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टेलीकॉम उद्योग के लिए राहत पैकेज तय, कंपनियां और पाने की फिराक में

उद्योग की स्पेक्ट्रम शुल्क में 3 साल की मोहलत 4 फीसद लाइसेंस शुल्क की मांग।

By Nitin AroraEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 08:29 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 08:29 AM (IST)
टेलीकॉम उद्योग के लिए राहत पैकेज तय, कंपनियां और पाने की फिराक में
टेलीकॉम उद्योग के लिए राहत पैकेज तय, कंपनियां और पाने की फिराक में

ई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाला सचिवों का समूह दूरसंचार उद्योग को राहत प्रदान करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम शुल्क अदायगी में दो वर्ष की मोहलत देने के साथ लाइसेंस शुल्क की दर को एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू (एजीआर) के 8 फीसद से घटाकर 5 फीसद पर लाए जाने का सुझाव दे सकता है। लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट के रिफंड जैसे जीएसटी से जुड़े मामले जीएसटी काउंसिल को सौंपे जा सकते हैं। सरकार के विचार के अनुरूप समूह देश में तीन से ज्यादा टेलीकॉम आपरेटरों के पक्ष में नहीं है। समूह की सिफारिशों पर कैबिनेट में इसी सप्ताह चर्चा होने की संभावना है। ये अलग बात है कि टेलीकॉम कंपनियां समूह के रुख से संतुष्ट नहीं हैं और अधिक राहत पाने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं।

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सोमवार को टेलीकॉम उद्योग के संगठन सेल्युलर आपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआइ) ने स्पेक्ट्रम शुल्क की अदायगी के लिए दो के बजाय तीन साल की मोहलत दिए जाने की सरकार से मांग की। सीओएआइ के महानिदेशक राजन मैथ्यूज ने कहा कि आपरेटरों को प्राणवायु की जरूरत है। इसलिए सरकार को टेलीकॉम कंपनियों के सभी बकाया कर्ज-पुनर्गठन के बारे में भी विचार करना चाहिए। चूंकि ज्यादातर 4जी लाइसेंस 11 वर्ष तक ही और वैध रहेंगे। लिहाजा सरकार को इनकी वैधता अवधि 10 वर्ष के लिए और बढ़ानी चाहिए। ताकि आपरेटर लाइसेंस अवधि में ही अपने बकायों को भुगतान कर सकें। इसके अलावा एजीआर को नए सिरे से परिभाषित किए जाने की जरूरत है।

इससे पहले सीओएआइ कुल लाइसेंस शुल्क को मौजूदा 8 फीसद से घटाकर 4 फीसद करने तथा यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फीस (यूएसओएफ) को मौजूदा 5 फीसद से घटाकर 3 फीसद करने की मांग कर चुका है। यही नहीं, उसने यूएसओएफ की वसूली तब तक स्थगित करने को भी कहा है जब तक कि पूर्व में एकत्र यूएसओएफ कोष का पूरा इस्तेमाल न हो जाए। वर्ष 2003 से 2019 के बीच उद्योग ने यूएसओएफ में 99,674 करोड़ रुपये का योगदान किया। जिसमें से 50,,554 करोड़ रुपये का अभी तक कोई उपयोग नहीं हुआ है।

गौरतलब है कि सूचीबद्ध टेलीकॉम कंपनियों का कुल घाटा सितंबर के अंत तक बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुका था। सितंबर को समाप्त तिमाही में देश की दो अग्रणी टेलीकॉम कंपनियों-वोडाफोन आइडिया तथा भारती एयरटेल का संयुक्त घाटा ही 74 हजार करोड़ रुपये (वोडाफोन आइडिया 50,921 करोड़, भारती एयरटेल 23,045 करोड़ रुपये) हो गया था। जबकि अभी शुक्रवार को रिलायंस कम्यूनिकेशंस ने भी 30,142 करोड़ रुपये का घाटा घोषित किया है। माना जाता है कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश के परिणामस्वरूप ही इन कंपनियों के घाटों में इतनी बढ़ोतरी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में एजीआर की गणना को लेकर सरकार के नजरिये को सही ठहराया है। सरकार ने गैर-दूरसंचार व्यवसायों से प्राप्त राजस्व को भी एजीआर का हिस्सा माना है। एजीआर की इस परिभाषा के अनुसार भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया तथा अन्य टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस शुल्क के तौर पर सरकार को 1.40 लाख करोड़ रुपये अदा करने हैं। इनमें भारती एयरटेल को 62,187 करोड़ रुपये, वोडाफोन आइडिया को 54,184 करोड़ रुपये तथा बीएसएनएल, एमटीनएल तथा कुछ दिवालिया हो चुकी टेलीकॉम कंपनियों को बाकी रकम अदा करनी है।


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