बिजली निर्माण और वितरण क्षेत्र में सुधार, अक्षय ऊर्जा के पर्याप्त विकास से ही बनेगी बात
हालिया कोयला संकट के मद्देनजर केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) को बिजली संयंत्रों को बकाये राशि का भुगतान समय पर करना चाहिए। बिजली वितरण कंपनियों पर बिजली संयंत्रों का 75000 करोड़ रुपये बकाया है।
कैलाश बिश्नोई। देश के सतत एवं तीव्र आर्थिक विकास के लिए विश्वसनीय, टिकाऊ और किफायती दरों पर बेहतर बिजली की आपूर्ति आवश्यक है। विगत चार दशकों में भारत ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अहम प्रगति की है, किंतु पिछले कई वर्षो से भारतीय विद्युत क्षेत्र राज्य सरकारों के लिए एक बड़े वित्तीय घाटे का कारण बना रहा है। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार तथा निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बिजली क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 बिजली उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही तथा बिजली क्षेत्र में विकास सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है।
ऐसे में प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 में खास फोकस कृषि क्षेत्र पर रखा गया है। विधेयक के मुताबिक केंद्र सरकार किसानों के खाते में बिजली सब्सिडी का डीबीटी यानी सीधा हस्तांतरण करने की तैयारी कर रही है। किसानों तथा किसान संगठनों की तमाम आशंकाओं के बीच यह स्पष्ट करना जरूरी है कि प्रस्तावित विधेयक में राज्यों को सब्सिडी प्रदान करने पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई गई है। राज्य सरकारें जितनी चाहें उतनी बिजली सब्सिडी दे सकती हैं, लेकिन उन्हें डीबीटी के माध्यम से भुगतान करना होगा, ताकि विद्युत वितरण कंपनियों की आर्थिक सेहत अच्छी रहे और वे वितरण के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने व सुधार करने और खरीदी गई बिजली का भुगतान करने में सक्षम हों।
बिजली सब्सिडी एक सियासी मुद्दा : बिजली सब्सिडी सियासी रूप से संवेदनशील मुद्दा रहा है। वित्त-वर्ष 2018-19 में बिजली क्षेत्र में कुल सब्सिडी में से 55 प्रतिशत को क्रास-सब्सिडी के माध्यम से हासिल किया गया था, जबकि बाकी बची राशि प्रत्यक्ष सब्सिडी के रूप में डिस्काम को राज्य सरकारों द्वारा हस्तांतरित की गई थी। देश में बिजली सब्सिडी डिस्काम की कुल राजस्व जरूरतों का 10 से 30 फीसद तक हैं। बिजली सब्सिडी कृषि और घरेलू उपभोक्ताओं के साथ कुटीर उद्योगों और ग्राम पंचायतों को दी जाती है। कई राज्यों में उद्यमों को भी बिजली सब्सिडी दी जा रही है। यदि क्रास-सब्सिडी को हटा दिया जाता है और राज्य सरकारें इस विधेयक को लागू कर दें तो उन्हें डर है कि उन पर बोझ बढ़ जाएगा। कई राज्य सरकारों ने इसीलिए इस विधेयक का विरोध किया है।
किसानों तथा किसान संगठनों के बीच यह गलत धारणा फैलाई जा रही है कि सब्सिडी के लिए डीबीटी प्रणाली का प्रस्तावित प्रविधान उपभोक्ताओं खासकर किसानों के हितों के विरुद्ध है। यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि राज्य सरकारें वक्त पर सब्सिडी अदायगी नहीं कर पाती हैं, तो उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति रोकी जा सकती है। यह आधारहीन है। नई टैरिफ नीति में यह प्रविधान किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा समय पर सब्सिडी का भुगतान करने में असमर्थ होने पर या राज्य सरकार द्वारा तीन-चार महीने तक सब्सिडी का भुगतान करने में असमर्थ होने पर भी बिजली की आपूर्ति बंद नहीं की जाएगी।
