हिमालय पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा, 2100 तक गायब हो जाएंगे 20 फीसद ग्लेशियर
हिंदू कुश पर्वतश्रंख्ला पर केंद्रित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि धरती का तापमान यूं ही बढ़ता रहा तो इस सदी के अंत तक हिमालय के 20 फीसद ग्लेशियर पिघलकर खत्म हो जाएंगे।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों के क्षेत्र हिमालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र के दो-तिहाई ग्लेशियर इस सदी के अंत तक पिघलकर खत्म हो जाएंगे। इसकी वजह धरती का लगातार बढ़ता तापमान या यूं कहें कि क्लाइमेट चेंज है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यदि धरती के बढ़ते तापमान को नहीं रोका गया तो इससे भी अधिक भयानक संकट का सामना हमें भविष्य में करना पड़ सकता है। रिपोर्ट पूरी तरह से हिंदू-कुश पर्वतश्रंख्ला को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
यदि उत्सर्जन नहीं घटा तो दुनिया का तीसरा ध्रुव समझे जाने वाले हिमालय ग्लेशियर का दो तिहाई हिस्सा वर्ष 2100 तक पिघल जाएगा। इससे भारत से लेकर चीन तक नदियों का प्रवाह तो प्रभावित होगा ही, फसल उत्पादन भी मुश्किल हो जाएगा। इस रिपोर्ट को 210 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसका नेतृतव फिलिपस वेस्टर ने किया है। हिदू कुश हिमालय एसेसमेंट के अनुसार, यदि ग्लोबल वॉमिर्ग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाली पेरिस संधि का लक्ष्य हासिल हो भी जाता है, तब भी एक तिहाई ग्लेशियर नहीं बच पाएंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर इन पहाड़ों में 25 करोड़ लोगों तथा नदी घाटियों में रहने वाले 1.65 अरब अन्य लोगों के लिए अहम जल स्त्रोत हैं। ग्लेशियर गंगा, सिंधु, येलो, मेकोंग, ईर्रावड्डी समेत दुनिया की 10 सबसे महत्वपूर्ण नदियों के लिए जल स्त्रोत हैं। इनसे अरबों लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भोजन, ऊर्जा, स्वच्छ वायु और आय का आधार मिलता है।
यह रिपोर्ट काठमांडू के इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवेलपमेंट इन नेपाल द्वारा प्रकाशित की गई है। अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि ग्लेशियर के पिघलने से वायु प्रदूषण और मौसम के प्रतिकूल होने का खतरा बढ़ सकता है। यदि अब भी हम नहीं चेते तो इस सदी के अंत हिमालय का तापमान 8 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाएगा।
मानसून से पहले नदियों के प्रवाह से शहरी जलापूर्ति, खाद्य एवं ऊर्जा उत्पादन जैसी व्यवस्थाएं प्रभावित होंगी। कुल 3,500 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में आठ देश भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान आते हैं। बीते वर्ष अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो तापमान 2.7 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाएगा।
यहां पर आपको बता दें कि दो वर्ष पहले काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के विशेषज्ञ अंजलि प्रकाश और अरुण बी. श्रेष्ठ ने अपने अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट में लिखा था कि ग्लेशियरों के पिघलने से शुरू में नदियों के जलस्तर में वृद्धि होगी और इससे बाढ़ आने का खतरा भी बढ़ जाएगा। लेकिन जब ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे तब नदियों में पिघले बर्फ की मात्रा काफी कम हो जाएगी। इसके परिणामस्वरूप कुछ इलाकों में भूजल रिचार्ज की दर कम हो जाएगी।
अध्ययन में कहा गया है कि निचली ऊंचाई पर ग्लेशियर पिघलने से अगले कुछ दशकों में पानी की उपलब्धता में बदलाव की संभावना कम है, लेकिन अन्य कारणों के चलते इस पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। इनमें भूजल की कमी और लोगों द्वारा अधिक मात्रा में पानी का उपभोग शामिल है। अध्ययन के मुताबिक, ग्लेशियर का पिघलना मौजूदा दर से जारी रहा तो ऊंचाई वाले इलाके में कुछ नदियों के बहाव में बदलाव हो सकता है।
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