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कोरोना महामारी के चलते बढ़ा हार्ट अटैक का खतरा, अमेरिकी रिसर्च में बड़ा खुलासा

एक अमेरिकी रिसर्च के मुताबिक कोविड महामारी के दौरान रहन-सहन की बदली आदतों की वजह से लोगों में बड़े पैमाने पर ब्लड प्रेशर की बीमारी बढ़ी है। ब्लड प्रेशर बढ़ने से हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ा है।

By TilakrajEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 03:46 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:25 PM (IST)
कोरोना महामारी के चलते बढ़ा हार्ट अटैक का खतरा, अमेरिकी रिसर्च में बड़ा खुलासा
भारत और चीन में सबसे तेजी से बढ़ रहे हार्ट फेल के मामले

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। दुनिया भर में कोरोना महामारी ने लोगों को कई तरह से नुकसान पहुंचाया है। कोविड-19 वायरस की चपेट में आए लोग इससे काफी प्रभावित हुए हैं। वहीं इसकी वजह से लोगों की लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव आया, जिसकी वजह से कुछ बीमारियां बढ़ी हैं। एक अमेरिकी रिसर्च के मुताबिक, कोविड महामारी के दौरान रहन-सहन की बदली आदतों की वजह से लोगों में बड़े पैमाने पर ब्लड प्रेशर की बीमारी बढ़ी है। ब्लड प्रेशर बढ़ने से हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में से समस्या ज्यादा देखी गई है। ओहियो की क्लीवलैंड क्लिनिक में सेंटर फॉर ब्लड प्रेशर डिसऑर्डर के सह-निदेशक और अध्ययन के प्रमुख डॉ ल्यूक लाफिन ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि लाकडाउन के दौरान एक्सरसाइज न करने, मोटापा बढ़ने और ज्यादा शराब पीने से लोगों में ब्लड प्रेशर की शिकायत बढ़ी है। लोगों के ब्लड प्रेशन में औसतन 1.1 से 2.5 mmHg की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

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सर्कुलेशन ट्रस्टड सोर्स जनरल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, COVID-19 महामारी का अप्रत्यक्ष तौर पर लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ा है। लोगों में ब्लड प्रेशर बढ़ने या हाइपरटेंशन की वजह से हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ा है। वहीं हाइपरटेंशन बढ़ने से लोगों की आंखों, लिवर और दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है। उन्होने बताया तकरीबन अमेरिका के लगभग 47 फीसदी वयस्कों में हाइपरटेंशन की समस्या है। वहीं 2019 में अमेरिका में लगभग पांच लाख मौतों में हाइपरटेंशन को कारण माना गया है।

इस तरह किया अध्ययन

इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों के एक समूह ने 2018–2020 के बीच यू.एस. में एक इम्पलाई वेलनेस प्रोग्राम के तहत लोगों के ब्लड प्रेशर का डाटा एकत्र किया। इस अध्ययन में लगभग 464,585 प्रतिभागी शामिल थे, जिनमें से 53.5% महिलाएं थीं, जिनकी 2018 में औसत आयु 45.7 वर्ष थी। वैज्ञानिकों ने 2018, 2019 में महामारी से पहले और 2020 के मार्च तक लोगों में ब्लड प्रेशर के स्तर की तुलना की। इस दौरान अमेरिका में ज्यादार अमेरिकी राज्यों ने लोगों को घर पर रहने के आदेश दिए। फिर उन्होंने इन स्तरों की तुलना महामारी के दौरान अप्रैल-दिसंबर 2020 से दर्ज किए गए लोगों के डेटा से की।

हाई ब्लड प्रेशर की बात से अनजान होते हैं कई मरीज

डॉ ल्यूक लाफिन का कहना है कि हाई ब्लड प्रेशर से आपको दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर है, क्योंकि आमतौर पर इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं। अपने ब्लड प्रेशर की नियमित जांच करवाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि शारीरिक गतिविधि आपके ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद कर सकती है। वयस्कों को 150 मिनट की मध्यम-तीव्रता वाली गतिविधि करने का लक्ष्य रखना चाहिए। उदाहरण के लिए, तेज चलना या 75 मिनट की कसरत। वहीं, डॉक्टर के परामर्श के बाद रनिंग भी काफी सहायक है।

भारत और चीन में सबसे तेजी से बढ़ रहे हार्ट फेल के मामले

भारत और चीन में हार्ट फेल के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे है। भारत और चीन जैसे देशों में वायु प्रदूषण भी कार्डियोवास्कलुर रोग और सांस की बीमारी जैसे रोगों का प्रमुख कारण है। दुनिया भर में हार्ट फेल से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। अकेले भारत और चीन में विश्व के 46.5 फीसदी नए मामले सामने आए हैं। यह खुलासा यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध में हुआ है। लैंसेट' में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक इस्केमिक (आईएचडी) हृदय रोग के दुनियाभर में मामलों का करीब चौथाई हिस्सा अकेले भारत में होता है।

