West Bengal Election: पश्चिम बंगाल में चुनाव पूर्व ही नहीं चुनाव के बाद भी होती रही है हिंसा, जानें-एक्सपर्ट व्यू
पश्चिम बंगाल में चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा का दौर भी शुरू हो गया है। एक सप्ताह के अंदर राजनेता पर दूसरे हमले के बाद यहां पर होने वाले विधानसभा चुनाव का शंतिपूर्ण तरीके से होना बड़ी चुनौती है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही सत्ता के लिए खूनी संघर्ष की शुरुआत होती हुई दिखाई दे रही है। एक सप्ताह के अंदर दो राजनीतिज्ञों के ऊपर हुआ हमला इस बात की तसदीक कर रहा है। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही पश्चिम बगाल के मंत्री पर बम से जानलेवा हमला हुआ था और अब राज्य के भाजपा अध्यक्ष के ऊपर भी हमला किया गया है। इन दोनों ही हमलों के बीच चुनाव के दौर में गरमा रही सियासत है। इस बात को पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ भी मान रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार का मानना है कि यहां पर चुनावी हिंसा का इतिहास काफी पुराना रहा है। वो हाल ही में हुई इन घटनाओं के पीछे राजनीतिक मकसद मान रहे हैं। उनका ये भी कहना है कि पश्चिम बंगाल में जिस तरह से चीजें हो रही हैं उससे वहां के हालात काफी गंभीर होते जा रहे हैं। उनके मुताबिक राज्य में जो सरकारें रहीं है या यहां के नेताओं ने अपनी कुर्सी को बचाने के लिए या कुर्सी पाने के लिए इस तरह की हिंसा का सहारा लिया है। इसमें कोई भी पार्टी अछूती नहीं रही है। जहां तक राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की बात है तो उनका मानना है कि इस पार्टी की पकड़ बेहद निचले तबके में अब भी कम नहीं हुई है।
शिवाजीके मुताबिक जिस वक्त टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू किया था उस वक्त उसको वाम दलों में शामिल लोगों का साथ मिला और वो टीएमसी में बड़ी संख्या में शामिल हुए। इस तरह से टीएमसी जिन बातों को कहकर वामदलों का विरोध करती थी वही उनका एक आधार बन गई। इसी तरह से अब राज्य में भाजपा की मजबूती के साथ काफी संख्या में टीएमसी से जुड़े लोग उससे जुड़ रहे हैं। उनके मुताबिक राज्य में हिसा की ये घटनाएं बताती हैं कि वहां पर टीएमसी बनाम टीएमसी में ही वर्चस्व की जंग छिड़ी है। उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल में अभी लोग चीजों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। न तो सारे लोग ममता की तरफ हैं और न ही सारे लोग भाजपा के खेमें में हैं।
उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल की चुनावी हिंसा दरअसल, यहां पर सत्ता का स्वाद चख चुकी पार्टियों का वजूद बनाए रखने का एक तरीका बन गया है। यहां पर एक पैटर्न ये भी है कि चुनाव के बाद भी यहां पर हिंसा का दौर देखा जाता है। शिवाजी का ये भी मानना है कि इस तरह की हिंसा किसी बड़े के साथ ही नहीं बल्कि बेहद स्थानीय स्तर पर होती आई है। आने वाले समय में राज्य में हिंसा का दौर क्या रुख लेता है ये समय बताएगा।