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डिजिटल भारत पर धब्बा, बुंदेलखंड में फटी साड़ियों के शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की खोल रहे पोल

इलाके में साड़ियों की आड़ वाले शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोल रहे हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 22 Aug 2020 07:16 PM (IST)Updated: Sat, 22 Aug 2020 07:16 PM (IST)
डिजिटल भारत पर धब्बा, बुंदेलखंड में फटी साड़ियों के शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की खोल रहे पोल
डिजिटल भारत पर धब्बा, बुंदेलखंड में फटी साड़ियों के शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की खोल रहे पोल

मनीष असाटी, टीकमगढ़। डिजिटल भारत में साड़ियों की आड़ लगाकर बने शौचालय..यह बात जानकर चौंकिए नहीं। यह हकीकत है उस बुंदेलखंड की, जहां आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यहां के लोग सरकारी योजनाओं के तहत बने शौचालयों में साड़ियों की आड़ करने को मजबूर हैं। जाहिर है इनकी दीवारों पर भ्रष्टाचार की दीमक लग गई होगी। यही नहीं, जिस ग्राम पंचायत को प्रशासनिक अधिकारियों ने खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया वहां भी लोगों को साड़ियों की आड़ में शौच क्रिया के लिए जाना पड़ रहा है।

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स्वच्छ भारत अभियान: टीकमगढ़ जिले के सापौन गांव में एक भी शौचालय नहीं है

टीकमगढ़ जिले में प्रशासन द्वारा 1,82,738 शौचालय बने होने का दावा किया जा रहा है। टीकमगढ़ जनपद पंचायत के पांच हजार की आबादी वाले सापौन गांव में कई घरों में फटी हुई साड़ियों को लकड़ियों के चारों ओर लपेटकर शौचालय बना लिए गए हैं। जिले के मोहनगढ़, खरगापुर और बड़ागांव धसान क्षेत्र में भी स्वच्छ भारत अभियान का हाल कुछ ऐसा ही है। यहां पर न तो शौचालय बने हैं और न ही जागरूकता के लिए किसी कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। खरगापुर के सौरयां गांव में भी ऐसे ही शौचालय देखे जा सकते हैं। यह हाल तब है जब जिला पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन की टीम भी अलग से तैनात है, लेकिन उसने भी ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हकीकत देखने से मुंह फेर रखा है।

टीकमगढ़ ओडीएफ घोषित, साड़ियों की आड़ वाले शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोल रहे हैं

प्रशासन ने टीकमगढ़ जनपद पंचायत को ओडीएफ घोषित करते हुए हजारों शौचालय निर्माण कराने का दावा किया है। शौचालय निर्माण के लिए हितग्राही को 12 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाने के दस्तावेज भी पूरे हैं। हालांकि यह रकम एक शौचालय बनाने के लिए कम पड़ती है लेकिन गांवों में किसी तरह दीवारें खड़ी कर शौचालय बना लिया जाता है। इलाके में साड़ियों की आड़ वाले शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोल रहे हैं।

अधिकारियों ने दफ्तरों में बैठकर ही ग्राम पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया

गौरतलब है कि गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) सूची में शामिल लोगों को इस योजना का लाभ मिलता है। कागजों में गांव हुए ओडीएफ ऐसी स्थिति यह भी बताती है कि लक्ष्य को पूरा करने के लिए अधिकारियों ने दफ्तरों में बैठकर ही ग्राम पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया। खुले में शौच से मुक्त गांवों को पुरस्कार सहित प्रमाण पत्र भी दे दिए गए, लेकिन हितग्राही आज भी परेशान दिखते हैं। इसकी एक वजह पंचायत को निर्माण एजेंसी बनाकर शौचालय निर्माण करवाना भी रहा।

जिले का एक भी गांव ऐसा नहीं है, जहां शौचालय पूरे बने हों

जिले में ऐसे करीब 20 हजार शौचालय हैं जिनका निर्माण इस एजेंसी के जिम्मे था, लेकिन वे भी पूरी तरह बन नहीं पाए हैं। इसके लिए भी ग्रामीण सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते देखे जा सकते हैं। मैदानी हकीकत यही है कि जिले का एक भी गांव ऐसा नहीं है, जहां शौचालय पूरे बने हों और उनका उपयोग हो रहा हो।

'तुम्हारी फाइलों में गांव मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे, दावा किताबी है'

फर्जी ओडीएफ पर अदम गोंडवी की पंक्ति याद आती है कि 'तुम्हारी फाइलों में गांव मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे, दावा किताबी है।'

यह बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी है। टीम को भेजकर जांच करवाई जा रही है। दोषियों पर कार्रवाई होगी। हितग्राही को नियमानुसार लाभ दिलाया जाएगा। साथ ही स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करेंगे- सुदेश कुमार मालवीय, सीईओ, जिला पंचायत टीकमगढ़।


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