पिछले कुछ वर्षो में देखा गया है कि कृषि में विद्युत सब्सिडी के कारण राज्य सरकारों पर आर्थिक दबाव बढ़ा और यह कारण विद्युत क्षेत्र के विकास की सबसे बड़ी बाधा रही है। साथ ही वितरक कंपनियों को समय पर भुगतान न मिलने के कारण कंपनियों की स्थिति खराब हुई है। देश की राज्य विद्युत वितरण कंपनियां घाटे में हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 में डिस्काम का कुल ऋण 3.84 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। गौर करने वाली बात यह है कि प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत डीबीटी यानी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण पहल राज्य सरकारों और डिस्काम दोनों के लिए लाभकारी होगा। राज्य सरकार के लिए इसलिए लाभकारी होगी, क्योंकि यह सुनिश्चित करेगा कि सब्सिडी उन लोगों तक पहुंच रही है जो इसके वास्तव में हकदार हैं। वितरण कंपनी यह तय कर लाभान्वित होगी कि लाभार्थियों की संख्या के अनुसार देय सब्सिडी प्राप्त हो रही है। केंद्र सरकार ने 56 मंत्रलयों से संबंधित करीब चार सौ योजनाओं के लिए डीबीटी को लागू किया है जिसमें 1.70 लाख करोड़ रुपये की संचयी बचत होती है।
प्रस्तावित विधेयक में उपभोक्ताओं को दूरसंचार कनेक्शन की तरह अपने क्षेत्र में विभिन्न वितरण कंपनियों में किसी से बिजली लेने का विकल्प देने का प्रस्ताव किया गया है। फिलहाल बिजली वितरण के क्षेत्र में सार्वजनिक या निजी वितरण कंपनियों का एकाधिकार है और उपभोक्ता को अपने क्षेत्र में वितरक कंपनी चुनने का विकल्प नहीं है। वर्तमान में राज्य सरकारें ग्राहकों को बिजली की खुदरा आपूर्ति के लिए टैरिफ तय करती हैं। एक और आशंका यह जताई जा रही है कि यह शक्ति बिजली संशोधन विधेयक में केंद्र सरकार द्वारा लिया जाना प्रस्तावित है। यह बिल्कुल निराधार है। वर्तमान में टैरिफ राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है और इस व्यवस्था में कोई परिवर्तन प्रस्तावित नहीं है। इसमें यह प्रविधान जरूर किया गया है कि केवल सरकारी कंपनियां ही उपभोक्ता को हर हाल में बिजली कनेक्शन देने के लिए बाध्य होंगी। निजी कंपनियां, जिसे चाहेंगी, उसे कनेक्शन देंगी। किसानों की इस आशंका को उचित कहा जा सकता है कि किसान, बीपीएल यानी गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजारने वाले बिजली उपभोक्ताओं से ये निजी कंपनियां किनारा कर सकती हैं। सरकार को किसानों की इस चिंता का समाधान भी तलाशना चाहिए।
इलेक्टिसिटी कान्ट्रैक्ट इन्फोर्समेंट अथारिटी : नए विधेयक में बिजली उत्पादन और बिजली वितरण कंपनियों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए इलेक्टिसिटी कान्ट्रैक्ट इन्फोर्समेंट अथारिटी (ईसीईए) का गठन करने की बात कही गई है। बिजली खरीद और बिक्री से संबंधित मामलों पर निर्णय का अधिकार केवल ईसीईए को होगा। तेलंगाना, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का कहना है कि इससे राज्यों के डिस्काम और बिजली नियामकों की स्वायत्तता खत्म होगी। बिजली संशोधन विधेयक का कुछ राज्य सरकारों द्वारा विरोध क्यों किया जा रहा है इस बात को समझने की कोशिश की जानी चाहिए। इसमें वास्तविक कारण यह नजर आता है कि नया विधेयक बिजली आपूर्ति के मामले में राज्यों के मुकाबले केंद्र को और ज्यादा अधिकार दे देता है। वहीं बिजली कर्मियों तथा बिजली संगठनों का विरोध इसलिए उभर रहा है, क्योंकि केंद्र सरकार वितरण कंपनियों यानी डिस्काम के निजीकरण की दिशा में कदम बढ़ाने जा रही है। इस विधेयक को डिस्काम के निजीकरण के क्षेत्र में भी बड़ा कदम माना जा रहा है। इस विधेयक में एक प्रविधान यह भी है कि नई व्यवस्था लागू हो जाने के बाद उपभोक्ता के पास यह अधिकार होगा कि बिजली कंपनियों की सेवा पसंद नहीं आने की दशा में मोबाइल कंपनियों की तरह कनेक्शन