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विशाखापट्टनम दुर्घटना से पहले भी कई बार देश ने झेला है ऐसे भीषण हादसों का दर्द

विशाखापट्टनम हादसे ने इतिहास की उन घटनाओं पर नजर डालने का मौका दिया है जिन्‍होंने अपने समय में भारत को हिला दिया था। इन हादसों में भोपाल गैस त्रासदी सबसे बड़ी थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 04:32 PM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 04:40 PM (IST)
विशाखापट्टनम दुर्घटना से पहले भी कई बार देश ने झेला है ऐसे भीषण हादसों का दर्द
विशाखापट्टनम दुर्घटना से पहले भी कई बार देश ने झेला है ऐसे भीषण हादसों का दर्द

नई दिल्‍ली। विशाखापट्टनम की एक फैक्ट्री में हुए गैस रिसाव की वजह से जो मंजर देश के सामने आया है वह वास्‍तव में दिल दहला देने वाला है। इस हादसे ने देश के उन हादसों की भी याद दिला दी है जिनकी वजह से पहले भी हजारों की जान जा चुकी है। विशाखापट्टनम की घटना में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है और 800 से अधिक लोग घायल है। ये घटना आरआर वेंकटपुरम गांव की एक फैक्‍ट्री में घटी है। यहां से जो जिस गैस का रिसाव हुआ है वह स्टाइरीन(Styrene)है।

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1944 का मुंबई धमाका 

14 अप्रैल 1944 को बॉम्‍बे के विक्टोरिया डॉक में जबरदस्‍त धमाकों केी वजह से 800 से 1300 लोगों की मौत हो गई थी। इसकी वजह से करीब 80,000 लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा था। ये हादसा एस.एस. फोर्ट स्टिकीन जहाज पर हुआ था। इसमें रखे करीब 1395 टन बारूद के धमाके ने पूरे बॉम्‍बे को हिला कर रख दिया था। इन विस्फोटकों में 238 टन टारपीडो, माइन, तोपों के गोले और गोलियां थी। इसके अलावा जहाज पर कई दूसरे सामान भी थे। इसमें आग लगने की सूचना नाविकों ने दोपहर को दी थी। लेकिन जब तक दमकल की गाडि़यां और दूसरे उपाय किए जाते तब तक काफी देर हो गई थी।

धमाके से पहले जहाज पर कई लोग मौजूद थे जो लगातार आग बुझाने की कोशिशों में जुटे थे, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्‍हें तुरंत जहाज छोड़ने का हुक्‍म दिया गया। इस आदेश के महज 15 मिनट बाद आसमान धुएं के गुबार से पट गया था। इस धमाके से जहाज दो हिस्सों में टूट गया। कई किमी दूर तक इस हादसे के अवशेष देखे गए थे। इस धमाके की वजह से इसके आस पास खड़े 11 जहाजों में भी आग लग गई। इसके बाद दूसरा धमाका हुआ जिसकी आवा 80 किलोमीटर दूर तक सुनी गई थी। इस हादसे में 13 जहाज बर्बाद हो गए थे। इस घटना में अग्निशमन दलों के 66 जवान भी शहीद हुए थे। इस घटना की याद में ही भारत में 14 से 22 अप्रैल को अग्निशमन सप्ताह मनाया जाता है।

चासनाला हादसा 

27 दिसंबर 1975 को कोल इंडिया के अंतर्गत आने वाली भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की चासनाला कोलियरी के ऊपर स्थित एक तलाब में जमा करीब पांच करोड़ गैलन पानी खदान की छत को तोड़ता हुआ अचानक अंदर घुस गया। इसकी वजह से खदान में 300 से अधिक लोग की मौत हो गई थी। हादसे के तुरंत बाद पानी निकालने के जो पंप लगाए गए वो इसके लिए नाकाफी साबित हुए। झारखंड़ के धनबाद में हुआ चासनाला खदान हादसा देश के बड़े हादसों में से एक है।

भोपाल गैस हादसा

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। इसके कई वर्षों तक लोगों पर इस जहरीली गैस का असर दिखाई दिया था। इस कंपनी में मिथाइलआइसोसाइनाइट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। वर्ष 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 लोग बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये। भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा। इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था।

