न्यूनतम बैलेंस फीस पर होगा पुनर्विचार: रजनीश कुमार
एनपीए की समस्या से बैंक जूझ ही रहे हैं कि पीएनबी में हुए अभी तक के सबसे बड़े घोटाले ने हालात और संजीदा बना दिये हैं।
देश का बैंकिंग सेक्टर संकटकाल से गुजर रहा है। एनपीए की समस्या से बैंक जूझ ही रहे हैं कि पीएनबी में हुए अभी तक के सबसे बड़े घोटाले ने हालात और संजीदा बना दिये हैं। ऐसे में देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने इस घोटाले और एनपीए की समस्या से लड़ने की उनकी रणनीति समेत अन्य मुद्दों पर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन से बात की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।
हाल ही में एक बड़े उद्यमी नीरव मोदी व उनकी कंपनियों को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है, किस तरह से आप उसे देखते हैं?
- मुझे यह एक हद तक सिस्टम को सही तरीके से लागू नहीं करने की खामी और बहुत हद तक धोखेबाजी का नतीजा लगता है। देखिए, बैंक में हम नकदी का लेन-देन करते हैं और इस कारोबार में हमेशा रिस्क होता है। यह कई तरह के होते हैं मसलन, क्रेडिट रिस्क होता है, नियमों को सही तरीके से लागू नहीं करने का रिस्क होता है, मार्केट रिस्क होता है। एक बैंक के तौर पर हमें इस रिस्क को टालने या उसे कम करने के लिए कदम उठाने पड़ते हैं। हर वित्तीय लेन देन को कई बार मानवीय प्रक्रियाओं से भी गुजरना पड़ता है और वहां भी गड़बड़ी होने की गुंजाइश होती है। इन जोखिमों को घटाने की व्यवस्था है, नियम हैं जिन्हें हमें न सिर्फ कड़ाई से लागू करना पड़ता है बल्कि उनमें लगातार सुधार भी करना होता है। निश्चित तौर पर जो हुआ है वह हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि अब कितनी ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है।
क्या आपके बैंक ने भी इन कंपनियों को पैसा दिया है? इस घटना से क्या सीख लेगा आपका बैंक?
- जहां तक इस घटना का आप जिक्र कर रहे हैं तो हमने सीधे तौर पर नीरव मोदी या उसकी कंपनी को कोई फंड नहीं दिया है। हमने पीएनबी के एलओयू पर भरोसा करके फंड दिया है। इसलिए एसबीआइ ने या किसी और बैंक ने जो भी रकम दी है उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से पीएनबी की है। जहां तक सीख लेने की बात है तो एक बैंक के तौर पर हम हमेशा अपना जोखिम कम करने की तकनीक को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। वैसे ही हमारे बैंक में सिस्टम इस तरह का है कि अगर स्विफ्ट से एलओयू भेजते हैं तो वह बगैर कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) से जोड़े नहीं हो सकता। साथ ही हमने यह सुनिश्चित कर रखा है कि किसी भी संवेदनशील पद पर कोई भी व्यक्ति तीन वर्ष से ज्यादा नहीं रहे। हालांकि हमारे अधिकारी इसे पसंद नहीं करते। यही नहीं इन संवेदनशील पदों की बाहर से लगातार निगरानी की जाती है ताकि कोई भी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का समूह कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं कर सके। आगे और सतर्कता बरती जाएगी, ज्यादा कड़े प्रावधान किये जाएंगे। हमें ज्यादा सर्तक रहने की जरुरत है।
हाल के महीनों में न्यूनतम बैलेंस पर शुल्क लगाने को लेकर एसबीआइ की बहुत निंदा हो रही है, क्या उस पर विचार किया जा रहा है?
- देश के सबसे बड़े बैंक के तौर पर हम अपने ग्राहकों की हर मांग को लेकर संवेदनशील है। हम हर साल बैंकिंग सेवा में लगने वाले शुल्कों की समीक्षा करते हैं। अप्रैल, 2018 से लागू होने वाले शुल्कों पर विचार किया जा रहा है। लेकिन मैं कुछ तथ्य रखना चाहता हूं। आपको मालूम है कि अगर एक बार हमारे डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किसी दूसरे बैंक के एटीएम में करते हैं तो हमारे बैंक पर 7 रुपये से लेकर 15 रुपये तक का बोझ पड़ता है। कुल बैंकिंग शाखाओं में हमारी हिस्सेदारी सिर्फ 14 फीसद है लेकिन कुल ग्राहकों में हमारी हिस्सेदारी 40 फीसद है। साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे ग्राहक हैं जिन्हें फ्री बैंकिंग सेवा देते हैं। इसमें विद्यार्थी हैं, किसान हैं, पेंशनभोगी, छोटे उद्यमी जैसे महत्वपूर्ण वर्ग हैं। इसके अलावा 3000 करोड़ रुपये का भुगतान हम हर वर्ष तकनीक को बेहतर बनाने पर करते हैं। तो आप देख सकते हैं कि देश की बड़ी आबादी को बैंकिंग सेवा देने पर हमें कितनी बड़ी राशि खर्च करनी होती है। इस सबके बावजूद हम पूरी संवेदना के साथ न्यूनतम बैलेंस फीस पर विचार करेंगे।
फंसे कर्जे की समस्या से कब तक आपका बैंक निकल पाएगा?
-देखिए, फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या की पहचान की प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है। अब इनकी वसूली की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पहले चरण में जिन 12 बड़े एनपीए खातों की पहचान की गई थी, मुझे लगता है कि उनकी परिसंपत्तियों को जब्त करने और बिक्री करने की प्रक्रिया इसी तिमाही शुरु हो जाएगी लेकिन अगली तिमाही में हमें खासी सफलता मिलेगी। पहचाने गए एनपीए के लिए बहीखाता में पर्याप्त प्रावधान भी किया गया है ताकि अगले वित्त वर्ष से हमारा वित्तीय प्रदर्शन प्रभावित न हो। साथ ही बड़े कारपोरेट को कर्ज देने और उनके प्रस्तावों को मंजूरी देने की प्रक्रिया और पारदर्शी व मजबूत बनाई जाएगी। कर्ज प्रस्तावों को मंजूरी देने वाला विभाग पूरी तरह से अलग होगा। इससे कर्ज देने में जोखिम को बहुत हद तक कम किया जा सकेगा। एनपीए अब बढ़ेगा नहीं। दिसंबर, 2018 तक इसमें काफी कमी आएगी।
पांच सब्सिडियरियों के विलय के बाद शाखाओं का समायोजन की प्रक्रिया क्या पूरी हो गई है?
-यह चल रही है। तकरीबन 1600 शाखाओं को या तो बंद किया गया है या उन्हें दूसरी शाखाओं के साथ मिलाया गया है। हमने बेहद आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) दी थी जिसे 3500 लोगों ने स्वीकार किया है। साथ ही एसबीआइ के तकरीबन 13 हजार लोग इस वर्ष सेवानिवृत्त हो रहे हैं। घरेलू के साथ ही एसबीआइ विदेश स्थित अपनी शाखाओं की भी समीक्षा कर रही है। कुछ शाखाओं को बंद किया गया है। इसी तरह से एटीएम का भी समायोजन किया जा रहा है। जहां नई बस्तियां बन रही हैं वहां नए एटीएम खोले जा रहे हैं।