टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की याचिका खारिज, SC ने कहा- भूमि के मुआवजे में सिर्फ वैधानिक रूप से कटौती संभव
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन की पीठ ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसीएल) की अपील खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। टीएचडीसीएल ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के 2018 के फैसले को चुनौती दी थी।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किसानों को उनकी अधिग्रहीत जमीन के लिए दिए गए मुआवजे में सिर्फ वैधानिक रूप से ही कटौती की जा सकती है। राज्य या उसके विभाग किसी अन्य बहाने से उसमें कटौती नहीं कर सकते।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन की पीठ ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसीएल) की अपील खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। टीएचडीसीएल ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के 2018 के फैसले को चुनौती दी थी।
टीएचडीसीएल की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि कंपनी अधिग्रहीत जमीन के लिए मुआवजे का भुगतान कर चुकी है और विकसित जमीन लेने वालों से वह सिर्फ विकास शुल्क लेना चाहती है।
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, 'भूमि अधिग्रहण कानून के तहत दी गई रकम में कटौती सिर्फ वैधानिक तरीके से ही की जा सकती है। सरकार यह नहीं कह सकती है कि उसकी अपनी नीति है और मुआवजा कम दिया जाएगा। खासकर तब जब आदेश की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुष्टि की जा चुकी है।'
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एश्वर्य भाटी की दलीलें सुनी। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है। अगर और भी कुछ लंबित याचिकाएं हों तो उन्हें भी खारिज माना जाएगा।
भाटी ने कहा कि चूंकि विकसित जमीन दी गई है, इसलिए लाभार्थियों से सिर्फ विकास चार्ज की ही कटौती की गई है, जिसमें 4,500 परिवार आते हैं। इस पर याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा, 'सिर्फ इसलिए कि आप अपनी दलीलें सशक्त रूप से रख रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हमें सरकार (कंपनी) को एक मौका देना चाहिए।'