शोध के मुताबिक 2017 में हार्ट फेल के केसों की संख्या 64.3 मिलियन थी जिसमें 29.5 मिलियन पुरुष थे जबकि महिलाओं की संख्या 34.8 मिलियन थी। रिपोर्ट के अनुसार 1990 से 2017 के बीच हार्ट फेल के मामलों में 91.9 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। अध्ययन के अनुसार 1990 से 2017 के दौरान हार्ट फेल के मामले करीब-करीब दोगुने हो गए है।

यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार हार्ट फेल के मामले 70 से 74 साल के पुरुषों में अधिक है। वहीं 75-79 साल की महिलाओं में हार्ट फेल के मामले ज्यादा है। प्रमुख बात यह है कि 70 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में हार्ट फेल के मामले अधिक है। रिपोर्ट में बड़ी बात यह है कि हार्ट फेल के मामले 1990-2017 के दौरान चीन और भारत में सबसे अधिक बढ़े हैं। चीन में हार्ट फेल के मामले 29.9 फीसद बढ़े है वहीं भारत में 16 फीसद बढ़े है। यानी सीधे तौर पर कहें तो यह एशिया में तेजी से बढ़ रहा है।

दुनिया भर में सबसे अधिक मामले इस्केमिक हार्ट रोग के होते हैं। यह कुल मामलों का 26.5 फीसद होते हैं। जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज कुल मामलों का क्रमश: 26.2 और 23.4 प्रतिशत होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस्केमिक हार्ट रोग, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और एल्कोहलिक कार्डियोपैथी पुरुषों में अधिक होती है जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और रयूमेटिक हार्ट रोग महिलाओं में अधिक होते हैं।

मृत्यु के 10 बड़े कारण

डब्ल्यूएचओ ने 2019 में दुनिया में होने वाली मृत्यु के 10 कारणों की रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें दिल का कारण प्रमुख था। दिल की बीमारी, स्ट्रोक, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (लंबे समय तक फेफड़ों में रुकावट), श्वसन संक्रमण, नवजात को होने वाली बीमारियां व समस्याएं, श्वासनली, ब्रोन्कस और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौत, अल्जाइमर और मनोभ्रंश, डायरिया, डायबिटीज और किडनी की बीमारियां।

लैसेंट की रिपोर्ट में ये आया था सामने

लैंसेट' में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक इस्केमिक (आईएचडी) हृदय रोग (इस्केमिक हार्ट रोग ऐसी स्थिति है जो दिल में रक्त की आपूर्ति को ‎प्रभावित करती है। रक्त वाहिकाओं को उनकी दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल के ‎जमाव के कारण संकुचित या अवरुद्ध कर दिया जाता है। इससे हृदय की मांसपेशियों ‎में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति कम हो जाती है, जो ‎दिल की उचित कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है। इसकी वजह से अचानक रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है , जिसके परिणामस्वरूप दिल का दौरा पड़ता है।) के दुनियाभर में मामलों का करीब चौथाई हिस्सा अकेले भारत में होता है। दिल में खून की कम आपूर्ति इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है. इस्केमिक हृदय रोग भारतीय मरीजों में हार्ट फेलियर का मुख्य कारण है।

हमने एक्सपर्ट्स डॉक्टर से हार्ट रोग को लेकर कुछ सवालों के उत्तर तलाशें

कोरोना दिल को किस तरह नुकसान पहुंचाता है?

हर मामले में ऐसा नहीं होता है, लेकिन कोरोना के बाद दिल को कई तरह के नुकसान पहुंचते हैं। हार्ट की कोशिकाओं में रिसेप्टर्स होते हैं। इन रिसेप्टर्स को वायरस सीधे तौर पर प्रभावित करता है। वायरस के असर से शरीर में सूजन उत्पन्न हो जाती है, जिसका बुरा असर हृदय पर पड़ता है।

कोरोना के बाद हार्ट अटैक किन स्थितियों में पड़ता है?

डॉ ल्यूक लाफिन का कहना है कि वायरस का प्रतिकूल प्रभाव हृदय की धमनियों की इनर लाइनिंग (एंडोथीलियम) पर भी पड़ता है। इस प्रतिकूल प्रभाव से धमनियों की इनर लाइनिंग नष्ट हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप धमनियों में रक्त के थक्के बनने लगते हैं। इस स्थिति में हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। कोविड-19 वायरस हार्ट के सिस्टम पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके कारण पोस्ट कोविड पीरियड में दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है। यहां तक कि अनेक पोस्ट कोविड मरीजों को पेसमेकर की भी आवश्यकता पड़ सकती है।

किसी तरह की दिक्कत होने पर कौन से टेस्ट करवाने चाहिए?

