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भोपाल के एम्स में जड़ी-बूटियों पर शोध, तलाश रहे कैंसर के इलाज की राह, प्रारंभिक परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले

आदिम जाति अनुसंधान संस्थान के संयुक्त संचालक नीतिराज सिंह ने बताया कि एम्स भोपाल में इस दिशा में काम किया जा रहा है। बायोकेमेस्ट्री विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुखेश मुखर्जी और उनकी टीम इस पर काम कर रही है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 09:50 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 09:54 PM (IST)
भोपाल के एम्स में जड़ी-बूटियों पर शोध, तलाश रहे कैंसर के इलाज की राह, प्रारंभिक परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले
दूरस्थ जंगलों से जुटाई गई 27 जड़ी-बूटियों पर किया जा रहा है काम

मोहम्मद रफीक, भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), भोपाल में जड़ी-बूटियों पर शोध किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में मिलने वाली 27 प्रकार की जड़ी-बूटियों को इसके दायरे में लिया गया है। अभी यह पता किया जा रहा है कि ये जड़ी-बूटियां कैंसर के इलाज में किस प्रकार सहायक हो सकती हैं। शुरुआती दौर में कुछ जड़ी-बूटियों में एंटी कैंसर कंपाउंड (तत्व) मिले हैं। इन पर आगे के नतीजों के लिए काम किया जा रहा है।

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आदिम जाति अनुसंधान संस्थान की ओर से आदिवासियों द्वारा उपयोग की जानी वाली जड़ी-बूटियों पर प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। इसके बाद इन पर शोध के लिए 15 लाख रुपये दिए गए। शोध की जिम्मेदारी एम्स भोपाल के बायोकेमेस्ट्री विभाग को दी गई है। शोध की अवधि तीन साल रखी गई है। करीब एक साल से इस पर काम किया जा रहा है। प्राप्त परिणाम शुरुआती स्तर पर हैं, लेकिन जो तत्व मिले हैं, उससे उम्मीद जागी है कि इन जड़ी-बूटियों से और भी कई रोगों का उपचार भविष्य में किया जा सकेगा। इन जड़ी-बूटियों को मध्य प्रदेश के मंडला, पातालकोट आदि स्थानों से लाया जाता है। हालांकि, जड़ी-बूटियों को लेकर समाज में भ्रम नहीं फैले, इसलिए आधिकारिक तौर पर उनकी पहचान नहीं बताई गई है।

इनकी पहचान में आदिवासी करते हैं मदद

आदिम जाति अनुसंधान संस्थान के संयुक्त संचालक नीतिराज सिंह ने बताया कि एम्स, भोपाल में इस दिशा में काम किया जा रहा है। बायोकेमेस्ट्री विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुखेश मुखर्जी और उनकी टीम इस पर काम कर रही है। टीम को कुछ सफलता मिली है। उधर, बताया गया है कि एम्स भोपाल की टीम दूरस्थ अंचलों से इन जड़ी-बूटियों को एकत्र करती है। इनकी पहचान के लिए स्थानीय आदिवासी मदद करते हैं। इसके बाद टीम वैज्ञानिक तरीके से उन्हें भोपाल तक लेकर आती है। प्रयोगशाला में इन जड़ी-बूटियों के अलग-अलग तत्व तैयार किए जाते हैं। अनावश्यक तत्वों को निकालकर परीक्षण किया जा रहा है। इनकी उपयोगिता और दवाई रूप में इसके कारगर होने के नतीजे आने में अभी समय लगेगा।

एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ सरमन सिंह ने बताया कि जड़ी-बूटियों पर शोध किया जा रहा है। जड़ी-बूटियों के कारगर होने या नहीं होने के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।


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