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गर्भ में अभिमन्यु सीख रहा चक्रव्यूह भेदने की कला, गर्भवती महिलाएं अपनाएं ये उपाय

अब रिसर्च में भी यह सच पाया गया है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को सुसंस्कार दिए जा सकते हैं।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 07:02 PM (IST)Updated: Sun, 01 Jul 2018 11:24 AM (IST)
गर्भ में अभिमन्यु सीख रहा चक्रव्यूह भेदने की कला, गर्भवती महिलाएं अपनाएं ये उपाय
गर्भ में अभिमन्यु सीख रहा चक्रव्यूह भेदने की कला, गर्भवती महिलाएं अपनाएं ये उपाय

जमशेदपुर [अमित तिवारी]। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख गया था। महाभारत की यह कहानी हम सभी ने सुनी है, लेकिन अब रिसर्च में भी यह सच पाया गया है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को सुसंस्कार दिए जा सकते हैं। फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गाइनेकोलॉजिकल सोसाइटी (एफओजीएसआइ) के विशेषज्ञों ने 'अद्भुत मातृत्व' पर रिसर्च करने के बाद इस मुहिम को आगे बढ़ाया है।

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जमशेदपुर, झारखंड की महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ और महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज की लेBरर डॉ. वनिता सहाय भी इस मुहिम से जुड़ गई हैं। कहती हैं, आधुनिकता के इस दौर में हर कोई अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बनाना चाहता है। इसलिए यह विधा ऐसे लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। गर्भवती इसमें खास दिलचस्पी ले रही हैं।

डॉ. वनिता सेमिनारों के माध्यम से भी लोगों को अद्भुत मातृत्व के प्रति जागरूक कर रही हैं। वे बताती हैं कि रिसर्च में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दंपती अपने बच्चों को जैसा चाहे वैसा बना सकते हैं। इसके लिए कई माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है। गर्भ में संस्कार देने के लिए जरूरी नहीं है कि आप धार्मिक पुस्तक ही पढ़ें, बल्कि आपको जो अच्छा लगे, गीत, संगीत, टीवी पर अच्छे सीरियल, सभी अच्छी चीजें देख-सुन सकते हैं। दुखद वातावरण में जाने से गर्भवती को बचना चाहिए।

तीन माह के बाद बच्चा जानने-समझने लगता है
डॉ. वनिता सहाय बताती हैं कि गर्भ में तीन माह के बाद बच्चा जानने-समझने लगता है। ऐसे में मां अपने बच्चे को गर्भ में ही संस्कार दे सकती है। अगर कोई अपने बच्चे को संगीतकार बनना चाहता है तो वह अच्छे-अच्छे गीत-संगीत सुन सकता है। इसी तरह, मां यदि पंचतंत्र की कहानियां पढ़ेगी, तो बच्चे की रुचि उस ओर जाग्रत होगी। मातृत्व स्वयं में एक अद्भुत वरदान है और इस दौरान बच्चे का मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक सहित अन्य भाग गर्भ में ही विकसित होना शुरू हो जाता है।

गर्भ संस्कार सीख रही महिलाओं को ऐसे कई अनुभव हुए हैं, जिससे उनको इस बात पर यकीन हो गया है कि पेट में रहकर शिशु उनकी बात सिर्फ सुनता ही नहीं बल्कि मानता भी है। काउंसलिंग में गर्भवती माताओं को अपने-अपने बच्चों से बात करने की कला सिखाई जा रही है। बच्चे से बात करने के लिए मां को एकांकी जगह का चुनाव करना चाहिए। इसके बाद पेट पर हाथ रखकर बच्चे को महसूस करते हुए उससे बात करनी चाहिए। आप जो कुछ भी कहेंगे-सुनेंगे उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा। बच्चे को जैसा बनना चाह रहे हैं, उसे उसी तरह प्रेरित करना चाहिए। वैज्ञानिक शोध के अनुसार गर्भ के तीसरे महीने से चार साल की उम्र तक बच्चों को 10 से ज्यादा भाषा सिखाई जा सकती है।

गर्भावस्था में मां को हर तरह की नकारात्मक बातें देखने-सुनने से बचना चाहिए। लड़का होगा या लड़की, इस बारे में चर्चा और विचार नहीं करनी चाहिए।


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