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Stay Home Stay Empowered: गंभीर सदमे से उबरना नहीं है कठिन, वैज्ञानिक रिसर्च ने खंगालीं इससे जुड़ी परतें

दुर्घटना के बाद अधिकांश लोग इसके सदमे से उबर नहीं पाते हैं। उस दिन की बातें जेहन में बार-बार आती रहती हैं। मैकगिल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक एलेन ब्रूनेट कहते हैं कि पीटीएसडी मेमोरी डिसऑर्डर है। यह आप पर निर्भर करता है कि क्या भूलना चाहते हैं और क्या नहीं ?

By Vineet SharanEdited By: Published: Thu, 18 Feb 2021 08:13 AM (IST)Updated: Thu, 18 Feb 2021 08:18 AM (IST)
Stay Home Stay Empowered: गंभीर सदमे से उबरना नहीं है कठिन, वैज्ञानिक रिसर्च ने खंगालीं इससे जुड़ी परतें
इनफॉरमेशन हमारे सिर में प्रत्येक समय विद्युत इंपल्स के रूप में ट्रेवल करती है। मेमोरी में सुधार संभव है।

नई दिल्ली, जेएनएन। 2002 में म़ांट्रियल में ड्राइविंग के दौरान रीता मेगिल के साथ एक ऐसा हादसा हुआ, जिसकी त्रासदपूर्ण यादें उनके दिल-दिमाग में आज भी ताजा हैं। मेगिल ने देखा कि रेड लाइट क्रॉस करती हुई एक कार तेजी से दनदनाती हुई उनके सामने आ रही है। मैंने तेजी से ब्रेक लगाए, लेकिन मैं जानती थी कि देर हो चुकी थी। मुझे ऐसा लगा कि अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है। तेजी से आती कार की टक्कर से उनकी कार रोड की दूसरी तरफ चली गई और सीमेंट के पिलर से बनी बिल्डिंग से जाकर टकरा गई। लेकिन इसे वह ऊपर वाले का शुक्र मानती हैं कि वह आज तक जीवित हैं।

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दुर्घटना में मेगिल की दो पसलियां और कॉलरबोन टूट गईं, पर इस दुर्घटना की वजह से वह पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) की शिकार हो गईं।

भूली नहीं वो यादें

मेगिल कहती हैं कि मैं रोजमर्रा की गतिविधियां जैसे- कुकिंग, शॉपिंग आदि करती हूं, लेकिन न जाने मेरे दिमाग में वे यादें बार-बार कैसे आ जाती हैं। वह कहती हैं कि मेरा दिल अक्सर तेजी से धड़कने लगता है और मुझे तेजी से पसीने आने लगते हैं। कभी-कभी तो हताशा इतनी बढ़ जाती है कि मैं डिप्रेशन में आ जाती हूं।

क्या है पीटीएसडी

दुर्घटना या किसी हमले के बाद अधिकांश लोग इसके सदमे से उबर नहीं पाते हैं। उस दिन की बातें जेहन में बार-बार आती रहती हैं। मैकगिल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक एलेन ब्रूनेट कहते हैं कि पीटीएसडी मेमोरी डिसऑर्डर है। वह कहते हैं कि यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या भूलना चाहते हैं और क्या भूलना नहीं चाहते हैं? दुर्घटना के कुछ वर्षों के बाद मेगिल ने ब्रूनेट का एक्सपेरीमेंटल एड का विज्ञापन देखा और वह उसके पास इलाज के लिए गईं। उन्होंने कॉमन ब्लड प्रेशर के इलाज की लो डोज प्रोपेरानॉल दवा ली, जो कि मेंडुला की गतिविधियों को कम करती है, मेंडुला दिमाग का वह हिस्सा होता है, जो कि भावों पर नियंत्रण रखता है। दवाई के सेवन से वास्तविक और भावनात्मक मेमोरी के बीच का लिंक टूट गया। प्रॉपेरानॉल ने एड्रेनलीन के एक्शन को ब्लॉक कर दिया, जिसने उसे तनाव और बैचेनी से निजात दिलाई।

मेगिल के शरीर में ड्रग होने के बाद भी उसको इस बात का इल्म था कि वह दुर्घटना की शिकार हुई थीं। ब्रूनेट ने इस आधार पर निष्कर्ष निकाला कि हम अपनी मेमोरी को याद करके ही उसमें सुधार कर सकते हैं। यह ब्रूनेट की न्यूरोसाइंस की विवादास्पद और चौंकाने वाली खोज थी। मैकगिल के करीम नादेर कहते हैं कि पीटीएसडी से पीड़ित लोग अपना इलाज मेमोरी की एडिटिंग करके कर सकते हैं।

