भारत के वैज्ञानिकों ने इजाद की चमत्कारिक तकनीक, मलेरिया को कंट्रोल करने में होगी मददगार
New technology for controlling malaria भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसकी मदद से मलेरिया के परजीवी प्लासमोडियम फैल्सीपैरम के खात्मे में मदद मिलेगी।
नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। New technology for controlling malaria Plasmodium falciparum भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में मलेरिया के परजीवी प्लासमोडियम फैल्सीपैरम की कोशिकाओं के भीतर जीन डिलीवरी की उन्नत और किफायती पद्धति विकसित की है। लाइस-फिल विद डीएनए-रिसील नामक यह पद्धति प्लासमोडियम फैल्सीपैरम के जैविक एवं अनुवांशिक तंत्र के बारे में गहरी समझ विकसित करने में उपयोगी हो सकती है, जिससे मलेरिया नियंत्रण में मदद मिल सकती है।
इसलिए मलेरिया हो जाती है खतरनाक
जीन्स की कार्यप्रणाली में बदलाव और उनके अध्ययन के लिए लक्षित कोशिकाओं में जीन डिलीवरी कराना एक आम पद्धति है। लेकिन, प्लास्मोडियम के अनुवांशिक अध्ययन में कई चुनौतियां हैं। शरीर में ऑक्सीजन ले जाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) में जब प्लास्मोडियम बढ़ता है, तो यह मलेरिया का कारण बनता है। ऐसे में, परजीवी को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है, क्योंकि लाल रक्त कोशिकाएं इसकी रक्षा करती हैं। यह स्थिति मलेरिया जीवविज्ञानी के लिए एक प्रमुख चुनौती होती है, क्योंकि प्लास्मोडियम के जीन्स तक पहुंचने के लिए चार कोशिका ङिाल्लियों को पार करना होता है।
इस तकनीक का होता है इस्तेमाल
जीन डिलीवरी के लिए आमतौर पर इलेक्ट्रोपोरेशन तकनीक उपयोग की जाती है। इस तकनीक में विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करके कोशिका ङिाल्ली की परतों में अस्थायी छिद्र बनाए जाते हैं, ताकि डीएनए जैसे वांछित रसायन कोशिका के भीतर प्रवेश कराए जा सकें। यह एक महंगी तकनीक है और इसमें काफी संसाधनों की जरूरत पड़ती है। हालांकि, प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम की कोशिकाओं में जीन डिलीवरी की यह नई विधि परंपरागत तकनीक के मुकाबले किफायती है, जिसे हैदराबाद स्थित कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है।
ऐसे नुकसान पहुंचाता है प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम
हाइपोटोनिक सॉल्यूशन के संपर्क में आने से (सॉल्यूशन जिसमें लवण की मात्र कोशिका के भीतर से कम हो) लाल रक्त कोशिकाओं में छेद हो जाता है, जिससे वांछित डीएनए कोशिका में प्रवेश कराया जा जाता है। सॉल्यूशन में लवण की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो विच्छेदित लाल रक्त कोशिका दोबारा सील हो जाती है। वैज्ञानिकों ने वांछित डीएनए युक्त पुन: सील हुई इन रक्त कोशिकाओं को प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम से संक्रमित कराया है। ऐसा करने पर देखा गया कि प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम आरबीसी के अंदर जाकर आरबीसी से डीएनए प्राप्त करता है और अंतत: डीएनए अपने जीन के साथ परजीवी के नाभिक में समाप्त हो जाता है।
10 गुना कम डीएनए की होती है जरूरत
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. पूरन सिंह सिजवाली ने बताया कि प्लासमोडियम फैल्सीपैरम मलेरिया के गंभीर रूपों के लिए जिम्मेदार है। प्लासमोडियम फैल्सीपैरम को नियंत्रित करने के लिए ऐसे जीन्स पर ध्यान केंद्रित करना होता है, जिन्हें लक्ष्य बनाकर उसी के अनुरूप प्रभावी दवाएं विकसित की जा सकें। परंपरागत इलेक्ट्रोपोरेशन विधि की अपेक्षा जीन डिलीवरी की इस पद्धति में दस गुना कम डीएनए की जरूरत पड़ती है।
किफायती है नई पद्धति
नई पद्धति का मुख्य लाभ यह है कि इसके लिए महंगी इलेक्ट्रोपोरेशन मशीन और अन्य ट्रेडमार्क सामानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। मलेरिया के प्रकोप से ग्रस्त दूरदराज के अधिकतर इलाकों में पर्याप्त संसाधनों से युक्त प्रयोगशालाएं कम ही देखने को मिलती हैं। ऐसे इलाकों में, नई पद्धति से कम संसाधनों की मदद से प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम के अनुवांशिक अध्ययन किया जा सकता है और इसके बारे में हम अपनी समझ को और विकसित कर सकते हैं।
देश के पूर्वी और मध्य भाग में देखे जाते हैं ज्यादा मामले
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की एक बड़ी आबादी पर मलेरिया का खतरा मंडरा रहा है। भारत में मलेरिया सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक प्रमुख समस्या है। मलेरिया के अधिकांश मामले देश के पूर्वी और मध्य भाग में देखे गए हैं। इनमें मुख्य रूप से वन, पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं। मलेरिया से ग्रस्त राज्यों में ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ उत्तर-पूर्वी राज्य जैसे- त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम शामिल हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि लाइस-फिल विद डीएनए-रिसील नामक यह पद्धति की मदद से हम मलेरिया के परजीवी को विकसित होने से रोक सकते हैं और वैश्विक स्तर पर कई देशों के लिए महामारी बन चुकी इस बीमारी का सफाया कर सकते हैं। इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में डॉ. पूरन सिंह के अलावा गोकुलप्रिया गोविंदराजू, जेबा रिजवी और दीपक कुमार शामिल थे।