अगर किसी तरह की परेशानी है तो पहले किसी चिकित्सक से संपर्क करें। उसके निर्देशानुसार ही दवा और टेस्ट कराएं। वैसे इकोकार्डियोग्राफी से हृदय की मांसपेशियों (हार्ट मसल्स) में होने वाली क्षति का पता चलता है। पीड़ित व्यक्ति की 24 घंटे तक मानीटरिंग और ईसीजी से दिल या इसकी धड़कन से संबंधित समस्या का पता चल जाता है। लिपिड प्रोफाइल और डी-डाइमर टेस्ट कराए जाते हैं।

किन लक्षणों के होने पर तुंरत सचेत हो जाना चाहिए?

लेडी हार्डिंग की वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी समीक्षा जैन का कहना है कि अगर आपको सांस लेने में तकलीफ होती है, छाती में दर्द रहता है, पैरों में सूजन होती है, चलते समय सांस फूलती है, तो इन लक्षणों को नजरंदाज न करें। वहीं अगर आपका पल्स रेट भी तेजी से ऊपर-नीचे होता है, तो भी तुरंत डॉक्टस से संपर्क साधें।

किन लोगों को अधिक एहतियात बरतने की जरुरत है?

एसआरएन के कॉर्डियोलॉजी विभाग के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. राजपाल प्रजापति का कहना है कि कोरोना से फेफड़े की नसों में क्लॉटिंग हो रही है तो हार्ट की खून की नसों में भी थक्के जम रहे हैं। जिन लोगों को पहले से सुगर, ब्लड प्रेशर या गुर्दे के रोग हैं। जिनका डी-डाइमर कोरोना के समय बढ़ा हुआ होता है तो ऐसे मरीजों को डिस्चार्ज होने के एक माह तक खून पतला होने की दवा दी जाती है। यह दवा देना जरूरी हो गया है। कहा कि कोरोना के बाद अचानक मौत हो रही हैं उसमें यह क्लॉटिंग बहुत बड़ा कारण है।

रिम्स के सीटीवीएस विभाग के हेड डां अंशुल कुमार ने बताया कि ब्लडप्रेशर को नियंत्रण में रखना भी हार्ट अटैक से बचने का महत्वपूर्ण तरीका है। ब्लडप्रेशर अधिक होने से हृदय को शरीर में रक्त को धकेलने में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। इससे हृदय का आकार बड़ा हो सकता है और धमनियों में वसा के जमा होने की आशंका बढ़ जाती है। डॉक्टर का कहना है कि तनाव की वजह से कोरोना के मरीजों की दिक्कत ज्यादा बढ़ रही है। तनाव लेने से ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है और इसकी वजह से हृदय गति भी बढ़ जा रही है।

ब्लड प्रेशर के मरीजों को दिल से जुड़ी बीमारियों की संभावना क्या अधिक होती है?

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के चेयरमैन डा. नरेंद्र सैनी का कहना है कि ब्लडप्रेशर बढ़ने के 2 बड़े कारण है। पहला तनाव बढ़ना और दूसरा खराब लाइफस्टाइल से मोटापा बढ़ना। लॉकडाउन में लोग तनाव में भी रहे और खूब उल्टा सीधा खाया। साथ ही व्यायाम भी नहीं किया। ये खतरनाक है। व्यायाम न करने से बॉडी में मौजूद कोलेस्ट्रोल धमनियों में जमा हो जाता है। जिससे दिल को नुकसान पहुँचता है। ऐसे में रोज नियमित व्यायाम कर के दिल को स्वस्थ रखा जा सकता है।

कोरोना के बाद बचाव के लिए क्या करें?

समीक्षा ने बताया कि ब्लड प्रेशर की नियमित रूप से जांच करें या करवाते रहें। आपका कैलरी इनटेक आपकी शारीरिक सक्रियता और मेटाबालिज्म के अनुसार होना चाहिए। अपने भोजन में फलों, सलाद, हरी सब्जियां, साबूत अनाज को प्रमुखता से शामिल करें। तेल और घी का सेवन बहुत कम करें। प्रतिदिन 30 ग्राम लहसुन खाएं, क्योंकि यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है और रक्त संचरण को ठीक करता है। एल्कोहल और धूमपान से दूर रहें। ज्यादा नमक का सेवन करने से बचें। दिन में कम से कम 30 मिनट हल्का-फुल्का व्यायाम जरूर करें। इससे रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी नियंत्रित रहेगा।

समीक्षा जैन के अनुसार दरअसल रोज व्यायाम न करने और मोटापा बढ़ने से धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है। इसके चलते ब्लडप्रेशर बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। अगर कोलेस्ट्रॉल ज्यादा जमा हो जाए तो हार्ट अटैक की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे में किसी भी व्यक्ति को रोज कम से कम 30 मिनट व्यायाम करना चाहिए जबतक दिल की धड़कन सुनाई न देने लगे।


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