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राइट टु सिट के लिए सरकारों को होना पड़ेगा सक्रिय, दुकानों में सेल्समैन के बैठने के प्रबंध के लिए कानून लाने की तैयारी

तमिलनाडु द्वारा कानून में संशोधन कर दुकानों में काम करने वालों को बैठने का अधिकार (राइट टु सिट) देने के प्रस्ताव ने नई बहस छेड़ दी है। बड़े माल शोरूम में सेल्समैन के बैठने की सीट नहीं होती। राइट टु सिट सेल्समैन के बैठने के अधिकार की वकालत करता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 08:39 PM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 06:46 AM (IST)
राइट टु सिट के लिए सरकारों को होना पड़ेगा सक्रिय, दुकानों में सेल्समैन के बैठने के प्रबंध के लिए कानून लाने की तैयारी
राइट टु सिट सेल्समैन के बैठने के अधिकार की वकालत करता है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। तमिलनाडु द्वारा कानून में संशोधन कर दुकानों में काम करने वालों को बैठने का अधिकार (राइट टु सिट) देने के प्रस्ताव ने एक नई बहस छेड़ दी है। बड़े माल, शोरूम में सेल्समैन के बैठने की सीट नहीं होती। राइट टु सिट इसी सेल्समैन के बैठने के अधिकार की वकालत करता है। करीब तीन साल पहले केरल ने भी कानून में संशोधन कर दुकान में काम करने वालों को राइट टु सिट का अधिकार दिया था। लेकिन सिर्फ दुकान में काम करने वाला सेल्समैन ही नहीं बल्कि और भी कई ऐसी नौकरियां है, जिसमें घंटों खड़े रहना पड़ता है। लगातार खड़े रहने का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

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राइट टु सिट के लिए सरकारों को होना पड़ेगा सक्रिय

तमिलनाडु सरकार जो कानून ला रही है, उसके पीछे व्यक्ति की सेहत एक प्रमुख कारण है। प्रस्तावित कानून में यह नहीं है कि दुकान का हर कर्मचारी हर समय बैठकर ही काम करेगा। कानून में कहा गया है कि हर दुकान में कर्मचारी के बैठने की व्यवस्था होगी ताकि उसे काम के दौरान जब मौका मिले तो वह बैठ सके। संविधान के अनुच्छेद 42 में कहा गया है कि राज्य काम की उचित मानवीय स्थितियां सुनिश्चित करने के लिए प्रविधान करेंगे। इसके अलावा अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के अधिकार में गरिमापूर्ण ढंग से जीवन जीने का अधिकार शामिल है।

पालिसी गाइड लाइन तय करे केंद्र सरकार

राइट टु सिट पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस शिवकीर्ति सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार इस बारे में पालिसी गाइड लाइन तय करे। सारी चीजों को ध्यान में रखते हुए सभी स्टेक होल्डर्स से विचार विमर्श करके इस पर नीति निर्धारण की आवश्यकता है। स्टेट को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि वह मानते हैं कि इसमें वर्गीकरण करना पड़ सकता है क्योंकि सब जगह एक समान स्थिति नहीं होती है।

निश्चित अंतराल पर बदलती है ड्यूटी

उनका मानना है कि इस बारे में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए सोचे तो ज्यादा यूनीफार्म कानून बन सकता है। सेना में झंडे की रखवाली करता सैनिक या गार्ड की ड्यूटी देता सिपाही भी खड़ा रहता है, लेकिन वहां एक नियम है। रिटायर्ड मेजर जनरल जीकेएस परिहार कहते हैं कि वैसे तो लिखत पढ़त में ऐसा कोई नियम सेना में नहीं है कि एक व्यक्ति कितनी देर खड़े रह कर ड्यूटी करेगा, लेकिन खड़े रहने की ड्यूटी निश्चित अंतराल पर बदलती है। झंडे की रखवाली में खड़े सैनिक की ड्यूटी दो घंटे में बदलती है।

इसी तरह गार्ड की ड्यूटी में भी चार लोग रहते हैं। एक व्यक्ति जब ड्यूटी देता है तो बाकी तीन उस दौरान आराम करते हैं। वैसे भी सशस्त्र बल और आम लोगों में अंतर है। सेना में कड़ी ट्रेनिंग होती है, जिससे शारीरिक और मानसिक मजबूती आती है। यूनीफार्म में भी सेहत और सुविधा का ख्याल रखा जाता है। उनके जूते स्पेशल होते हैं और एंकलेट लगाया जाता है, जिससे पैर सुरक्षित रहें।

नोएडा की गारमेंट फैक्ट्री में खड़े रह कर धागा काटने की ड्यूटी करने वाली निर्मला बताती हैं कि सुबह नौ बजे से लेकर शाम छह बजे तक ड्यूटी होती है। पूरी ड्यूटी में 11 बजे और चार बजे 15-15 मिनट का विश्राम मिलता है और एक बजे आधा घंटे का लंच होता है। इस विश्राम के बावजूद कई लोगों के पैरों में सूजन आ जाती है या अन्य तरह की दिक्कतें होती हैं।

लगातार खड़े रहने से स्वास्थ्य पर असर पड़ने के बारे में सीनियर फिजीशियन डाक्टर एके अनुरागी कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति का एक स्थिति में ज्यादा खड़े रहना स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। जो लोग घंटों खड़े रह कर काम करते हैं उन्हें कई तरह की दिक्कतें हो जाती हैं। पैरों की नसें फूल जाती हैं जिसे वेरीकोस वेन कहते हैं। पैरों में सूजन भी आ जाती है जो रक्त प्रवाह में गड़बड़ी से होती है।


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