कैसे बनती है मेमोरी

न्यूरोवैज्ञानिकों ने मेमोरी का न्यूरल आर्किटेक्चर के आधार पर अध्ययन किया। 19वीं शताब्दी में न्यूरोएंटोनॉमिस्ट सेंटियागो रेमोनी केजल ने अध्ययन किया कि इनफॉरमेशन हमारे सिर में प्रत्येक समय विद्युत इंपल्स के रूप में ट्रेवल करती है। मेमोरी का निर्माण किया जा सकता है और इसमें सुधार किया जा सकता है। कई सदियों से एपिसोडिक मेमोरी का टेक्स्टबुक विवरण काफी पुराना रहा है। मेमोरी के निर्माण के लिए सौ से अधिक प्रोटीन की केमिकल कोरियोग्राफी की जरूरत होती है, लेकिन मुख्य बात यह है कि सेंसरी इनफॉरमेशन को इलेक्ट्रिकल इंपल्स के आधार पर कोड किया जाता है। कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद इलेक्ट्रिकल और केमिकल सिगनल मेमोरी के केंद्र, बादाम आकार के मेंडुला और केले के आकार वाले हिप्पोकैंपस में पहुंचते हैं।

न्यूरोवैज्ञानिकों का मानना है कि मेमोरी का निर्माण तब होता है, जब रोजमर्रा के सेंसरी अनुभवों के आधार पर दिमागी संरचना में मौजूद न्यूरॉन ग्लूटामेट (दिमाग का मुख्य न्यूरोट्रांसमीटर) और इलेक्ट्रिकल इंपल्स के द्वारा एक्टिवेट होते हैं। सेंसरी अनुभवों के द्वारा बायोकेमिकल्स ट्रिगर होते हैं और कैल्शियम आयन कोशिकाओं की पूर्ति करते हैं। आयन दर्जनों एंजाइम को उकसाता है, जो कि कोशिकाओं का पुनर्निर्माण करता है और अधिक सिनेप्सेज का निर्माण करता है। हालांकि, इन परिवर्तनों को होने में समय लगता है और कुछ समय तक तो मेमोरी गीली कंकरीट की तरह होती है। किताबों में न्यूरोवैज्ञानिकों ने मेमोरी का जिक्र वैसे ही किया है, जैसे जियोसाइंटिस्ट पहाड़ों के बारे में करते हैं।

इलाज की तकनीक : रीता मैगिल को एक दिन में प्रोपेनॉल की दो खुराक दी गई। शोधकर्ताओं ने माना कि परिणाम उत्साहित करने वाले थे। शोधकर्ताओं ने देखा कि जब तक दवाई रीता के शरीर में थी, तब तक उसकी हृदय गति और मांसपेशियां बेहतर अवस्था में थीं। हॉर्वर्ड के शोधकर्ता रोजर पिटमैन ने पीटीएसडी से ग्रसित 45 लोगों पर प्रयोग किए। जिन लोगों पर ये प्रयोग किए गए, वे काफी लंबे समय से इस समस्या से पीड़ित थे, लेकिन इस दवाई के सेवन के बाद उनमें तेजी से सुधार देखने में आया। बैचेनी, फोबिया और किसी चीज का लती होना भी इमोशनल मेमोरी डिसऑर्डर होता है।

कैसे बाहर निकलें बीमारी से : न्यूरोवैज्ञानिक कहते हैं कि मेमोरी में लगातार सुधार होता रहता है। जब आप पुरानी यादों के बारे में सोचते हैं तो सामान्यत: उसमें लगातार सुधार करने की कोशिश करते रहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सदमे से उबरने के लिए रिकंसोलिडेशन बेहतर तरीका है। वो कहते हैं कि सीधे शब्दों में कहा जाए तो जितना ज्यादा आप मेमोरी का इस्तेमाल करेंगे, उतने बेहतर तरीके से ही आप इसमें सुधार कर पाएंगे। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अक्सर लोग सदमे से उबरने के लिए अल्कोहल जैसी लतों का सहारा लेते हैं या फिर अन्य नकारात्मक उपायों को अपनाते हैं, जो कि शारीरिक रूप से तो किसी को नुकसान देती ही हैं, मानसिक रूप से भी किसी को परेशान भी करती हैं। ऐसे में बेहतर यही है कि रिकंसोलिडेशन तरीके को अपनाया जाए। 


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