कोरबा चिमनी हादसा 

23 सितंबर 2009 को वेदांता-बालको के 1200 मेगावाट के पॉवर प्लांट विस्तार परियोजना की दो चिमनियों में से एक निर्माणधीन चिमनी अचानक जमीनदोंज हो गई। जिस वक्‍त ये हादसा हुआ उस वक्‍त इस 225 मीटर ऊंची चिमनी के ऊपरी भाग में निर्माण कार्य चल रहा था। इस हादसे में 40 से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई थी। घटना के दस दिन बाद तक यहां पर रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन चला था। इस मामले में कुल 17 आरोपी बनाये गए थे। राज्य सरकार ने हादसे की जांच के लिये जस्टिस संदीप बख्शी की अध्‍यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया। इसने अपनी 122 पेज की जांच रिपोर्ट 9 अगस्त 2012 को सौपी थी। रिपोर्ट में आयोग ने बालको, चीनी ठेका कंपनी सेपको, ठेका कंपनी जीडीसीएल, नगर पालिका निगम, नगर तथा ग्राम निवेश विभाग, श्रम विभाग के तत्कालीन अधिकारियों को हादसे का जिम्मेदार बताया।

जयपुर ऑयल डिपो अग्निकांड 

29 अक्टूबर 2009 को जयपुर के इंडियन ऑयल डिपो में भयंकर अग्निकांड हुआ था। इस अग्निकाण्ड में करोड़ों की हानि हुई। इस घटना में 11 लोगों की मृत्यु भी हो गई थी और 150 लोग घायल हो गए थे। जयपुर के औद्योगिक क्षेत्र सीतापुरा में भारत की तीन प्रमुख पेट्रोलियम तेल कम्पनियों में से एक इंडियन ऑयल की एक बड़ी तेल भण्डारण व्यवस्था है। इसमें अलग अलग कई टैंकों में पेट्रोल, डीज़ल, केरोसीन आदि रखे जाते है। इसके ठीक सामने दूसरी बड़ी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड की भी तेल भण्डारण व्यवस्था है। सीतापुरा इलाका मूल रूप से एक बाहरी औद्योगिक क्षेत्र है पर शहर की निरंतर बदलती मांग के कारण वहां रिहायशी व शिक्षा सम्बन्धी इमारतें भी है। हादसे वाले दिन इंडियन ऑयल डिपो में कर्मचारियों द्वारा पास ही के अन्य भण्डारण व्यवस्था को तेल की आपूर्ति करने के लिए दो टैंको के बीच की तेल पाइपलाइन के वाल्व खोले गये। भूलवश उन्होंने जिस टैंक में तेल पूरा भरा था, वह टैंक उस के कारण उच्च दबाव में था। इसी कारण बीच के वाल्व में एकदम से तेज रिसाव हुआ व पेट्रोल का फव्वारा छूट पड़ा। इससे हर तरफ पेट्रोल तेजी से फैल गया व ज्वलनशील पदार्थ की गैस इलाके में फैल गयी।

पेट्रोल रिसाव होने व पेट्रोल की गंध के कारण ज्यादातर कर्मचारी व आस पास के औद्योगिक व रिहाइशी इमारतें खाली करा ली गयीं। तदोपरान्त डिपो में दुबारा विधुत चालू करने की वजह से चिंगारी भड़की व पेट्रोल ने तुरंत आग पकड़ ली। इससे 11 तेल के टैंकों में आग फैल गई थी। इंडियन ऑयल कंपनी को इस अग्निकांड से लगभग 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ व 10 करोड़ लीटर तेल जल कर नष्ट हो गया। ये आग इतनी भीषण थीं कि आसपास की 700 इमारते तबाह हो गई थी। जयपुर के आसमान में इस आग की वजह से धुआं छा गया था और पूरे शहर में प्रदूषण फैल गया व घने काले बादल बन गये। हवा में कई जहरीले रसायन घुल गए वहीं राजस्थान आने वाले कई पक्षी यहाँ से दूर चले गए।

मायापुरी रेडियोएक्टिव घटना

अप्रैल, 2010 में देश की सबसे बड़ी कबाड़ मार्केट दिल्‍ली की मायापुरी में अचानक नौ लोग किसी तरह के रेडिएशन का शिकार हो गए थे जिसमें से एक की मौत भी हो गई। रेडिएशन का ये मामला देश के सामने बेहद नया था। जब हादसे की जांच की गई तो पता चला कि दिल्ली विश्वविद्यालय के रसायन विभाग को शोध के लिए 1968 में विदेश से गामा सेल रेडिएटर मशीन तोहफे में मिली थी। 1985 के बाद से यह मशीन बेकार पड़ी थी। डीयू ने रेडियोएक्टिव पदार्थो के निष्पादन के दिशा-निर्देशों को नजर अंदाज करते हुए 28 फरवरी, 2010 को उस मशीन को कबाड़ी कारोबारी के हाथों नीलाम कर दिया था। अप्रैल में इसे तोड़ने पर मार्केट में रेडिएशन फैल गया था।

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