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रोज लड़ते हैं बर्फ से ताकि चलती रहे जिंदगी, ये है सेना की ग्रेफ विंग के जांबाजों की कहानी

ऐसे हालात में जब सांस लेना भी दूभर हो, सेना की ग्रेफ विंग के जांबाज मोर्चा संभालते हैं। किश्तवाड़ और हिमाचल के चंबा को जोड़ने वाली सड़क सर्दियों में बर्फ से ढंक जाती है। ये जांबाज इसे हर रोज खोलते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 30 Dec 2018 03:22 PM (IST)Updated: Sun, 30 Dec 2018 03:22 PM (IST)
रोज लड़ते हैं बर्फ से ताकि चलती रहे जिंदगी, ये है सेना की ग्रेफ विंग के जांबाजों की कहानी
रोज लड़ते हैं बर्फ से ताकि चलती रहे जिंदगी, ये है सेना की ग्रेफ विंग के जांबाजों की कहानी

किश्तवाड़ [बलबीर सिंह जम्वाल]। खून जमा देने वाली ठंड। तापमान माइनस छह डिग्री सेल्सियस। कोहरा इतना घना कि कुछ मीटर की दूरी पर भी दिखाई न दे। इस पर, पहाड़ी से गिरता ग्लेशियर। ऐसे हालात में जब सांस लेना भी दूभर हो, बर्फ के ये लड़ाके मोर्चा संभालते हैं। जम्मू के किश्तवाड़ और हिमाचल के चंबा को जोड़ने वाली सड़क, जो चंबा जिले की लाइफलाइन है, सर्दियों में बर्फ से ढंक जाती है। सेना की ग्रेफ विंग के जांबाज इसे हर रोज खोलते हैं।यह सड़क किश्तवाड़ के गुलाबगढ़ से बाया संसारी नाला होते हुए चंबा जिले को जाती है। इसी क्षेत्र में एक ग्लेशियर भी है, जो हर रोज सुबह सड़क पर गिरता है। तैयारी व शबाश इलाके के बीच सर्दियों में रोजाना दो से तीन फीट बर्फ गिरने से रास्ता बंद हो जाता है।

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नहीं करते जान की भी परवाह
सुबह कड़ाके की ठंड में सेना की ग्रेफ विंग के 118 आरसीसी के 50 से ज्यादा कर्मी और श्रमिक मशीनें लेकर जुट जाते हैं। जान की परवाह किए बिना सड़क से बर्फ हटाकर इसे खोलते हैं। सबसे पहले सड़क पर एकत्र बर्फ पर नमक और यूरिया का छिड़काव किया जाता है, ताकि फिसलन न हो और बर्फ पिघलने लगे। इसके बाद मशीनों से बर्फ हटाई जाती है। इस दौरान संसारी नाला, तैयारी व शबाश में वाहनों को रोक दिया जाता है। सुबह करीब 11 बजे सड़क साफ कर वाहनों की आवाजाही शुरू कर दी जाती है। शाम तक यातायात चलता है।

शाम को बंद हो जाती है वाहनों की आवाजाही
सूरज ढलने के बाद सड़क पर फिर बर्फ का गिरना शुरू हो जाता है। तब वाहनों की आवाजाही बंद कर दी जाती है। यह सड़क चंबा जिले के हजारों लोगों की जीवन रेखा है। चंबा जिले की 75 फीसद आबादी इस सड़क पर निर्भर है। हिमाचल का कैलाड़, जिसे सब डिवीजन का दर्जा प्राप्त है, उसकी आबादी 25 हजार से ज्यादा है। कैलाड़ के अंतर्गत बहुत से छोटे-छोटे गांव हैं, जिनका संपर्क दिसंबर से मार्च के आखिर तक चंबा और लाहौल स्पीति से पूरी तरह कट जाता है। इस दौरान लोग कैलाड़ से संसारी नाला होते हुए गुलाबगढ़, किश्तवाड़ की तरफ आते हैं।

हालात बेहद बदतर
कैलाड़ से सर्दियों के दिनों में अगर किसी को जिला मुख्यालय में कोई काम होता है तो वह पहले गुलाबगढ़ से होता हुआ किश्तवाड़ आता है। यहां से जम्मू और पठानकोट होते हुए चंबा पहुंचता है। इसमें लोगों को एक से डेढ़ दिन का समय लग जाता है। कैलाड़ इलाके में अगर कोई मरीज ज्यादा बीमार पड़ जाए तो उसे भी किश्तवाड़ के रास्ते ही जम्मू या फिर दूसरे शहर के अस्पतालों में पहुंचाया जाता है। तैयारी से लेकर शबाश 12 किलोमीटर सड़क है। उसके आगे जम्मू कश्मीर व हिमाचल का बॉर्डर संसारी नाला पड़ता है। हिमाचल के उस हिस्से में ज्यादा बर्फबारी नहीं होती। ग्रेफ कर्मचारियों को ज्यादा परेशानी तैयारी से शबाश तक आती है, क्योंकि जब थंब नाला में ग्लेशियर गिरता है तो पता नहीं होता कि यह क्रम कब तक चलता रहेगा।

बंद हो जाए सड़क तो गुजारा मुश्किल
ग्लेशियर के पूरी तरह रुकने के बाद ही सड़क से बर्फ हटाने का काम शुरू होता है। हिमाचल प्रदेश के कैलाड़ के वाहन चालक सिंधु राम कहते हैं, अगर यह सड़क बंद हो जाए तो हम लोगों को चार-पांच महीने गुजारा करना मुश्किल हो जाएगा। कैलाड़ में कोई पेट्रोल पंप नहीं है। सर्दियों में जरूरत का सामान किश्तवाड़ या जम्मू से लाना पड़ता है। ग्रेफ के 118 आरसीसी ऑफिसर शिव बहादुर सिंह ने बताया कि शबाश से लेकर तैयारी तक वैकल्पिक सड़क पर काम जोरों से चल रहा है। गुलाबगढ़ से तैयारी तक 22 किलोमीटर सड़क बना दी गई है।

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