रोहिंग्या मानवीय मुद्दा लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा भी महत्वपूर्ण
ये टिप्पणियां मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो रोहिंग्याओं की वापस भेजे जाने की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रोहिंग्या मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ये एक मानवीय मुद्दा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि संविधान मानवीय मूल्यों के सिद्धांत पर आधारित है लेकिन इस मामले में आर्थिक,भौगोलिक और श्रमिक हितों का भी ध्यान रखना होगा। मानवीय मूल्यों और राष्ट्रहित के बीच संतुलन बनाना होगा।
ये टिप्पणियां मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो रोहिंग्याओं की वापस भेजे जाने की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं। पीठ ने मामले को नियमित सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तिथि तय करते हुए शुरुआत में सरकार को सुझाव दिया कि तब तक वह रोहिंग्याओं को वापस नहीं भेजेगी लेकिन केन्द्र सरकार की पैरोकारी कर रहे एएसजी तुषार मेहता ने आदेश में इन लाइनों को न शामिल करने का अनुरोध किया। मेहता ने कहा कि सरकार के अंतरराष्ट्रीय दायित्व हैं। कोर्ट के आदेश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर होगा। कोर्ट को ये बात आदेश में नहीं दर्ज करनी चाहिए। इसकी कोई जरूरत भी नहीं है।
सरकार कोर्ट का मंतव्य समझती है। इस पर पीठ ने कहा कि भले ही वे आदेश में ये बात न कहें लेकिन फिर भी इतना तो आदेश में लिखा सकते हैं कि मामला लंबित है। मेहता ने इसे भी आदेश में दर्ज करने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ये बात सभी पक्षों को पता है तो फिर आदेश में लिखाने की क्या जरूरत है। इस पर पीठ ने आदेश में लिखाना चाहा कि सरकार इस बीच कोई आपात स्थिति नहीं पैदा करेगी परन्तु मेहता ने इसका भी विरोध किया और अंत में कोर्ट ने रोहिंग्या की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ वकील फली नारिमन को संबोधित करते हुए आदेश मे लिखाया कि अगर कोई आपात स्थिति आती है तो वे कोर्ट के समक्ष आकर मामले का जिक्र कर सकते हैं। रोहिंग्या के मुद्दे पर सरकार की शुरू से दलील है कि ये सरकार का नीतिगत मामला है इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।
इससे पहले पीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले के गहरे मायने हैं। पीठ ने कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ जरूर कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन निर्दोष जैसे बच्चे, महिलाएं, बीमार बेसहारा लोग परेशान नहीं होने चाहिए। इस मामले में मानवीय मूल्यों और राष्ट्रहित के बीच संतुलन बनाना होगा। कोर्ट ने आज फिर साफ किया कि वो सिर्फ कानूनी मुद्दों पर सुनवाई करेगा भावात्मक अपीलें नहीं सुनेगा।
इससे पहले रोहिंग्या को वापस भेजे जाने का विरोध करते हुए फली नारिमन ने कहा कि सरकार के मानवाधिकार के बारे में अतंरराष्ट्रीय दायित्व हैं। उन्होंने कहा कि सरकार फारेनर एक्ट के प्रावधानों की दुहाई दे रही है लेकिन सरकार चाहे तो उस कानून में भी वह रोहिंग्या का पक्ष ले सकती है।