अनुच्छेद 370 पर SC ने केन्द्र और JK सरकार को जारी किया नोटिस
जम्मू-कश्मीर के संविधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और जम्मू-कश्मीर सरकार को नोटिस जारी किया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर संविधान को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर विचार का मन बनाया है। कोर्ट ने याचिका पर केन्द्र सरकार और जम्मू कश्मीर राज्य को नोटिस जारी किया है। साथ ही इस याचिका को भी अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली पहले से लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया है।
इस याचिका में जम्मू कश्मीर के संविधान को भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव करने वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। साथ ही भारतीय संसद से अनुच्छेद 370 में संशोधन का हक छीनने वाले राष्ट्रपति आदेश 1954 को भी रद करने की मांग की गई है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल व केएम जोसेफ की पीठ ने मंगलवार को याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद दिये। याचिका मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी मेजर रमेश उपाध्याय सहित चार लोगों ने दाखिल की है।
याचिका में मांग है कि कोर्ट घोषित करे कि भारतीय संसद को अनुच्छेद 368 के तहत कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को संशोधित करने का अधिकार है। याचिका में जम्मू कश्मीर के संविधान की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये नियमों के अनुरूप गठित संविधान सभा ने नहीं बनाया है। राज्य का कानून भारतीय संविधान के प्रावधानों को निष्कि्रय नहीं कर सकता और न ही भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकता है।
यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत जम्मू कश्मीर के बारे में प्राप्त शक्तियों के तहत जम्मू कश्मीर राज्य निवासियों को ऐसे विशेष अधिकार नहीं दे सकते जिनका लाभ भारतीय नागरिकों को न मिले। जम्मू कश्मीर के बारे में राष्ट्रपति आदेश 1954 के कुछ प्रावधान भारतीय संविधान के खिलाफ हैं इसलिए उन्हें असंवैधानिक घोषित किया जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अनुच्छेद 370 का प्रावधान अनिश्चित काल के लिए नहीं था।
याचिका में जम्मू कश्मीर संविधान की धारा 6,7,8,9 और 10 पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि ये धाराएं भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। जम्मू कश्मीर में सिर्फ वहां के स्थाई निवासियों को चुनाव लड़ने का अधिकार है कोई और व्यक्ति स्वयं को वहां मतदाता पंजीकृत नहीं करा सकता न ही वहां संपत्ति खरीद सकता है। जबकि जम्मू कश्मीर का निवासी देश में कहीं भी संपत्ति खरीद सकता है और नौकरी कर सकता है। यहां तक कि मतदाता का अधिकार पा सकता है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे भारत के नागरिक हैं और जम्मू कश्मीर में संपत्ति खरीद कर बसना चाहते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर के संविधान और राष्ट्रपति आदेश 1954 के प्रावधान उसमें बाधा बन रहे हैं। याचिका में जम्मू कश्मीर संविधान की धारा 6,7,8,9,10,50(2),51ए,140 और 144 को और भारतीय संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 35ए और 368(2) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।