावा आइएसआइएस, अल कायदा का जिक्र करते हुए कहा गया है कि दोनो देशों इन संगठनों के खिलाफ अपने आतंकरोधी ढांचे को और मजबूत करेंगे। इसके साथ ही इसमें पाकिस्तान से कहा गया है कि वह पठानकोट व मुंबई हमले के दोषियों को सजा दिलाने में जल्दबाजी दिखाये। जापान का इस बारे में भारत के साथ मिल कर पाकिस्तान को आईना दिखाने की अपनी अहमियत है क्योंकि यह पाकिस्तान को वित्तीय मदद देने वाला अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।

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