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New Technology: चीड़ की पत्तियों से बनेगा जैविक ईंधन एथनाल, अब पराली पर होगा शोध

हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित डा. वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के विज्ञानियों को दो वर्ष के शोध के बाद चीड़ की पत्तियों से जैविक ईंधन एथनाल बनाने की तकनीक विकसित करने में सफलता मिली है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 03 Sep 2021 06:09 PM (IST)Updated: Fri, 03 Sep 2021 06:51 PM (IST)
New Technology: चीड़ की पत्तियों से बनेगा जैविक ईंधन एथनाल, अब पराली पर होगा शोध
हिमाचल के डा. वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के विज्ञानियों को मिली सफलता

विनोद कुमार, सोलन। अब चीड़ की पत्तियों से जैविक ईंधन एथनाल बनाया जा सकेगा। हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित डा. वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के विज्ञानियों को दो वर्ष के शोध के बाद इसकी तकनीक विकसित करने में सफलता मिली है। वर्तमान में लैब में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, सरकार से मंजूरी मिलने के बाद जल्द ही बड़े स्तर पर चीड़ की पत्तियों से इथेनाल का उत्पादन किया जाएगा। अब तक गन्ना व चावल से एथनाल तैयार होता है। विश्वविद्यालय के विज्ञानियों का कहना है कि इस तकनीक को भविष्य में पराली पर भी इस्तेमाल किया जाएगा। इस तकनीक के विकसित होने से एथनाल बनाने के लिए खाद्य पदार्थों पर निर्भरता कम हो जाएगी।

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50 लाख की है परियोजना

नौणी विश्वविद्यालय में पहले छोटे स्तर पर विद्यार्थियों के सहयोग से शोध शुरू किया। जब उन्हेंं कामयाबी मिलती दिखी तो नेशनल मिशन आन हिमालयन स्टडीज, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण और सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा से संपर्क कर शोध के विषय में चर्चा की। संस्थान की ओर से वर्ष 2018 में विश्वविद्यालय को 50.65 लाख रुपये की परियोजना स्वीकृत की गई। विज्ञानियों का कहना है कि कोरोना के कारण परियोजना पूरी होने में देर हुई।

वन की आग की चिंता से आया विचार

विश्वविद्यालय के बेसिक साइंस विभाग की अध्यक्ष डा. निवेदिता शर्मा इस परियोजना की मुख्य अन्वेषक हैं। अनुसंधान कार्य में रिसर्च एसोसिएट डा. निशा शर्मा ने भी साथ दिया। डा. निवेदिता ने बताया कि वह दो साल से इस पर शोध कर रही हैं। वनों की आग की घटनाओं से चिंतित होकर उन्हेंं शोध की प्रेरणा मिली, क्योंकि वनों की आग का एक बड़ा कारण नीचे गिरी चीड़ की पत्तियां भी हैं। उनका कहना है कि वह पेट्रोलियम पदार्थों के दोहन विषय पर भी कई कार्यशालाओं में भाग ले चुकी हैं, वहां से भी काफी प्रेरणा मिली।

दो चरण की है प्रक्रिया

इस माध्यम से एथनाल प्राप्त करने के लिए दो चरणों की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। पहले चरण में पत्तियों को सूक्ष्मजीवों की मदद से तोड़कर सेल्यूलोज (कार्बोहाइड्रेट) अलग किया जाता है और शुगर की फार्म में लाया जाता है। दूसरे चरण में शुगर से एथनाल बनाया जाता है। यह इथेनाल वैसा ही होगा जैसा चावल व गन्ने से तैयार किया जाता है। विश्वविद्यालय के निदेशक, अनुसंधान डा. रविंद्र शर्मा ने बताया कि आने वाले वर्षों में एथनाल का ईंधन के तौर पर उपयोग महत्वपूर्ण होता जाएगा। यह प्रदूषण कम करने मे भी सहायक होगा।

प्रदूषण कम करने में सहायक है इथेनाल

एथनाल एक प्रकार का अल्कोहल है। इसे पेट्रोल में मिलाकर गाडिय़ों में ईंधन की तरह प्रयोग किया जा सकता है। इथेनाल का उत्पादन प्रमुख रूप से गन्ने की फसल से होता है लेकिन शर्करा वाली कई अन्य फसलों से भी इसे तैयार किया जा सकता है। एथनालके इस्तेमाल से वाहन से कार्बन मोनोआक्साइड उत्सर्जन 35 फीसद कम होता है। यह सल्फर डाइआक्साइड को भी कम करता है। इसमें 35 फीसद आक्सीजन होती है और इससे नाइट्रोजन आक्साइड उत्सर्जन में कमी आती है।

वन अपशिष्ट से इथेनाल का उत्पादन

इस परियोजना में अब तक वन अपशिष्ट से एथनाल का उत्पादन करने के लिए नई तकनीक विकसित करने का काम पूरा किया गया है। बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए सरकार की मंजूरी ली जाएगी।

-डा. परविंदर कौशल, कुलपति, नौणी विश्वविद्यालय।


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