बदल सकेंगे। लेकिन यहां अहम सवाल यह भी है कि क्या ग्रामीण इलाकों तथा झुग्गी बस्तियों में बिजली पहुंचाने के लिए निजी कंपनियां तैयार होंगी, जहां लोगों की महंगी बिजली खरीदने की क्षमता नहीं होगी। इस बारे में भी विचार किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक में आयोग को बिजली वितरकों द्वारा अनिवार्य रूप से सौर तथा पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली खरीद की एक न्यूनतम मात्र निर्धारित करने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही अक्षय ऊर्जा स्रोतों से न्यूनतम बिजली खरीदने की बाध्यता न पूरी करने पर जुर्माना लगाने का प्रस्ताव भी किया गया है। कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से प्रदूषण की समस्या गंभीर हो गई है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से यह प्रविधान एक बेहतर कदम कहा जा सकता है।
बिजली देश के विकास का इंजन है। ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ बिजली उपलब्ध कराएं। यही वजह है कि विद्युत उत्पादन को स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा के मानदंडों पर खरा बनाए रखने के लिए सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से प्राप्त करने की योजना बनाई है। इसमें से 100 गीगावाट क्षमता सौर ऊर्जा से और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा से प्राप्त होगी। समय की यह मांग भी है कि अब ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा के इस्तेमाल पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए। देश के कई क्षेत्रों में वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार विद्युत विभाग में नवीनीकरण न होने या अन्य कारणों से एक बड़े क्षेत्र को सेवाएं उपलब्ध कराना एक चुनौती बनी हुई है। ऐसे में फ्रेंचाइजी और उप-वितरक लाइसेंस देने के माध्यम से निजी क्षेत्र को जोड़कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। केंद्रीय प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना के माध्यम से विद्युत क्षेत्र में योजनाओं के क्रियान्वयन और उनकी बेहतर निगरानी में सहायता मिलेगी। साथ ही इस प्राधिकरण की स्थापना से राज्य विद्युत नियामक आयोग की शक्तियों में कमी आएगी। हालांकि राज्य सरकारों को इस मुद्दे पर सहमत करना कठिन होगा। लेकिन आज विद्युत क्षेत्र जिन चुनौतियों से जूझ रहा है उनके समाधान के लिए केंद्र व राज्य सरकारों समेत सभी अन्य हितधारकों के बीच सकारात्मक संवाद का होना आवश्यक है।
इस मामले में सरकार थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करे तो हमारे खेत बिजली उत्पादन के भी केंद्र बन सकते हैं। खेतों के किनारों पर सोलर प्लांट लगाने की अपार संभावनाएं हैं। निश्चित तौर पर यह बड़ा प्रोजेक्ट है और इस पर लागत भी काफी अधिक आएगी। हालांकि सरकार इस दिशा में आगी बढ़ रही है। लेकिन सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली संबंधित योजना को व्यापक स्तर पर लागू किए जाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा उपकरणों की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता है। इस मामले में एक तथ्य केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति इस विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा योजना की सफलता की कुंजी है, क्योंकि भारत में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कोई भी सुधार तब तक सिरे नहीं चढ़ता, जब तक केंद्र सरकार, राज्य सरकारों समेत इसमें शामिल सभी पक्षों के बीच में बेहतर समन्वय न हो।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]