आरबीआइ की रिपोर्ट से हुआ खुलासा, नीरव मोदी घोटाले का खामियाजा भुगत रहे हैं बैंक व कारोबारी
नीरव मोदी घोटाले का खामियाजा भुगत रहे हैं बैंक व कारोबारी घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद आरबीआइ के एलओयू व एलओसी पर लगी पाबंदी से नई समस्या उपज गई है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नीरव मोदी ने भारतीय बैंकिंग सेक्टर में एक वर्ष पहले सेंध लगाई थी लेकिन उसका खामियाजा आज भी बैंक और दूसरे कारोबारी (खास तौर पर आयातक व निर्यातक समुदाय) भुगत रहे हैं। फरवरी, 2018 में इस बात का खुलासा हुआ था कि नीरव मोदी ने सरकारी क्षेत्र के पंजाब नैशनल बैंक को 12 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाया था।
उसके बाद सरकारी एजेंसियों की तरफ से एहतियाती कदम उठाते हुए जिस रास्ते से नीरव मोदी ने पीएनबी के साथ धोखाधड़ी की थी यानी एलओयू (लेटर आफ अंडरटेकिंग) और एलओसी (लेटर आफ कम्फर्ट) ने उस पर ही रोक लगा दी थी। यह रोक आरबीआइ ने लगाई थी और आरबीआइ की तरफ से ही तैयार एक अध्ययन पत्र में कहा गया है कि इस रोक से ना सिर्फ कारोबारियों को वित्त सुविधा हासिल करने में दिक्कत हो रही है बल्कि बैंकों के लिए भी कमाई का एक बड़ा जरिया समाप्त हो गया है।
आरबीआइ की रिपोर्ट
दो दिन पहले आरबीआइ की तरफ से जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में एलओयू और एलओसी पर लगे प्रतिबंध से उपजी स्थिति का बखूबी उजागर किया गया है। इसमें एक बड़ी चिंता यह दिखाई गई है कि एक तरफ विदेशी बैंक भारत में अपनी शाखाएं कम करते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ भारतीय बैंक भी अपनी अंतरराष्ट्रीय शाखाओं में कमी करते जा रहे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय कारोबार करने के लिए जिस तरह के वित्तीय मदद की जरुरत निर्यातकों और आयातकों को चाहिए उसको लेकर चिंता बढ़ रही है।
एलओयू और एलओसी के जरिए भारतीय कारोबारियों को दूसरे देशों में अल्पकालिक अवधि के लिए कर्ज की सुविधा दी जाती है। आम तौर पर भारत स्थित बैंक की शाखा विदेश स्थित किसी दूसरे भारतीय बैंक की शाखा के लिए जारी करता था। अभी तक इसे काफी सुविधाजनक माना जाता था क्योंकि इसका इतंजाम भारतीय बैंकों के बीच आपसी सहमति से ही हो जाता था। लेकिन नीरव मोदी प्रकरण ने इस पूरी प्रक्रिया को लेकर सवाल उठा दिया था।
बताते चलें कि सीबीआइ की तरफ से नीरव मोदी मामले में दायर चार्जशीट में बताया गया था कि किस तरह से वह पीएनबी की एक शाखा से एलओयू और एलओसी हासिल करता था लेकिन निश्चित अवधि में उसका भुगतान नहीं करता था। बाद में बैंक के कुछ कर्मचारियों की मिली भगत से दूसरा एलओयू या एलओसी हासिल कर लेता था और उससे ही पुराने बकाये का भुगतान कर देता था। आरबीआइ की इस रिपोर्ट से पहले भी कुछ औद्योगिक संगठनों ने एलओयू और एलओसी पर लगी रोक हटाने की मांग की थी।
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