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वैज्ञानिकों ने प्रीबायोटिक तत्वों और सूक्ष्मजीवों को मिलाकर तैयार की आइसक्रीम, बनाया सेहतमंद

डॉ. मुकेश कपूर ने बताया कि प्रोबायोटिक सूक्ष्मजीव तभी उपयोगी हो सकते हैं जब वे शरीर के भीतर विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रह सकें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 11:31 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 11:31 AM (IST)
वैज्ञानिकों ने प्रीबायोटिक तत्वों और सूक्ष्मजीवों को मिलाकर तैयार की आइसक्रीम, बनाया सेहतमंद
वैज्ञानिकों ने प्रीबायोटिक तत्वों और सूक्ष्मजीवों को मिलाकर तैयार की आइसक्रीम, बनाया सेहतमंद

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। वजन बढ़ने की फिक्र किए बिना भी अब आइसक्रीम का मजा लिया जा सकेगा। भारतीय वैज्ञानिकों ने कम वसा युक्त आइसक्रीम विकसित की है, जो सेहत के लिए अधिक चिंतित रहने वाले लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। मैसूर स्थित सीएसआइआर-केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह एक सिंबायोटिक आइसक्रीम है, जिसे प्रीबायोटिक तत्व बीटा-मैनो-ओलिगोसैकेराइड्स (बीटा-मॉस) और लैक्टोबैसिलस प्रजाति के प्रोबायोटिक सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया) को मिलाकर तैयार किया गया है।

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बीटा-मॉस पौधों से प्राप्त एक प्रकार का फाइबर है, जिसे आइसक्रीम में प्रीबायोटिक तत्व के रूप में उपयोग किया गया है। जबकि, लैक्टोबैसिलस प्लैंटेरम और लैक्टोबैसिलस फर्मेंटम प्रजाति के सूक्ष्मजीवों को प्रोबायोटिक के रूप में इस आइसक्रीम में उपयोग किया गया है। खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले फाइबर प्रीबायोटिक तत्व के रूप में कार्य करते हैं। प्रीबायोटिक और प्रोबायोटिक तत्वों को मिलाकर विकसित आहार को सिंबायोटिक कहते हैं। इस प्रकार का आहार शरीर में पाए जाने वाले अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देकर सेहत को बेहतर बनाए रखते हैं।

सेहत के लिए फायदेमंद हो सकते हैं प्रोबायोटिक्स

शरीर में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की वृद्धि एवं उनकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में मददगार भोजन में मौजूद तत्वों को प्रीबायोटिक कहते हैं। प्रीबायोटिक तत्व लैक्टोबैसिलस जैसे सूक्ष्मजीवों के विकास को प्रोत्साहित करते हैं, जो हमारी आंतों में पाए जाते हैं। प्रोबायोटिक ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवाणु या सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि खाद्य उत्पादों में सही मात्रा में प्रोबायोटिक्स हों तो वे सेहत के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

इनसे मिलकर बनती है आइसक्रीम

इस आइसक्रीम में मिल्क पाउडर, शुगर, फैट, स्टैबलाइजर, इमल्सिफायर, वैनिलिन, बीटा- मास युक्त एवं इससे रहित दूध या फिर फ्रूक्टो ओलिगोसैकेराइड (एफओएस) का उपयोग किया गया है। एफओएस एक प्रचलित प्रीबायोटिक है, जिसका उपयोग शोधकर्ताओं ने इस शोध में तुलनात्मक अध्ययन के लिए किया है।

ऐसे किया अध्ययन

शोध के दौरान प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स और वसा के विभिन्न संयोजन से युक्त आइसक्रीम के कई नमूने तैयार किए गए थे। इन नमूनों को शून्य से 20 डिग्री नीचे तापमान पर एक निर्धारित समय के लिए रखा गया था। अत्यधिक कम तापमान के बावजूद पाया गया कि आइसक्रीम में उपयोग किए गए प्रोबायोटिक सूक्ष्मजीव नष्ट नहीं हुए हैं। इसी आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि ये सूक्ष्मजीव मनुष्य के शरीर के भीतर आंतों में विषम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।

कम ताम में भी रहते हैं जिंदा

प्रमुख शोधकर्ता डॉ. मुकेश कपूर ने बताया कि प्रोबायोटिक सूक्ष्मजीव तभी उपयोगी हो सकते हैं, जब वे शरीर के भीतर विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रह सकें। शून्य से 20 डिग्री कम तापमान होने के बावजूद अधिकतर सूक्ष्मजीव 40 दिन तक बने हुए थे।


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